मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

राज्य सभा की आवश्यकता ?

भोपाल में चुनाव सुधारों पर बोलते हुए मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज पाटिल ने राज्य सभा की आवश्यकता पर जो प्रश्न चिन्ह लगाया उस पर गहन विचार किये जाने की आवश्यकता है. यह सही है की भारत जैसे विशाल देश को चलाने के लिए बहुत सारी आवश्यकताएं निरंतर ही सामने आती रहती हैं पर जिस तरह से दिल्ली में राज्य सभा और कई अन्य प्रदेशों में विधान परिषद के रूप में उच्च सदन चल रहे हैं उसे देखते हुए इन पर व्यापक रूप से मंथन किये जाने की आवश्यकता है. यह सही है की यह व्यवस्था अंग्रेजों द्वारा बनायीं गयी थी और इसके माध्यम से वे समाज के प्रबुद्ध लोगों को भी देश की बदलती हुई स्थितयों से जोड़ कर रखना चाहते थे वैसे उन्होंने इस मंशा का पालन बहुत कम ही किया और अपने चहेतों को इस सदन में भेजने की परंपरा बनायीं.
             देश में जब संसाधनों की इतनी कमी का रोना रोया जाता है तो इस तरह के विधायी कार्यों के लिए देश पर आर्थिक बोझ डालना कहाँ तक उचित है यह बात समझ से परे है ? वर्तमान में जिस तरह से संसद में गतिरोध बना उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ? क्यों नहीं ऐसा कानून होना चाहिए क़ि हंगामे की भेंट चढ़ने वाले दिन के भत्ते सांसदों को नहीं दिए जाएँ और उनके वेतन में भी काम न करने के कारण १० प्रतिशत की कटौती की जाये और यदि संसद में उन्होंने किसी काम में ठीक से भाग नहीं लिया है तो उनके वेतन से दिल्ली आने जाने का खर्चा भी काट लिया जाए ? यह सब जब तक नहीं हो पायेगा देश की संसद इसी तरह से कुछ मुद्दों पर काम नहीं कर पायेगी ? बोफोर्स मामले पर इसी तरह का गतिरोध आया था पर जिस संसदीय समिति की मांग में इतना समय गंवाया गया है तो क्या पहले की किसी संसदीय समिति ने कोई बहुत अच्छे और रचनात्मक तथ्य सदन के सामने रखे हैं ?
           इस तरह के किसी भी काम में हमेशा यह ध्यान दिए जाने की आवश्यकता होती है क़ि आखिर इन सब बातों से देश को क्या हासिल होने वाला है ? सदन में नियमों के तहत बहस करायी जा सकती है पर विपक्ष को इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं रही और पता नहीं क्यों सरकार भी समिति बनाने के लिए क्यों नहीं राज़ी हुई ? असल में यहाँ पर मुद्दा देश से ज्यादा मूंछ का बन गया अब ऐसी स्थिति में कौन अपनी मूछें नीची करता भले ही इनकी फर्जी मूंछों के चक्कर में देश की नाक ही कट जाये ? ऐसी सरकार और विपक्ष किस काम के हैं जब वे इतने बड़े घोटाले की जांच के तरीके पर ही एक निर्णय नहीं ले सकते हों ? जब देश में हर तरफ पूँजी का प्रवाह बढ़ रहा है तो उसी अनुपात में भ्रष्टाचार भी पनपता जा रहा है. वास्तव में अब आवश्यकता है एक पूर्ण सुधार आयोग की जो देश में इन सभी बातों पर गहन मंथन करके इसकी कमियों को सुधारने के लिए कुछ सुझाव दे सके जिन पर अमल करना आसान हो. 
   

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2 टिप्‍पणियां:

  1. नाकारापन, भ्रष्टाचार दूर हो जाये तो सब ठीक हो जाये.

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  2. आपने दो प्रश्‍न एक साथ उठाए हैं। पहला है राज्‍यसभा। राज्‍य सभा का औचित्‍य वास्‍तव में परिवर्तित हो गया है जबकि होना यह चाहिए था कि समाज के विभिन्‍न प्रबुद्ध वर्गों का वहाँ प्रतिनिधित्‍व होना चाहिए था। इसलिए जनता को यहाँ भी राजनैतिक नियुक्तियों पर आपत्ति प्रकट करनी चाहिए। दूसरा है संसद का कार्य। विपक्ष का कार्य होता है कि सत्ता पक्ष की गड़बड़ी या मनमानी पर ध्‍यान आकर्षित करना। जब संसद के समय विपक्ष मौजूद है तो संसद की कार्यवाही नहीं हो रही है ऐसा कहना ही सत्ता पक्ष को तानाशाही की ओर प्रवृत्त करना है। सत्ता पक्ष ने भ्रष्‍टाचार किया और विपक्ष जवाब मांग रहा है तो जवाब ना देकर संसद को छोड़कर भाग जाना कहाँ तक उचित है? आज जनता को सामने आना चाहिए और संसद में ही नहीं सड़कों पर भी भ्रष्‍ट राजनेताओं से जवाब मांगना चाहिए। क्रांतियां जब होती हैं तो कुछ ना कुछ कुर्बानी देनी पड़ती हैं। कुछ दिन संसद की कार्यवाही थोडी देर के लिए क्‍या बाधित हो गयी, यह एक मुद्दा ही बन गया। तब क्‍या देश से भ्रष्‍टाचार ऐसे ही मिट जाएगा? हम तो शतरंज खेलते रहेंगे और देश चलता रहेगा।

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