कश्मीर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज मंगलवार को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है जिसमें सुरक्षा उपायों के साथ अन्य विकल्पों पर भी विचार किये जाने की सम्भावना है. जिस तरह से केंद्र सरकार ने कश्मीर के सभी पहलुओं के बारे में सभी से बात करने की अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है उसके बाद कुछ भी कहने की गुंजाईश बहुत कम ही रह जाती है. आज अगर कश्मीर में इतनी समस्या है तो उसका कारण वहां के स्थानीय राजनेता हैं न कि पूरे देश के नेता ? वहां पर जनता को जो भी कष्ट हो रहे हैं वे उनके अपने बनाये हुए हैं इसमें भी पूरे देश की कोई भूमिका नहीं है. आज जितनी केंद्रीय धनराशि कश्मीर को सहायता के रूप में दी जा रही है उसके बाद भी अगर कोई केंद्र सरकार पर यह आरोप लगता है कि कश्मीर के साथ भेद भाव किया जा रहा है तो यह उसकी नासमझी ही होगी.
जिस तरह से आम कश्मीरी अराजक नहीं है पर अराजकता करने वालों पर आम कश्मीरी कोई रोक भी नहीं लगा पा रहे हैं तो उससे तो यही लगता है कि पूरा कश्मीर भारत के खिलाफ़ इस तरह के प्रदर्शन में शामिल है ? वर्तमान में हो रहे प्रदर्शनों में जिस तरह से सरकारी संपत्ति और रेल को नुकसान पहुँचाया गया वह किसी भी आन्दोलन के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है ? आख़िर इन लोगों को यह क्यों नहीं समझ आता कि शेष भारत के लोग कश्मीर आने पर रेल का उपयोग फिलहाल नहीं कर रहे हैं और इसका पूरा इस्तेमाल कश्मीर की जनता एक सुगम और सस्ते साधन के रूप में कर रही हैं फिर इसको नुकसान पहुँचाने से किस कश्मीरी को क्या फायदा होने वाला है ? जब कुछ घटिया नेताओं के कहने पर लोग अपनी समझ को ही गिरवी रख चुके हों तो उनको कौन समझा सकता है ? कश्मीर में जो भी विकास की गतिविधियाँ चल रही हैं उनको रोकने से किसका नुकसान होने वाला है ?
जो लोग लोगों को भड़का कर ऐसे काम करवा रहे हैं उनको यह भी नहीं पता है कि वे आख़िर में कश्मीरी हितों को ही चोट पहुंचा रहे हैं ? जब भी किसी मसले पर बात करने का समय आता है तो ये लोग कुछ ठोस प्रस्ताव लेन के स्थान पर केवल विरोध करने पर आमादा हो जाते हैं ? कश्मीर में पीडीपी और मुफ्ती मोहम्मद सईद का परिवार राजनीति में होते हुए भी हमेशा संदेहास्पद बना रहता है ? जिस तरह से वे बात चीत करने के लिए आगे आने से कतरा रहे हैं वह कोई अच्छा संकेत नहीं है. केंद्र सरकार जिस तरह से कश्मीर के लिए आर्थिक पैकेज देती रहती है उससे अब तक तो कश्मीर की हालत बहुत अच्छी हो जानी चाहिए थी पर आज भी वहां पर विकास और बेरोज़गारी का रोना बना हुआ है ? भ्रष्टाचार ने कश्मीर के नेताओं को भी लपेट रखा है आख़िर केंद्र से दी जाने वाली सहायता कहाँ गायब हो रही है कश्मीर के पिछड़ेपन की बात तो लोगों को याद रहती है पर कश्मीर के मूल निवासियों द्वारा जो घोटाले इन योजना राशियों में किये जा रहे हैं उनका कोई ज़िक्र नहीं होता ? अच्छा होता कि आम कश्मीरी युवक अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल इस भ्रष्टाचार से लड़ने में लगाते और कश्मीर को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाते. पर सही मार्ग पर चलना बहुत कठिन होता है और ग़लत मार्ग पर चलकर जल्दी ही चर्चा में आया जा सकता है. शायद आज कश्मीर कि युवा पीढ़ी इसी तरह के किसी छोटे मार्ग पर आगे बढ़ना चाह रही है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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