मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

आतंक/ विकास/ भ्रष्टाचार

असम में कछार हिल्स के विकास के लिए दिए गए धन को किस तरह से कर्मचारी-नेता-ठेकेदार गठजोड़ ने आतंकियों तक पहुंचा दिया यह देश में अपने तरह के भ्रष्टाचार का पहला और अनूठा मामला है जो एनआईए की जांच के बाद सामने आया है. इस जांच एजेंसी ने इस मामले में कई लोगों के खिलाफ गुवाहाटी की विशेष अदालत में रिपोर्ट दर्ज करा दी है. अभी तक यही कहा जाता था कि सरकार देश के दूरस्थ इलाकों में विकास के लिए धन ही नहीं देती है जिससे वहां पर विकास के काम नहीं हो पाते हैं और लोगों में असंतोष बढ़ता है पर इस तरह के खुलासे के बाद क्या कोई सरकार पर आरोप लगा सकता है ? जो पैसा दिया गया उसका कहाँ उपयोग कर लिया गया ?
      इस मामले में सबसे चिंता जनक बात तो यह है कि इस लूट और देश द्रोह के मामले में सरकारी अधिकारी, नेता और ठेकेदार सभी शामिल रहे. उन्होंने इस धन को कोलकाता के एक व्यवसायी के माध्यम से मिजोरम के हथियार तस्कर तक पहुँचाया जिससे बाद में हथियारों की खेप भी ली गयी. इस मामले में खरीदे गए अत्याधुनिक हथियार भी एजेंसी ने बरामद कर लिए हैं. अब यह स्थिति बनाने के लिए आखिर कौन ज़िम्मेदार है ? केंद्र या राज्य सरकार तो विकास के लिए केवल धन उपलब्ध करा सकती हैं पर उस धन के दुरूपयोग पर हर समय नज़र रख सकना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है. आज से २५ साल पहले राजीव गाँधी ने यह पहली बार स्वीकार किया था कि विकास के नाम पर भेजे जाने वाले धन का एक बहुत बड़ा हिस्सा रास्ते में ही गायब हो जाता है और यह स्थिति आज भी बनी हुई है.
      अब विचार करने लायक बात यह है कि आखिर कब तक यह सब चलता रहेगा ? इस सारे मामले में यह सिर्फ इसलिए इतनी आसानी से हो रहा है क्योंकि आम जनता ने इस मामले में सोचना बंद कर दिया है. ५ साल में एक बार वह अपने कर्तव्य को मात्र वोट डालकर  पूरा कर लेती है और फिर उसके आस पास क्या हो रहा है इससे उसका कोई सरोकार नहीं होता है ?  जनता की जागरूकता ही सबसे बड़ी चीज़ होती है लोकतंत्र को अगर सफलता पूर्वक चलाना है तो जनता को यह समझना ही होगा कि इस मामले में कोई अन्य रास्ता चुनने से देश को खोखला करने वाले नेता-अधिकारी-ठेकेदार दीमक की तरह खा जायेंगें. जागो जनता अब तो जग जाओ कहीं ऐसा ना हो कि किसी दिन ये हमें ही बेच लें ?    


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