केंद्र ने जिस तरह से न्याय सुधारों की वकालत की है उससे लगता है कि अगर सब कुछ ठीक रहा और दृढ़ इच्छा शक्ति बनी रही तो हो सकता है कि आने वाले समय में देश में न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से पटरी पर लाने में कुछ किया जा सके. अभी तक जिस तरह से भारी भीड़ के चलते न्याय में देरी होना आम बात हो चुकी है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर पूरी न्याय व्यवस्था में सुधार को तेज़ी से लागू किया जाए तो बात बन सकती है पर केवल कुछ कदम उठाने से कुछ भी नहीं हो सकता है क्योंकि जब तक सही न्याय लोगों को नहीं मिलेगा तब तक लोग आगे की अदालतों के चक्कर काटने के लिए मजबूर होते रहेंगें जिससे बड़ी अदालतों में भी काम का बोझ बहुत बढ़ता रहेगा ?
आज के समय में सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि तहसील मुख्यालयों पर ही छोटे विवादों का समयबद्ध तरीके से निपटारा करने की प्रक्रिया अपनाई जाए जिससे लोगों को सही और त्वरित न्याय मिल सके. अभी तक जिस तरह से हर जिले में न्यायाधीशों के बहुत सारे पद खाली पड़े रहते हैं और उनको देखते हुए नए मुक़दमों के अम्बार लगते चले जाते हैं ? इन सभी को कोई जादू की छड़ी से नहीं निपटाया जा सकता है जिससे न्याय में और भी देरी होती चली जाती है. ग्राम स्तर पर पुरानी सरपंच की परंपरा को फिर से जीवित करने की आवश्यकता है जिससे छोटे मोटे विवाद वहीं पर निपटाए जा सकें और अदालतों में आने वाले कुछ केस का हो सकें क्योंकि जब तक नए विवादों को पनपने से नहीं रोका जायेगा तब तक कोई भी इस क्षेत्र में अच्छे से सुधारों के बारे में कुछ नहीं कर पायेगा.
अब समय है कि केवल बातें करने के स्थान पर देश की विधायिका न्यायपालिका के सहयोग से कुछ ऐसा करने की ठोस कोशिशें की जाएँ जिससे वास्तव में लोगों को राहत मिल सके. कहीं पर भी ऐसा कुछ होता अभी तक नहीं दिखाई देता है ? फिर भी केंद्र सरकार जिस तरह से वर्षों पुरानी नीतियों की समीक्षा कर रही है और आज के अनुसार उनको फिर से तर्क संगत बनाने का काम भी किया जा रहा है वह देश के आने वाले समय के लिए बहुत अच्छी साबित हो सकती है पर इस पूरे मामले में जिस तेज़ी के साथ और कठोरता के साथ कदम उठाये जाने चाहिए पर शायद अभी वह कहीं दूर की कौड़ी ही लगती है. फिर भी कहीं से कोई शुरू तो कर रहा है वह देश के लिए इसे ही एक अच्छा संकेत माना जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज के समय में सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि तहसील मुख्यालयों पर ही छोटे विवादों का समयबद्ध तरीके से निपटारा करने की प्रक्रिया अपनाई जाए जिससे लोगों को सही और त्वरित न्याय मिल सके. अभी तक जिस तरह से हर जिले में न्यायाधीशों के बहुत सारे पद खाली पड़े रहते हैं और उनको देखते हुए नए मुक़दमों के अम्बार लगते चले जाते हैं ? इन सभी को कोई जादू की छड़ी से नहीं निपटाया जा सकता है जिससे न्याय में और भी देरी होती चली जाती है. ग्राम स्तर पर पुरानी सरपंच की परंपरा को फिर से जीवित करने की आवश्यकता है जिससे छोटे मोटे विवाद वहीं पर निपटाए जा सकें और अदालतों में आने वाले कुछ केस का हो सकें क्योंकि जब तक नए विवादों को पनपने से नहीं रोका जायेगा तब तक कोई भी इस क्षेत्र में अच्छे से सुधारों के बारे में कुछ नहीं कर पायेगा.
अब समय है कि केवल बातें करने के स्थान पर देश की विधायिका न्यायपालिका के सहयोग से कुछ ऐसा करने की ठोस कोशिशें की जाएँ जिससे वास्तव में लोगों को राहत मिल सके. कहीं पर भी ऐसा कुछ होता अभी तक नहीं दिखाई देता है ? फिर भी केंद्र सरकार जिस तरह से वर्षों पुरानी नीतियों की समीक्षा कर रही है और आज के अनुसार उनको फिर से तर्क संगत बनाने का काम भी किया जा रहा है वह देश के आने वाले समय के लिए बहुत अच्छी साबित हो सकती है पर इस पूरे मामले में जिस तेज़ी के साथ और कठोरता के साथ कदम उठाये जाने चाहिए पर शायद अभी वह कहीं दूर की कौड़ी ही लगती है. फिर भी कहीं से कोई शुरू तो कर रहा है वह देश के लिए इसे ही एक अच्छा संकेत माना जा सकता है.
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उम्मीद कम है...
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