हरियाणा में लागू भूमि अधिग्रहण कानून के माध्यम से लगता है अगले विधान सभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस ने माया सरकार को कटघरे में खड़ा करने का मन बना लिया है. अभी तक जिस तरह से उत्तर प्रदेश में बंगाल की तरह भूमि अधिग्रहण को लेकर बराबर बवेला मचा रहता है उसको देखते हुए अब इस बात की आवश्यकता है कि पूरे देश में विकास के लिए किये जाने वाले किसी भी भूमि अधिग्रहण के लिए एक समान कानून बनाये जाएँ . अभी तक अलग अलग राज्यों में इस मसले के लिए कानूनों में काफी अंतर है.
अभी तक पूरे देश में एक समान कानून बनाने के बारे में किसी भी स्तर पर कोई विचार भी नहीं किया जा रहा है. इस अधिग्रहण के मामले पर पूरे देश में सबसे उपयोगी एवं व्यावहारिक रूप गुजरात ने प्रस्तुत किया है जहाँ पर किसान की केवल आधी भूमि ही ली जाती है और बाकि आधी योजना के अनुसार विकसित करके किसान को वापस कर दी जाती है. इससे जहाँ विकास के लिए भूमि भी मिल जाती तो वहीं किसान को आधी भूमि के साथ मुआवज़ा भी मिल जाता है. विभिन्न राज्यों में विकास की गतिविधि इतनी कम है कि आज तक उन्होंने इस बारे में ठीक से सोचना भी नहीं शुरू किया है. गुजरात में विकास की रफ़्तार का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वहां पर टाटा ने नैनो का प्लांट रिकार्ड समय में बनाकर पूरा कर लिया और उससे उत्पादन भी शुरू हो गया.
समय के साथ बदलने वाले ही विकास की दौड़ में आगे रह सकते हैं आज तक देश में हर मुख्यमंत्री अपने अनुसार ही सोचता है. एक समय चन्द्र बाबू नायडू ने आन्ध्र को तकनीकी क्षेत्र में इतना कुछ दे दिया था कि आज भी वह विकास के आयाम छू रहा है. विकास के सही मायने तभी समझे जा सकते हैं जब सम्पूर्ण विकास की बातें की जाएँ ? केवल उद्योगपतियों के हितों को ध्यान में रखकर किसान की अनदेखी करना अब किसी को भी भारी ही पड़ने वाला है. दिल्ली के पास होने के कारण अब विकास की गतिविधियाँ उत्तर प्रदेश के दरवाजे पर खटखटा रही है और अगर अब भी इन सारे मसलों पर ठीक तरह से ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में प्रदेश का विकास के मुद्दे पर पिछड़ना तय ही है. साथ ही किसानों के लिए कोई बहुत अच्छी खबर भी नहीं आने वाली है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
vikaas ho raha hai, lekin bade aadmiyon kaa.
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