मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 25 जुलाई 2010

उमर अब्दुल्लाह और कश्मीर

राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में जम्मू कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्लाह की मांग से लगता है कि उन्हें मामलों की समझ अभी भी आनी बाक़ी है. अपने अनुकूल राजनैतिक परिस्थियाँ होने से कोई पद तो पा सकता है उस पद की ज़िम्मेदारियों को समझने और सुचारू रूप से चलने के लिए एक दृढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है जिसकी कमी आज के राजनेताओं में देखी जा रही है. निश्चित तौर पर उमर कश्मीर की नयी पीढ़ी के नेता हैं पर जिस तरह से उन्होंने यह पद प्राप्त किया है उसके कारण बहुत बार उनके कदम इस अशांत राज्य के लिए समस्या बन जाते हैं. केंद्र में राज्य मंत्री होना अलग बात है और कश्मीर का मुख्य मंत्री होना बिलकुल अलग ?
      जिस सेना और सीआरपीएफ़ ने कश्मीर की जनता को आतंक के कुचक्र से निकालने में पूरी मदद की हो आज उसी को वे सुरक्षा व्यवस्था से अलग करना चाहते हैं ? क्या उमर के पास कोई जवाब है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने कश्मीर पुलिस को मज़बूत करने और उन्हें अत्याधुनिक बनाने के लिए क्या प्रयास किये हैं ? एक राज्य जो आज भी पूरी तरह से केंद्रीय सहायता पर निर्भर है जिसके अपने आर्थिक हितों पर कश्मीर के कुछ बहके हुए लोग ही चोट पहुंचा रहे हैं फिर भी उमर को लगता है कि कश्मीर की समस्या आर्थिक नहीं राजनैतिक है ? अगर कश्मीर में ५.९ लाख युवा बेराजगार हैं तो क्या राज्य सरकार उन्हें शांति के फायदे और स्थानीय उद्योगों को चलाने के लिए प्रशिक्षित कर रही है ? आख़िर यह कह कर किस तरह से काम चलेगा कि कश्मीर में काम की समस्या है ?
        कश्मीर के नेता आख़िर यह कब समझने की स्थिति में आयेंगें कि वहां पर सारा कुछ पाकिस्तान का किया धरा है और जब सरकार किसी भी मामले में काफी दिनों तक संवेदना शून्य बनी रहती है तो आतंकियों को अपना खेल खुलकर खेलने का अवसर मिल जाता है ? क्यों नहीं ये नेता यह देख पाते हैं कि कश्मीर में युवकों को भटकने का काम हुर्रियत और पाक स्थित आतंकी संगठन कर रहे हैं ? जिस तरह से कश्मीर में सेना और केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों ने इतने सालों की मेहनत के बाद शांति की बयार बहाने में सफलता पाई है उस पर कुछ नेता ही पानी फेरने में लगे हुए हैं. आज भी अगर ये नेता बोलने के लिए बचे हैं तो सिर्फ इन बलों की सुरक्षा के कारण वर्ना कोई भी ऐसा नेता नहीं है जिस पर आतंकियों ने हमला ना किया हो ?
        केंद्रीय अर्ध सैनिक बल किसी भी तरह से कहीं हस्तक्षेप नहीं करते हैं कश्मीर के स्वर्ग को नरक बनाने में कश्मीर के राजनेताओं और पाक स्थित आतंकी संगठनों का हाथ है आज जब स्थिति फिर से सही हो रही है तो फिर से इन बलों को वापस बुलाने और उस सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को ख़त्म करने की बात की जा रही है ? क्या उमर के पास इतनी राजनैतिक इच्छा शक्ति है कि वे वास्तव में इन सब के बिना भी कश्मीर को चला सकें ? देश को उनकी क्षमता पर शक़ है क्योंकि जून की घटना के बाद उन्होंने जिस तरह से पूरी घाटी में अराजकता को बढ़ने दिया फिर सुरक्षा बलों पर ही अपनी अक्षमता को मढ़ने की कोशिश की उसके बाद क्या कुछ और विश्वास करने लायक बचता भी है ?       


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1 टिप्पणी:

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