मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

राजनीति की निम्नता

      लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने के लिए बनायीं गयी समिति के लोगों के ख़िलाफ़ जिस तरह से कुछ लोगों ने मोर्चा खोल रखा है उससे तो यही लगता है कि जल्दी ही अगर इस मसले पर विचार नहीं किया गया तो आने वाले समय में एक अच्छे काम की शुरुवात होने से पहले ही उसका अंत होना निश्चित है. जिस तरह से विभिन्न दलों के राजनीतिज्ञ अपने हितों को साधते हुए इस समिति के गैर सरकारी सदस्यों पर हमले करने में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि देश में कुछ लोग केवल सनसनी फ़ैलाने के लिए ही काम करने में लगे हुए हैं. हो सकता है कि कहीं से किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ कुछ मिल भी जाये पर जिस तरह से इन सदस्यों के ख़िलाफ़ नेता लोग इकट्ठे हो रहे है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं से इन नेताओं के मन में इस प्रस्तावित लोकपाल बिल का भय भी है क्योंकि तब इन नेताओं की कलई खुल सकती है इसीलिए ये अभी से इस तरह की बातें करके जनता का ध्यान बंटाने में लगे हुए हैं.
      अन्ना हजारे को लिखे सोनिया गाँधी ने अपने जवाबी पत्र में लिखा है कि वे बदनाम करने की राजनीति नहीं करती हैं पर भारत में जिस तरह से नेताओं ने एक दूसरे पर कीचड़ उछालने की परंपरा बना रखी है वे उसी परंपरा के तहत आज भी इस समिति के लोगों पर कीचड़ फेंकने में लगे हुए हैं. सभी जानते हैं कि वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण का ईमानदारी में अपना एक स्थान रहा है और उन्होंने अपने इतने लम्बे सार्वजनिक जीवन में कभी भी किसी ग़लत काम को प्रोत्साहन नहीं दिया सिर्फ यही एक बड़ा कारण भी है कि वे आज इस समिति में हैं. नेताओं को केवल बयानबाज़ी करने के स्थान पर ठोस सबूत पेश करने चाहिए जिससे अगर इनमें से किसी के ख़िलाफ़ आरोप तय होते हैं तो उन्हें भी इस समिति से हटाया जा सके पर इस तरह से उनके पूरे सार्वजनिक जीवन पर ऊँगली उठाना कहाँ तक सही कहा जा सकता है ? सोनिया का कहना कुछ हद तक ठीक है क्योंकि उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले पार्टी के लोग जिस तरह से विपक्षियों पर किसी भी तरह के आरोप लगाने से नहीं चूकते थे उसमें अब काफी हद तक कमी आ गयी है.
     हमें एक बात और भी नहीं भूलनी चाहिए कि इस तरह के बे-बुनियाद आरोपों ने ही देश से राजीव गाँधी जैसा सच्चा और ईमानदार राजनैतिज्ञ छीन लिया था ? अगर उन्हें एक बार और सरकार चलाने का अवसर मिला होता तो उनकी सोच और समझ का लाभ देश को बहुत हद तक मिला होता पर उन पर बोफोर्स का इलज़ाम ऐसा चिपका जिसमें सभी दलों की सरकारें आयीं तो पर उनके खिलाफ कुछ भी नहीं मिला ? फिर क्या उन राजनीतिज्ञों पर राजीव गाँधी के राजनैतिक जीवन पर कीचड़ उछालने के लिए मुक़दमा नहीं चलाया जाना चाहिए ? बोफोर्स का मुद्दा ऐसा था कि उसने देश की दिशा ही बदल दी और केवल आरोपों के तीखेपन के कारण ही देश ने अपना एक अच्छी सोच वाला नेता खो दिया. आज आवश्यकता है कि बिना सबूत्न के बकवास करने वाले इन नेताओं से पहले सबूत मांगें जाये और न दे पाने पर उनके के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही की जाये जिससे लोकपाल बिल पर बनी इस समिति को पूरे मनोयोग से अपनी सिफारिश करने का अवसर मिल सके.           

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3 टिप्‍पणियां:

  1. हमें एक बात और भी नहीं भूलनी चाहिए कि इस तरह के बे-बुनियाद आरोपों ने ही देश से राजीव गाँधी जैसा सच्चा और ईमानदार राजनैतिज्ञ छीन लिया था ?
    ....bilkul sahi kaha aapne

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  2. राजनेताओं का काम ही बेबुन्याद आरोप लगाना है... ऐसा वह लोगो को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए करते हैं.... और वाकई हम बेवक़ूफ़ हैं जो हर बार इनकी बातों में आजाते हैं.

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