मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

उ० प्र० में सरकारी प्राथमिकतायें ?

उत्तर प्रदेश सरकार किस तरह से काम कर रही है इसके बहुत सारे उदाहरण अभी तक देखने को मिल गए हैं पर ताज़ा मसला ऐसा है जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि रोम जल रहा था और नीरो वास्तव में वंशी बजा रहा था ? राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत केंद्र सरकार ने बहुत सारी धनराशि राज्यों को केवल इसलिए दी है जिससे वे अपने यहाँ पर स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को सुधार सकें. इसी क्रम में राज्य सरकार ने प्रदेश में लगभग ९८० अत्याधुनिक एम्बुलेंस खरीदने के लिए तैयारियां की थीं और इसके लिए भुगतान भी किया जाने लगा अब जबकि समय प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं अपने निम्नतम स्तर पर हैं तो भी इन एम्बुलेंसों में उपकरण लगाने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं किये जा रहे हैं और इसमें से खरीदी गयीं गाड़ियाँ कम्पनी के देवा रोड स्थित यार्ड में आज भी खड़ी हैं अगर यह काम नहीं किया जाना था तो किस लिए इतनी गाड़ियों को खरीदा गया जब उनके लिए उपकरण लगाने की कोई व्यवस्था नहीं सोची गयी थी ?
           सवाल यह नहीं है कि आखिर कब प्रदेश के लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाएंगीं ? बल्कि बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार के पास इतनी इच्छा शक्ति नहीं है तो वह इतने बड़े और जन साधारण से जुड़े मुद्दे को केवल आम काम काज की तरह कैसे ले सकती है ? आज भी किसी भी मौके पर यह सरकार और इसके मंत्री गण केंद्र सरकार से पैसे न मिलने का रोना रोने में बहुत आगे रहते हैं पर जिन मदों में पैसा आवंटित भी किया जा रहा है उसका कितना सदुपयोग और दुरूपयोग किया जा रहा है इसके बारे में कोई भी ज़बान खोलना नहीं चाहता है ? यह सही है कि इतने बड़े प्रदेश में कोई भी काम एक झटके में नहीं किया जा सकता है और अगर सरकार कुछ विशेष मौकों पर ही कुछ करना चाहती है तो उसके पास अवसरों की कोई कमी नहीं है. पर जनता से जुड़े इस तरह के काम क्या किसी विशेष दिन के इंतज़ार में रोक कर रखे जाने चाहिए ? 
            अच्छा होता कि सरकार कुछ चुनिन्दा जिलों को पहले इसके लिए चुन कर यह सेवा चालू करवा देती जिससे इस सेवा के बीच में आने वाली समस्याओं से भी निपटा जा सकता और उनमें सुधार की गुंजाईश भी रहती ? पर कोई भी काम बहुत बड़े स्तर पर बड़े दिखावे के साथ करने की मायावती की आदत को देखते हुए हो सकता है कि इतने दिनों तक सरकार के पैसों को पहले से ही दे चुकने भी गाड़ियाँ केवल इसलिए ही धूल खा रही हों कि वे पूरे प्रदेश में यह सेवा अपने जन्मदिन से शुरू करना चाहती हों ? अच्छा है अगर ऐसा कुछ भी है पर जिस प्रदेश में हर चीज़ का अकाल सा हो वहां पर कोई भी काम छोटे स्तर पर क्यों नहीं शुरू कर दिया जाता है ? इस सेवा को पहले चरण में शुरू किया जा सकता था और समय आने पर इसका माया उद्घाटन भी कर सकती थीं ? सरकारी धन को खर्च करने में यह बेदर्दी और खर्चने के बाद उसके बारे में कुछ भी नहीं पूछना आख़िर किस तरह से उचित कहा जा सकता है ? ठीक है २०१२ तक वे कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं और इसके बाद जनता का जैसा आदेश होगा यह तो समय ही बताएगा ?     
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