जिस तरह से आजकल स्विस बैंक में गाँधी परिवार के खाते के बारे में एक बार फिर से बातें की जाने लगी हैं उससे यह लगता है कि अब देश को चलाने के लिए मुद्दों की कमी सी हो गयी है या फिर नेताओं के पास सोच की कमी है जिससे उन्हें वे मुद्दे फिर से बहुत बड़े लगने लगे हैं जिन पर जनता का ध्यान बंटाया जा सकता है ? दुनिया जानती है कि स्विस बैंक में पूरी दुनिया से धन जमा किया जाता है फिर केवल भारत में ही इस तरह का हो हल्ला मचाये जाने का क्या औचित्य बनता है ? ऐसा नहीं है कि किसी को इस देश को चलाने का अवसर नहीं मिला है आज की हर पार्टी कभी न कभी किसी न किसी तरह से केंद्र में सत्ता की भागीदार रही है पर जब सत्ता नेताओं के हाथ में होती है तो उन्हें ये सारे मुद्दे भूल जाते हैं और विपक्ष में आते ही उन्हें लगता है कि पूरे देश का सारा धन जैसे स्विस बैंक में ही जा रहा है और उनसे बड़ा देश का रखवाला कोई है ही नहीं ?
अगर किसी के खिलाफ़ पक्के सबूत नहीं हैं तो उसको इस तरह से आरोपित करना उचित नहीं कहा जा सकता है. आज कल यह जिस तरह से मुद्दा बन रहा है उसे देखकर यही लगता है कि इतिहास अपने आप को दोहराने जा रहा है ? १९८७ में वी पी सिंह ने बोफोर्स को मुद्दा बनाया था और बाद में सरकार में आने पर वे इस मामले में कुछ भी नहीं साबित कर पाए थे. पर इस पूरे मसले में देश का क्या नुक्सान हुआ इसका आज तक देश आंकलन भी नहीं कर पाया है ? एक ऐसा जननेता जो अगर दोबारा सत्ता में आता तो देश तरक्की के नए आयाम लिख रहा होता उसके राजनैतिक जीवन को असमय ख़त्म कर दिया गया ? उस समय राजीव गाँधी पर हर तरह के आरोप लगाये जाते थे पर उनकी सोच और देश को आगे ले जाने की अति महत्वाकांक्षा को उस समय लोग हंसी में उड़ाने की कोशिशें किया करते थे पर उनके कार्यकाल में स्थापित किये गए मानदंडों ने देश को सूचना प्रौद्योगिकी में पूरी दुनिया के सामने खड़ा कर दिया है. जब वे कंप्यूटर की बातें करते थे और देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने के सपने देखा करते थे तो लोग उन्हें देश को हवाई जहाज समझने वाला कहा करते थे ? और आज इन लोगों के पास उस नेता की सोच को दाद देने के स्थान पर और कुछ भी शेष नहीं बचा है ?
आज जब भाजपा के अडवाणी अपनी पार्टी के खुलासे में सोनिया-राहुल के नाम होने पर सार्वजानिक रूप से माफ़ी मांग चुके हैं तो उसके बाद भी देश के सामने क्या आने शेष है ? अब जेठमलानी जैसे व्यक्ति अपने पास बहुत कुछ होने का दावा फिर से कर रहे हैं ? इन्हीं जेठमलानी ने अपना पूरा जोर लगाने के बाद भी बोफोर्स में कुछ हासिल नहीं किया था फिर आज देश उनकी किसी भी बात पर क्यों ध्यान दे ? यह सही है कि राजनीति की अपनी मजबूरियां भी हुआ करती है पर उसके चक्कर में किसी पर इस तरह से आरोप लगाना कहाँ तक उचित हो सकता है ? कहीं यह सब फिर से संसद को ठप करने के लिए तो नहीं किया जा रहा है ? ज़ाहिर है अब जेपीसी मुद्दा नहीं है तो फिर विपक्षियों के पास मुद्दा कहाँ से आएगा ? देश की जनता के पैसे का दुरूपयोग करके ये नेता आख़िर किस तरह से देश के हितों की रक्षा करने का दावा करते फिरते हैं ? अच्छा हो कि संसद में हर तरह की बहस को किया जाये जिससे जनता भी समझ सके कि वास्तव में मुद्दे क्या हैं ? वैसे भी आजकल देश के पास क्रिकेट के अलावा सोचने के लिए कुछ भी नहीं है संसद में चाहे कुछ भी होता रहे पर खबर में तो क्रिकेट ही रहेगा ? जब देश अपने भविष्य के बारे में सोचने के स्थान पर केवल क्रिकेट ही सोचता है तो देश की प्राथमिकता खुद ही तय हो जाती है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बिअल्कुल सही कहा आपने। कुर्सी हाथ मे आते ही विपक्ष सब कुछ भूल जाता है। शुभकामनायें।
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