लगता है उत्तर प्रदेश सरकार ने यह तय कर लिया है कि जनता के प्रति जवाबदेह होने की हर प्रक्रिया को वह कहीं से न कहीं से रोकने के अपने प्रयास जारी रखेगी. हाल ही में लोकायुक्त के कुछ तथाकथित सुझावों के कारण उनके पर कतरने के लिए जो प्रस्ताव सदन में लाया गया है उसका कई दलों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. इस प्रस्ताव को रखते समय भी विवाद हुआ था क्योंकि इससे लोकायुक्त की सिफारिशों से राज्य सरकार आसानी से मुंह मोड़ सकती है. अभी तक कहीं से भी लोकायुक्त के सुझाव किसी को नहीं मिले हैं केवल सुनी सुनाई बातों के दम पर ही ऐसा प्रस्ताव सदन में लाया गया है जिसका कई दल शुरू से ही विरोध कर रहे हैं. प्रदेश में जिस तरह से सत्ताधारी दल बसपा से जुड़े हुए लोगों के विरुद्ध शिकायतों का अम्बार लगता जा रहा है उसे देखते हुए ही सरकार ने लोकायुक्त के पर कतरने का मन बना लिया है जो कि संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है.
इस सरकार ने जिस तरह से संविधान की मूल भावना के साथ छेड़-छाड़ करना शुरू कर दिया है उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में यह किसी भी संवैधानिक बाध्यता को नहीं मानने वाली है. देश को एक संविधान के तहत ही चलाया जा सकता है और इस तरह से हर मोड़ पर जनता के हाथ से शक्तियां छीनने से काम नहीं चलने वाला है. कोई भी सरकार जब इस तरह के कदम उठाने लगती है तो उससे यही लगता है कि वह कहीं न कहीं से इस बात से डरती है कि मूल रूप में काम करने से उसकी सरकार का पत्ता साफ़ हो जाने वाला है. हो सकता है की कहीं से कोई लोकायुक्त विपक्षी दल द्वारा अतीत में नियुक्त किया गया हो और बाद में किसी अन्य दल की सरकार बन गयी हो पर इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता की सरकार उस पद के विरुद्ध इस तरह के काम करना शुरू कर दे ? सरकारें संविधान से बंधी ही अच्छी लगती हैं वरना उनके उखाड़ने में जनता कभी भी समय नहीं लगाती है.
इन सभी संकेतों से माया सरकार कहीं न कहीं जनता में अनजाने में ही यह सन्देश छोड़ती जा रही है की अब यह सरकार दोबारा नहीं बनने वाली है और शायद इसीलिए सरकार हर तरह से नियम बदल कर अपने अनुसार सब कुछ करना चाह रही है. अगर लोकायुक्त की सिफारिशों के ख़िलाफ़ सरकार कुछ करना चाहती है तो उसे पूरे देश में विभिन्न सरकारों द्वारा लोकायुक्तों के लिए बनाये गए दिशा निर्देशों पर विचार करना ही होगा. ऐसे ही किसी भी बात को मुद्दा बनाकर कोई भी सरकार सफल नहीं हो सकती है. बेहतर होता कि जिन लोगों के विरुद्ध शिकायतें आती जा रही हैं उनके वित्तीय अधिकार रोक कर निष्पक्ष जांच करा ली जाई और दोषियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जाएँ पर यह सरकार तो किसी भी तरह से केवल सत्ता से चिपकना चाहती है पर शायद मायावती को यह याद हो कि नेता किसी का नहीं होता है और आवश्यकता पड़ने पर इन नेताओं ने बड़े बड़े कद्दावरों को छोड़ दिया तो उनके साथ क्या कोई खड़ा नज़र भी आएगा ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस सरकार ने जिस तरह से संविधान की मूल भावना के साथ छेड़-छाड़ करना शुरू कर दिया है उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में यह किसी भी संवैधानिक बाध्यता को नहीं मानने वाली है. देश को एक संविधान के तहत ही चलाया जा सकता है और इस तरह से हर मोड़ पर जनता के हाथ से शक्तियां छीनने से काम नहीं चलने वाला है. कोई भी सरकार जब इस तरह के कदम उठाने लगती है तो उससे यही लगता है कि वह कहीं न कहीं से इस बात से डरती है कि मूल रूप में काम करने से उसकी सरकार का पत्ता साफ़ हो जाने वाला है. हो सकता है की कहीं से कोई लोकायुक्त विपक्षी दल द्वारा अतीत में नियुक्त किया गया हो और बाद में किसी अन्य दल की सरकार बन गयी हो पर इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता की सरकार उस पद के विरुद्ध इस तरह के काम करना शुरू कर दे ? सरकारें संविधान से बंधी ही अच्छी लगती हैं वरना उनके उखाड़ने में जनता कभी भी समय नहीं लगाती है.
इन सभी संकेतों से माया सरकार कहीं न कहीं जनता में अनजाने में ही यह सन्देश छोड़ती जा रही है की अब यह सरकार दोबारा नहीं बनने वाली है और शायद इसीलिए सरकार हर तरह से नियम बदल कर अपने अनुसार सब कुछ करना चाह रही है. अगर लोकायुक्त की सिफारिशों के ख़िलाफ़ सरकार कुछ करना चाहती है तो उसे पूरे देश में विभिन्न सरकारों द्वारा लोकायुक्तों के लिए बनाये गए दिशा निर्देशों पर विचार करना ही होगा. ऐसे ही किसी भी बात को मुद्दा बनाकर कोई भी सरकार सफल नहीं हो सकती है. बेहतर होता कि जिन लोगों के विरुद्ध शिकायतें आती जा रही हैं उनके वित्तीय अधिकार रोक कर निष्पक्ष जांच करा ली जाई और दोषियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जाएँ पर यह सरकार तो किसी भी तरह से केवल सत्ता से चिपकना चाहती है पर शायद मायावती को यह याद हो कि नेता किसी का नहीं होता है और आवश्यकता पड़ने पर इन नेताओं ने बड़े बड़े कद्दावरों को छोड़ दिया तो उनके साथ क्या कोई खड़ा नज़र भी आएगा ?
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