मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

थामस के तर्क ?

                                       केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पी जे थामस ने जिस तरह से कोर्ट में यह दलील दी कि उनकी नियुक्ति की समीक्षा नहीं की जा सकती कानूनी तौर पर उसमें दम तो है पर नैतिकता के आधार पर इसे उचित नहीं कहा जा सकता है ? जिस तरह से उन्होंने इस मामले में देश की सबसे बड़ी समस्या पर कोर्ट का ध्यान दिलाया है वह देश के लिए तो बहुत अच्छा है पर कहीं से भी इसे उठाने का यह सही मंच नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट केवल देश के कानूनों के तहत ही निर्णय सुना सकती है और अगर किसी मामले में सरकार को यह लगता है कि जन अपेक्षाओं की अनदेखी उसके वोट बैंक को चोट पहुंचाते हुए की गयी है तो वह कोर्ट के फैसलों के विपरीत कानून बना देने में भी नहीं चूकती है ? यह सही है कि किसी भी दागी व्यक्ति को किसी भी तरह के पद नहीं दिए जाने चाहिए पर जब देश में अपने लाभ के लिए कुछ भी किया जाने लगा है तो किस तरह से किसी एक व्यक्ति को इन सब से वंचित किया जा सकता है ?
                          थामस मामले में बाद में चाहे कुछ भी निकल कर सामने आये पर इसी बहाने से देश की विधायिका में मौजूद दागी तत्वों की तरफ़ इशारा करके थामस केस में कोर्ट को नए सिरे से सोचने और जनता के सामने यह तथ्य लाने में थामस के वकील के के वेणुगोपाल सफल तो हो गए हैं. तर्कों के आधार पर देखा जाए तो यह मामला थामस की मदद भी कर सकता है क्योंकि जब देश की संसद में १/४ माननीय सांसद किसी न किसी तरह की सज़ा और केस में फसे हुए हैं तो किस मुंह से ये नेता किसी अधिकारी को मात्र इस मानक पर अयोग्य ठहरा सकते हैं ? जन कानून बनाए वाले खुद ही दागी हैं तो कौन उनको यह बताये कि उनके बनाये कानून ठीक ही होंगे ? नेता अपने लिए किसी भी विधेयक में गुंजाईश बना ही लेते हैं पर जब बात अधिकारियों की आती है तो उनको कोर्ट में घसीटा जाता है ?
           अनियमितता के मामले में हर एक को एक ही तरह से देखा जाना चाहिए चाहे वो कोई भी व्यक्ति हो ? नेता, अधिकारी या अन्य किसी से भी इस तरह के मामले में एक ही तरह से निपटा जाना चाहिए क्योंकि एक देश में एक तरह के आरोपों के लिए दो तरह के कानून अब नहीं चल सकते हैं ? थामस ग़लत हैं तो उन्हें जाना होगा पर देश की छाती पर मूंग डालने वाले ये दागी नेता कब जायेंगें ? इनको जेल की सलाखों के पीछे भेजने की मंशा आख़िर कब दिखाई देगी ? शुचिता की अपेक्षा केवल थामस या अधिकारियों से ही क्यों ? नेता आख़िर किसी और दुनिया से आते हैं या फिर वे देश के लिए कुछ ख़ास कुर्बानी दे रहे हैं ? अब देश में इस तरह की दोगली नीतियों को हर हाल में ख़त्म किया जाना चाहिए क्योंकि जब जनता का गुस्सा सामने आता है तो बड़े बड़े हिल जाते हैं. अच्छा हो कि नियम सबके लिए सामान रूप से लागू किये जाएँ जिससे समानता का ढिंढोरा पीटने के स्थान पर समता वास्तव में दिखाई भी देने लगे ?   

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