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मंगलवार, 25 जनवरी 2011

देवबंद का विवाद ?

 देवबंद के नए प्रमुख मौलाना वस्तनवी के एक बयान को लेकर देवबंद से लेकर पूरे इस्लामी जगत में जिस तरह से बयान आने शुरू हो गए उनको देखते हुए मौलाना वस्तनवी ने एक बार फिर से अपने बयान को स्पष्ट करना पड़ा. जैसा कि सभी को पता है कि उन्होंने इस बारे में केवल गुजरात के विकास को एक माडल बताया था और कहा था कि गुजरात में मोदी के शासन में मुसलमानों के साथ कोई भेद भाव नहीं हो रहा है और सभी धर्मों के लोगों को समान रूप से अवसर मिल रहे हैं. यह बिलकुल सही भी है कि आज के गुजरात ने २००२ के दंगों को बहुत पीछे छोड़ दिया है और आज वहां पर विकास और सर्वांगीण विकास एक बहुत बड़ा मुद्दा है. इस विकास के मुद्दे पर मोदी सरकार पूरे अंक लेकर अच्छे से पास भी होती रही है.  जिस बात की तारीफ पूरी दुनिया कर रही है अगर उसी बात को मौलाना साहब ने कह दिया तो उन्होंने क्या ग़लत किया ? दूसरी बात वे स्वयं सूरत गुजरात के रहने वाले हैं जिससे उन्हें गुजरात के वास्तविक हालात बहुत अच्छे से पता हैं.
           देश में एक अलग तरह की बात हमेशा से ही काम करती रही है बहुत दिनों के बाद इस्लामी जगत के इतने प्रतिष्ठित केंद्र से खुली हवा के झोंके की तरह एक ऐसा बयान आया था जिसकी आज के समय में बहुत आवश्यकता है ? आज के समय में इस्लामी मूल्यों पर कुछ लोग हावी होते जा रहे हैं और जहाँ कहीं भी इस्लाम के उदार लोग होते हैं कट्टरपंथी उनकी आवाज़ को दबाने का ही प्रयास करते रहते हैं ? ऐसे माहौल में देवबंद से आया यह बयान पूरे जगत से मुस्लिम दुनिया के रिश्तों को सुधार सकता है पर जिस तरह से कुछ जगहों पर इस बयान को प्रस्तुत किया गया उससे तो यही लगता है कि कुछ लोग आज भी इस तरह के कामों में लगे हैं जिससे इस्लाम की बदनामी होती रहे ? आज क्या कारण है कि इस्लाम की सही तस्वीर प्रस्तुत करने वाले लोगों पर हमेशा ही प्रश्न चिन्ह लगाये जाते हैं ? आज ज़रुरत है इनके बयानों को सही ढंग से प्रस्तुत करने की ? दुनिया में देवबंद के बहुत सारे अनुयायी रहते हैं जिससे उन पर वहां से कही गयी बातों का बहुत अच्छा और गहरा प्रभाव पड़ता है.
         कुछ अख़बारों ने मौलाना साहब के स्पष्टीकरण को ऐसे छापा है जैसे कि अब उन्होंने अचानक ही मोदी को बहुत बुरा कह दिया हो ? आज भी हमारे अख़बार केवल मज़ेदार और ध्यान खींचने वाली कुछ ख़बरों के लालच में कुछ भी छाप देते हैं जिससे लगने लगता है कि किसी ने जो पहले कहा था अब वह उससे मुकर गया है ? आज जब गुजरात दंगों से जुड़े सारे मसले कोर्ट के सामने हैं तो क्या मौलाना वस्तनवी को यह अधिकार भी है कि वे इस तरह के बयान दें ? वे इस बात की गंभीरता को समझते हैं उन्होंने ऐसा बयान सिर्फ इसलिए दिया था कि आज अगर गुजरात जैसे राज्य में मोदी जैसे मुख्यमंत्री सभी को साथ लेकर चल सकते हैं तो देश में बाकि राज्यों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ? अख़बारों को केवल खबर की जगह सच्चाई को प्राथमिकता देना सीखना ही होगा क्योंकि कई बार मीडिया के इसी दबाव के कारण कोई व्यक्ति जो बदलाव कर सकता है वह भी कुछ नहीं कर पाता है ? अगर देवबंद ने उनको आगे किया है तो ज़ाहिर है कि वहां के बुद्धिजीवी भी दुनिया के सामने इस्लाम की सही तस्वीर लाना चाहते हैं पर इस तरह का अनावश्यक दबाव कहीं उनको भी खुली हवा में सांस लेने से रोक न दे और देश और दुनिया को एक बहुत अच्छे माहौल से वंचित भी कर दे  ?   
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