कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की उत्पत्ति स्थल कन्नौज आज कल फिर से जाति बिरादरी के चक्कर में एक बार विवादों के घेरे में है. उत्तर प्रदेश की मध्याह्न भोजन योजना के तहत दलित रसोइयों की नियुक्ति के एक आदेश ने बिना बात के ही पूरे समाज में बखेड़ा खड़ा कर दिया है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में जातियां आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और गाँवों में बहुत सारे विवाद केवल इसी कारण से होते रहते हैं. एक छोटी सी बात जिसके कारण उस सरकार को घुटने टेकते हुए अपने इस विवादित हो गए आदेश को चुप चाप वापस लेना पड़ा जो सर्व जन की बातें करते नहीं थकती है ? अच्छा होता कि इस तरह से बल पूर्वक काम करने के स्थान पर लोगों को छुआ छूत को लेकर समझाने का प्रयास किया जाना चाहिए था. पर वोटों का लालच और सरकारी मशीनरी का दबाव कुछ इस तरह से काम करने लगता है कि किसी के लिए भी सही गलत में फैसला करना कठिन हो जाता है. सरकारें एक तरफ तो खुद ही जाति वाद को बढ़ावा देने में लगी हों हैं और दूसरी तरफ वे जाति गत भावना को ख़त्म भी करना चाहती हैं ? एक तरफ सभी दलों को जाति आधारित जनगणना बहुत बड़ी ज़रुरत महसूस होती है तो दूसरी तरफ वे सामाजिक सद्भाव बढ़ने की बातें भी करने से नहीं चूकते हैं ?
यह सही है कि जाती विद्वेष की जो जड़ें समाज में बहुत गहरे तक घुसी हुई हैं उनको इतनी आसानी से नहीं बदला जा सकता है फिर भी कहीं न कहीं से कुछ ऐसे प्रयास किये जा सकते हैं जो लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने का काम तो कर ही सकें ? माया सरकार ने यह काम केवल दलितों के वोट इकठ्ठा रखने के लिए किया था पर जब उसे यह लगने लगा कि जितने दलित वोट उनके खाते में जुड़ नहीं रहे हैं उससे अधिक तो कटे जा रहे है तो आनन् फानन में इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया. पता नहीं देश के नेताओं के पास आज भी मुद्दों की इतनी कमी क्यों है कि वे बार बार अपने स्तर से इस छुआ छूत के खेल को खेलकर अपने वोट बढ़ाना चाहते हैं ? यह भी सही है कि कहीं न कहीं किसी न किसी स्तर पर सामाजिक भेद की गहरी खाई अब धीरे धीरे अपनी गहराई खोती जा रही है पर इस तरह के किसी भी फैसले से जहाँ ऊंची जातियों को अपने को अच्छा और बड़ा दिखाने का अवसर मिल जाता है वहीं कमज़ोर तबकों को एक बार फिर से उन्हीं ज़ख्मों को सहलाना पड़ता है जिनके कारण वे आज भी समाज में पूरे मन से स्वीकारे नहीं जा सके हैं ?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा का जाति और गोत्र का विवाद अभी भी नहीं रुक पाया है और जब से इस सारे मामले में नेताओं ने अपनी टांग अड़ा दी है तबसे ही अपनी मर्यादा की रक्षा करने के पीछे जैसे लोगों में पागलपन सवार हो गया है और आनर किलिंग के मामलों में अचानक जैसे बाढ़ आ गयी है ? अच्छा होगा कि इस तरह के सामाजिक ढांचे को अपने आप ही ढहने दिया जाये और इस मामले में नेता न ही पड़ें तभी सभी का कल्याण है ? अगर कहीं पर भी किसी तरह की ज़बरदस्ती करके कुछ भी करने का प्रयास किया जायेगा तो उसका उल्टा असर ही पूरे समाज पर देखने को मिलेगा. देश आज अन्तरिक्ष की तरफ देख रहा है तो कुछ नेता लोग आज भी अपने हितों के इए इस तरह के मामलों को हवा देकर पूरी दुनिया में भारत का नाम ख़राब करने में लगे हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अच्छा होता कि इस तरह से बल पूर्वक काम करने के स्थान पर लोगों को छुआ छूत को लेकर समझाने का प्रयास किया जाना चाहिए
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