मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 13 मार्च 2011

बुद्ध, बामियान और राजनीति

                                आख़िरकार वो ही होने जा रहा है जिसका पूरी दुनिया को पहले से ही पता था. सन २००० में जिस तरह से अफ़गानिस्तान में धर्मांध तालिबान ने भगवान गौतम बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ा था और उसके बाद यूनेस्को समेत पूरी दुनिया ने इन मूर्तियों को फिर से बनाये जाने के लिए प्रयास करने की बात कहीं थीं आज वे पीछे छूटती नज़र आ रही हैं. सवाल वहां पर मूर्तियाँ बनाये जाने या न बनाये जाने की नहीं है बल्कि समस्या यह है कि अगर यह मसला बौद्ध धर्म के अलावा किसी और धर्म से जुड़ा होता तो क्या १० साल बाद भी केवल विचार ही किया जा रहा होता ? नहीं..... क्योंकि तब चंद बड़े देशों समेत यूनेस्को को भी लोगों की भावनाओं का बहुत ख़याल होता और इनको फिर से बनाकर घावों पर मलहम लगाने की ढेरों बातें भी की जातीं ? बुद्ध ने जिस तरह से त्याग और शांति का पाठ पूरी दुनिया को पढ़ाया था उसकी कोई भी दूसरी मिसाल भारत में क्या पूरी दुनिया में नहीं मिलती है फिर भी उनकी उन मूर्तियों को जिनके साथ इस दुनिया में इस्लाम के आने के समय से ही सह अस्तित्व रहा था आख़िर किस तरह से ख़तरा बन गयी थीं कि उन्हें तोडना ज़रूरी हो गया था ?
                 प्रश्न यहाँ पर मानसिकता का है मूर्तियों का नहीं ? दूसरों से सद्भावना कब चाही जा सकती है जब हमारे मन में भी दूसरों के लिए सद्भाव हो ? पर तालिबान ने पूरी दुनिया के ताने बाने को छिन्न भिन्न करने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी. भगवान बुद्ध का प्रभाव तालिबान के साथ पूरी दुनिया ने देखा जब मूर्तियों को तोड़ने के ६ महीनों के अन्दर ही तालिबान के लोग अपनी जान बचाने के लिए अफ़गानिस्तान के दुर्गम स्थानों में छिपते हुए दिखाई दिए थे ? यह बात तो तालिबान भी जानते होंगें क्योंकि वे अपने को सबसे ज्यादा इस्लामिक मानते हैं कि बुरे काम का बुरा नतीजा होता है और जो शक्ति दुनिया को चला रही है उसके यहाँ अच्छे और बुरे की परिभाषा सबके लिए एक जैसी है, और तालिबान ने जो काम किया था वह बुरा था और उसका नतीजा भी उन्होंने भुगता. फिर भी आज तक भगवान बुद्ध के बारे में किसी ने ठीक तरह से कुछ भी नहीं सोचा ? क्योंकि भगवान बुद्ध के अनुयायी आज भी शांति के पुजारी हैं वे आज भी हिमालय की सुदूर घाटियों समेत विश्व के कई स्थानों पर चुपचाप अपने धर्म का पालन कर रहे हैं और उन्हें किसी से भी कोई शिकायत नहीं है.
              संयुक्त राष्ट्र जैसी विश्व संस्था इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए लिए कुछ भी नहीं कर सकती हैं फिर भी जब भी अवसर मिले तो वे इन बातों को और फैलने से रोक तो सकती ही हैं ? यह कह कर इस संस्थाओं ने छुट्टी पा ली है कि उन मूर्तियों को बनाना व्यावहारिक नहीं होगा पर वह स्थान दुनिया भर के बौद्ध मतावलंबियों के लिए सदैव वेदना का कारण बना रहेगा ? भगवान बुद्ध को मानने वाले चीन ने भी उस समय अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की थी जबकि चीन ऐसा कर सकता था ? भगवान बुद्ध शांत थे और आज भी शांत हैं उनका प्रभाव किसी धर्मांध व्यक्ति या विचारधारा के उनकी मूर्तियों को तोड़ने से कम नहीं होने वाला है, उनके दिए शांति के उपदेश आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा के श्रोत बने हुए हैं. केवल मूर्तियाँ तोड़कर भगवान बुद्ध के भौतिक अस्तित्व को मिटाया जा सकता है पर वे तो लोगों के दिलों में निवास करते हैं उनको कैसे मिटाया जा सकता है ?
              
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1 टिप्पणी:

  1. इनसे और उम्मीद की भी क्या जा सकती है. जो अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं कर सकते... ्नितान्त लकीर के फकीर बने हैं..

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