मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

देवबंद और कश्मीर

मुसलमानों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद द्वारा कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा कहा जाना कश्मीर घाटी के अलगाव वादी नेताओं और गुटों को रास नहीं आया है. उल्लेखनीय है कि इस धार्मिक संस्था ने इस बात का मज़बूती से समर्थन किया था कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा हैं और कश्मीर के किसी भी व्यक्ति या समूह को भारतीय संविधान के दायरे में रहकर ही बात चीत करनी चाहिए. लगता है कि कश्मीर के अलगाव वादी नेताओं ने अब सच का सामना करना भी छोड़ दिया है. देवबंद का पूरी दुनिया के मुसलमानों पर बहुत प्रभाव है और अगर वे कुछ कहते हैं तो उसका पूरे मुस्लिम समाज पर असर भी होता है.
            आज अगर देवबंद इस बात को मज़बूती से कह रहा है तो वहां पर भी कुछ गंभीर मंथन के बाद ही इस तरह का बयान सामने आया होगा. भारत सरकार या कोई कश्मीरी गुट उनके पास इस मसले पर उनकी राय पूछने तो नहीं गया था ? इस संस्थान को यह लगा कि कश्मीर घाटी में वास्तव में इस्लाम के नाम पर मुसलमानों को ही बहत बड़ा नुकसान पहुँचाया जा रहा है तभी उसने इस तरह की बात कही है. कश्मीरी नेता इस बात को भूल जाते हैं कि देश में बहुत सारे मुसलमान रहते हैं और उनको भारत से कोई शिकायत नहीं है.  भारतीय मुसलमानों का बहुत बड़ा समूह १९४७ में देश के बंटवारे के भी खिलाफ़ था पर उस समय राजनैतिक प्राथमिकताओं ने इस तरह की किसी भी बात को अनसुना कर दिया था. आज इस्लाम के नाम पर बने पाक को पूरी दुनिया एक विफल राष्ट्र कह रही है.
             आज अगर देवबंद को यह लग रहा है कि इस्लाम के पीछे छिपे ये कश्मीरी नेता इस्लाम का ही नुक्सान कर रहे है और वे सही रास्ता दिखाने की कोशिशें कर रहे है तो कश्मीरी नेताओं को यह हज़म नहीं हो रहा है. एक तरफ़ कश्मीर की मुख्य शिकायत यही है कि घाटी में मुसलमानों पर अत्याचार किया जा रहा है पर जब इस्लाम की रोशनी में कुछ कहा जा रहा है तो वह उनके स्टैंड से मेल नहीं खा रहा है ? आज अगर देवबंद इस सच्चाई को स्वीकार कर चुका है तो कल को घाटी के मुसलमान भी इसे स्वीकार कर लेंगें क्योंकि दुनिया अब जैसी है वहां पर किसी भी तरह के नए क्षेत्र को बनाना और उसको समर्थन देना अब बहुत कठिन हो चुका है. अच्छा ही कि कश्मीरी इस्लामिक अलगाव वादी समय की इस पुकार को अनसुना न करें और अब समय है कि कुछ अच्छा करने की कोशिश करें जिससे कश्मीर घाटी में भी विकास की गाड़ी पटरी पर आ सके.

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2 टिप्‍पणियां:

  1. यह किसी भी धार्मिक संगठन द्वारा दिया गया सकारात्मक सुझाव है ।

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  2. इस स्कारात्मक पहल को स्वीकारना चाहिए। इसी मे देश का व सबका हित है।

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