मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

विधायिका और न्यायपालिका

                       देश के उत्तरी भाग में चल रहे जाट आन्दोलन से जुड़े मुख्य तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जिस तरह से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में अराजकता रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने जनहित में त्वरित आदेश जारी किये हैं उनसे लगता है कि अब आने वाले समय में इस तरह के किसी भी प्रदर्शन आदि से रेल और सार्वजानिक परिवहन को पूरी तरह से बचाकर निर्बाध गति से चलाने में मदद मिलेगी. जाट आन्दोलन में जिस तरह से मांग के समर्थन में अराजकता फैलाई जा रही है उसका कोई मतलब कहीं से भी नहीं बनता है पर इसी तरह की घटना में राजस्थान में गुर्जरों ने दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग को लम्बे समय तक बाधित किया था. जिसमें बल प्रयोग करने के कारण काफ़ी लोग मारे भी गए थे. शायद यह भी बड़ा कारण होता है कि कोई भी राज्य सरकार आरक्षण मांगने वालों को समर्थन देकर कुंडली मारकर बैठ जाती हैं. 
       देश में आरक्षण हमेशा से ही एक मुद्दा रहा है अभी कुछ समय पहले तक जाट अपने को आरक्षित किये जाने के नाम से ही चिढ़ते थे पर पता नहीं अब ऐसा क्या हुआ है कि उन्हें भी आरक्षण की आवश्यकता पड़ने लगी है ? इस मामले में जब देश की विधायिका पूरी तरह से बेबस या मौके का लाभ उठाने में लगी हुई थी तब आशा की किरण उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद उच्च न्यायालय से दिखाई दी जिसने जनहित में होली के समय रेल बंद होने से जनता को होने वाली परेशानियों को स्वतः संज्ञान में लेकर जाटों को रेल मार्ग से हटने का आदेश दिया था. अब दिल्ली की पानी और तेल की आपूर्ति बाधित करने की चेतावनी से जाट नेता फंसते नज़र आये हैं क्योंकि नेताओं के चक्कर में कोई भी दिल्ली को पंगु नहीं करना चाहता है. कोर्ट ने जिस तरह से दिल्ली जल बोर्ड और इंडियन आयल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी सम्बंधित राज्य सरकारों से इनकी आपूर्ति सुनिश्चित किये जाने को कहा है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है वहीं चंडीगढ़ उच्च नयायालय ने भी उत्तर प्रदेश की तर्ज़ पर हरियाणा में किसी भी मार्ग को रोकने के खिलाफ़ अपने आदेश पारित कर दिए हैं.
        अब आवश्यकता इस बात की है कि इस तरह की किसी भी मांग पर कानून सम्मत विचार किया जाये और आन्दोलन कर्ताओं को भी यह बात समझनी चाहिए कि आख़िर में इस तरह से हिंसक होने से कुछ भी नहीं हो सकता है ? सरकारों को भी अपने प्रदेशों में इस तरह की सभी मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए जिससे कहीं से भी मामला इतना आगे न बढ़ जाये जिससे बचने के लिए कोर्ट जाना पड़े ? आज नेता अपने घटिया स्वार्थों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं जिससे स्थितियां बहुत जल्दी ही बिगड़ने लगती हैं. देश में सभी के लिए संसाधनों को उपलब्ध करना हमारी प्राथमिकता होनी चहिये जिससे हर व्यक्ति को कहीं से भी आरक्षण माँगना ही न पड़े ? आज़ादी के समय जो व्यवस्था निर्बलों को समर्थन देने के लिए बनायीं गयी थी आज वो देश के लिए कैंसर बन चुकी है आरक्षण को देते समय भी इसे हमेशा जारी रखने के बारे में नहीं कहा गया था पर आज यह देश के लिए बहुत संवेदनशील मामला बन चुका है. अच्छा हो कि देश में समग्र विकास की तरफ ध्यान दिया जाये और हर तरह के आरक्षण को चरण बद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाये.         
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