लगता है कि हर मामले के कानूनी पक्ष की कमजोरी को भुनाना मायावती का एक प्रिय खेल बन गया है. वे और उनकी सरकार के अधिकारी तथा कानूनी सलाहकार जिस तरह से हर मामले के कानूनी पक्ष की अनदेखी कर नित नए काम करते रहते हैं उससे बहुत सारे रिकार्ड बनाने के साथ ही यह सरकार अदालत के आदेशों की धज्जियाँ उड़ाने का रिकार्ड भी बनाने वाली है. ताज़ा मामले में उच्च न्यायालय के शुक्रवार के आदेश को ताक पर रख कर गोमती नदी के तटों और डूब क्षेत्र में पार्क निर्माण कार्य जोरों से चल रहा है. वैसे भी पर्यावरण विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि गोमती जैसी नदी का बहुत अच्छा उपयोग भी किया जा सकता था परन्तु किसी की भी न सुनने की कसम खा चुकी सरकार ने इसके प्राकृतिक स्रोतों के साथ बहुत खिलवाड़ कर लिया है.
गोमती बैराज के आसपास की ज़मीन पर पिछले कुछ महीनों से जिस तरह से हजारों ट्रक मिट्टी लाकर इस क्षेत्र के प्राकृतिक स्वरुप को बिगाड़ने की कुचेष्टा चल रही है उससे अंततः गोमती नदी के जीवन पर ही संकट आने की संभवना बढ़ गयी है. किसी भी नदी के डूब क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण आस पास की आबादी और कृषि योग्य भूमि के लिए बहुत ही विनाशकारी होता है. लखनऊ में जगह की कमी के कारण अब राज्य सरकार नदी को भी पाटना शुरू कर चुकी है. बरसात में जब नदी का डूब क्षेत्र बाधित होगा तब यही पानी शहरी क्षेत्र में घुसकर तबाही मचाएगा. अभी कुछ वर्ष पूर्व ही गोमतीनगर में सरकार की आँखों के तारे कानूनी विशेषज्ञ सतीश चन्द्र मिश्र के मकान तक गोमती अपनी दस्तक दे चुकी हैं तब कई मंत्रियों और अधिकारियों के बंगले के सामने पानी ही पानी हो गया था. पर लगता है कि कोई भी व्यक्ति गोमती की उस चेतावनी को समझ नहीं पाया है और आने वाले समय में लखनऊ का एक बड़ा भाग गोमती की विनाशलीला देखने के लिए चुपचाप तैयार हो रहा है.
विकास का एक पैमाना होना ही चाहिए और उस पर किसी बात से समझौता भी नहीं होना चाहिए पर विकास की ऐसी अंधी दौड़ जिसमें अरबों रूपये बहाने के बाद अगर लोगों को बाढ़ ही झेलनी है तो फिर सरकारें और सरकारी तंत्र की क्या आवश्यकता है ? कोई भी सरकार शपथ लेते समय किसी संविधान और कानून की बात क्यों करती है ? जब इस तरह का ढोंग कानून के साथ ही करना है तो फिर क्यों झूठी शपथ उठाना ? वैसे भी आज के नेताओं ने अपनी विश्वसनीयता तो खो ही दी है फिर इस तरह के निर्णयों से आखिर कौन विश्वास बढ़ने वाला है ? जब सरकार इस तरह से काम करने लगती है तो कोई भी उसके साथ नहीं खड़ा होना चाहता आज जो ठेकेदार, अधिकारी अपने लाभ के लिए इसके साथ हैं वे कल इसी कारण से किसी और के साथ खड़े होकर देश को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगें. कुओं तालाबों पर कब्ज़ा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की धमकी देने वाली सरकार के खुद ही नदी पर कब्ज़ा करने के लिए क्या सज़ा होनी चाहिए ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अब गोमती में भी हाथी खड़े होंगे, ये देश हाथ और हाथी के बीच बर्बाद हो रहा है
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