एक सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी के जवाब में यह बताया गया है कि फ़ोन टैपिंग से जुड़ी जानकारी भी गोपनीय है क्योंकि इसके द्वारा विशेष परिस्थितियों में कुछ फ़ोनों को टेप किया जाता है. गृह मंत्रालय ने साफ़ कहा कि सामान्य सूचना के तहत इस सूचना को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसे पारदर्शिता के कानून से बाहर रखा गया है. यहाँ तक कि इस सम्बन्ध में केवल संख्या भी नहीं बताई जा सकती है.
आज जिस तरह से देश विरोधी तत्व अपना सर उठा रहे हैं उसे देखते हुए कई बार संदेह के आधार पर या फिर केवल कुछ गोपनीय सूचना इकट्ठी करने के लिए बहुत बार फोन टेप किये जाते हैं. सूचना के अधिकार के तहत यद्यपि बहुत सारे आयामों को जनता के लिए पारदर्शी बना दिया गया है फिर भी रक्षा आदि कुछ ऐसे विभाग भी हैं जिन्हें इस पारदर्शिता से अलग रखा गया है. यह सही भी क्योंकि देश की सुरक्षा से जुड़ी हर बात हर किसी को नहीं बताई जा सकती है और साथ ही यह भी नहीं सार्वजानिक किया जा सकता है कि किस तरह से हर बात के लिए सूचना जुटाई जाती है. हम सभी जानते हैं कि आजकल इसी तकनीकि के प्रयोग से बहुत बार आतंकियों को दबोचने में सफलता भी मिली है और कई बार आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों के नेटवर्क में कौन से स्थानीय लोग उनकी सहायता कर रहे हैं यह भी पता चल चुका है. ऐसी स्थिति में यह अधिकार सुरक्षा एजेंसियों के लिए बहुत काम करता है.
साथ ही इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि इस अधिकार का कई बार राजनैतिक दुरुपयोग भी क्या जाता है और सरकारें सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से अपने विरोधियों के बारे में भी जानकारी जुटाती रहती हैं. बस यही से यह अधिकार लोगों के लिए समस्या बन जाता है. कोई भी कानून या अधिकार हमें सुरक्षा की गारंटी तो नहीं दे सकता है पर उसके दुरूपयोग को रोकने के लिए हमारे पास कुछ अधिक होता भी नहीं है. अब यह तो कुछ वैसा ही हो जाता है कि जैसे चाकू से सब्जी काटने की जगह किसी का गला काट दिया जाये ? अब भी राजनेताओं को समझ जाना चाहिए कि उनके लिए नहीं वरन देश के लिए ऐसे कानून बनाये जाते हैं और अगर आज वे इसका दुरूपयोग करते हैं तो कल विपक्ष में होने पर उनके साथ भी यही कुछ किया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
नेता हर कानून अपने लाभ के लिये बनाते हैं..
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