मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कर्तनिया घाट

                              उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के संरक्षित वन क्षेत्र कर्तनिया घाट में जाने के बाद ऐसा लगा जैसे प्रदेश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के समुचित उपयोग के बारे में प्रदेश सरकार के पास कोई नीति ही नहीं है. प्राकृतिक रूप से बहुत ख़ूबसूरत इस क्षेत्र को जिस उपेक्षा के साथ रखा गया है और यहाँ पर सभी तरह की सुविधाओं का जितना अभाव है उसे देखकर यही लगता है कि अगर सरकार चाहे तो इस स्थान को बहुत अच्छा बना सकती है और बड़े शहरों में रहने वाले लोग जब प्रकृति की गोद में कुछ समय बिताना चाहें तो उन्हें यह स्थान भी समझ में आये. सबसे बड़ी बात जो यहाँ की पारिस्थितिकी को बनाये रखने की है उसे देखकर लगता है कि केवल कुछ क्षेत्र को छोड़कर जंगल का अस्तित्व ही ख़त्म हो रहा है और जिस तरह से जंगल से निकल कर बाघ आबादी क्षेत्र में घूमने लगे हैं उसका भी यह बहुत बड़ा कारण हो सकता है. यहाँ पर जिस तरह से बाघ और मनुष्य का संघर्ष बढ़ रहा है वह दोनों के लिए ही ख़तरनाक है.
                                प्रकृति ने जिस तरह से इस स्थान को घाघरा और शारदा जैसी बड़ी नदियों के दोआबे पर बसाया है उससे यह भूमि बहुत ही उर्वर हो गयी है जिस कारण से भी यहाँ पर घनी आबादी बढ़ती ही जा रही है. आज भी यहाँ पर जंगल काटकर बराबर गन्ने आदि की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. गन्ने की अच्छी पैदावार को देखते हुए देश के बड़े औद्योगिक घरानों ने यहाँ पर चीनी मिल भी लगा रखी हैं. आख़िर कब तक इस तरह से केवल अपने हितों को साधने के लिए हम प्रकृति से छेड़-छाड़ करते रहेंगें ? यह सही है कि यह स्थान हमेशा से ही नेपाल से आने वाली इन नदियों के कारण बाढ़ से घिरता रहा है पर जिस तरह से यहाँ के घने जंगल को नुकसान पहंचा कर खेत बनाये जा रहे हैं कहीं न कहीं से ये स्थिति भी पूरे उत्तर प्रदेश की हिमालय की तराई में हर वर्ष आने वाली विनाशक बाढ़ के लिए भी ज़िम्मेदार है ? पहले जिन घने जंगलों जमीन पर उगने वाली वनस्पतियों से पानी का बहाव कुछ हद तक धीमा हो जाता था अब वह किसी भी तरह के कम नहीं हो पाता है और उसका असर बहराइच, लखीमपुर-खीरी, सीतापुर, श्रावस्ती, गोंडा तक दिखाई देता है. इन सभी स्थानों पर इन नदियों से होने वाली कटान को देखकर अच्छे अच्छे चकरा जाते हैं.
           
कर्तनिया घाट को पारकर ३ किमी पर नेपाल की सीमा शुरू हो जाती है और कहीं न कहीं से इस सीमा का दुरूपयोग भारत में तस्करी करके बहुत सारी वस्तुओं को लाने ले जाने के लिए भी किया जाता होगा ? वैसे तो इस क्षेत्र में एसएसबी जैसा बल भी मौजूद है पर कहीं से भी नहीं लगता कि पाकिस्तान से आने वाले जाली नोटों की खेप को भारत पहुँचाने से रोकने में यह कोई भूमिका निभा भी पाता होगा ? इस तरह से खुले बार्डर से देश के हितों को जितना चोट पहुंचाई जा रही है वह जम्मू कश्मीर में मिलने वाली चोट से कहीं से भी कम नहीं है ? राज्य सरकार इसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा मानकर सारा दारोमदार केंद्र पर डाल देती है और केंद्र के पास नेपाल सीमा के बारे में सोचने के लिए अभी समय ही नहीं है ? जब इस रास्ते से होकर पाकिस्तान भारत को अस्थिर करने की पूरी तैयारी कर लेगा तब ही शायद सरकारों के कान पर जूँ रेंगेगी ? अच्छा हो कि इस क्षेत्र को विकसित किया जाये और वनों के संरक्षण के साथ ही यहाँ पर सरकार की पहुँच बढ़ाई जाए और अगर देश की सुरक्षा से जुड़ा होने के कारण कहीं से भी लगे तो इस सीमा क्षेत्र में बिना परमिट घूमने पर पाबन्दी भी लगा दी जाये.   
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