आख़िर कार जिस फैसले का देश को बहुत दिनों से इंतज़ार था वह भी सामने आ ही गया. २००२ में साबरमती एक्सप्रेस के एस-६ पर जिस तरह से हमला किया गया था उसके साक्ष्यों को देखते हुए कोर्ट ने भी यही कहा है कि यह एक षड़यंत्र का हिस्सा था. यह एक ऐसी घटना थी जो अचानक नहीं हो सकती थी. कोर्ट को भी यही लगा है कि इस पूरे मामले को जिस तरह से अंजाम दिया गया उससे तो यही लगता है कि इस तरह की घटना के लिए पहले से तैयारी की गयी थी क्योंकि जितने कम समय में इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई वह अचानक नहीं आ सकती है. जिस तरह से इस मामले में एक मौलवी की भूमिका भी पाई गयी थी उससे तो यही लगता है कि धर्म के आधार पर नफरत फ़ैलाने का जो काम किया गया था उसकी प्रतिक्रिया का अंदाज़ा लगाने में कहीं न कहीं इसके षड्यंत्रकर्ता चूक गए थे. कोई भी समाज केवल एक तरफ से सद्भाव की बातें करके नहीं चल सकता है जब दोनों पक्ष वास्तव में सद्भाव पर विचार करके चलने की कोशिश करेंगें तभी सब कुछ ठीक रह पायेगा.
देश ने गोधरा के रूप में एक ऐसा घिनौना रूप भी देखा जिसमें सुनियोजित तरीके से हिन्दू कारसेवकों पर हमला किया गया और उसके बाद इसकी प्रतिक्रिया में जिस तरह से मुसलमानों के विरुद्ध विद्वेष भड़का उसको देखकर लोगों की रूह कांप गयी. सवाल यह उठता है कि जिस गुजरात ने आज़ादी के समय भी आम तौर पर शांति बनाये रखी थी और मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया था अचानक वहां का शांत रहने वाला जनमानस इतना उग्र कैसे हो गया कि वह पूरे गुजरात में मुसलमानों के खून का प्यासा हो गया ? इस पूरे मामले में मानसिकता को पढ़ने की आवश्यकता है कहीं न कहीं से इस घटना के बाद आम गुजराती को यह लगा कि कुछ मुसलमानों ने इस तरह का काम करके देश के साथ गद्दारी की है और उस समय मोदी लोगों को यह समझाने में सफल रहे कि अब समय आ गया है कि इन लोगों से दो दो हाथ भी किया जाएँ. इसकी प्रतिक्रिया ने पूरे गुजरात के साथ दुनिया को हिला कर रख दिया था.
केवल चिल्लाने से कहीं पर भी सद्भाव नहीं आता है हर धर्म शांति के साथ रहने की नसीहत देता है पर क्या हम उसके अनुयायी के रूप में वास्तव में शांति लाने के उपायों पर चलना चाहते हैं ? पूरी दुनिया में कहीं भी इस तरह का कोई इतिहास नहीं मिलता जब शांत रहने वाले हिन्दुओं ने इस तरह से उग्र होकर प्रतिक्रिया ज़ाहिर की हो ? अल्पसंख्यकों की रक्षा एक बात और और बहुसंख्यकों की उपेक्षा बिलकुल दूसरी बात है, देश में कुछ लोग हमेशा मुसलमानों को उनकी कमियों के बारे में बताकर उनको नीचा दिखने की कोशिश करते रहते हैं और उनके मन में असुरक्षा के बीज बोना चाहते हैं ? क्यों मुसलमानों को वे नाम नहीं बताये जाते जो केवल अपनी प्रतिभा के बल पर देश में बहुत आगे पहुंचे हुए हैं ? आज यह बात आम मुसलमान को खुद ही समझनी होगी क्योंकि राजनैतिक लोग उनका फ़ायदा ज्यादा उठा रहे हैं और उनके बारे में ठोस काम कम कर रहे हैं ? देश अब बहुत आगे जा चुका है इस तरह से सोचने का कोई भी फायदा नहीं होने वाला है. अच्छा हो कि अब सभी इन बातों को भूलकर साथ में चलना सीखें.
बहुत अच्छी बात है..
जवाब देंहटाएं