केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर घाटी में प्रदर्शनकारियों पर अब घातक हथियारों का प्रयोग न करने पर हुई सहमति के बारे स्पष्ट करते हुए कहा है कि अब आवश्यकता आने पर इस तरह के प्रदर्शनों में बलों द्वारा हलके हथियारों का प्रयोग किया जायेगा. इस आशय का प्रस्ताव राज्य सरकार और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने मिलकर तैयार किया है. अभी तक इस तरह के किसी भी प्रदर्शन को रोकने या कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस कड़ा बल प्रयोग किया करती थी जिससे मरने वालों की संख्या में भी भारी वृद्धि हो जाती थी. बहुत बार प्रदर्शनकारियों कि तरफ से गोलियां चलाने पर ही सुरक्षा बलों को हथियारों का प्रयोग करना पड़ता है जो प्रदर्शनों को और आगे तक बढ़ा देता है. इस तरह के किसी भी प्रदर्शन में आतंकियों की भूमिका होने से यह मामले हमेशा से ही भारत को नीचा दिखाने और कश्मीर में भारत के तथाकथित ज़ुल्मों की बातें इस्लामी जगत में करने के लिए आतंकी हमेशा से ही तैयार रहते हैं.
इस पूरे मामले में यह भी देखना होगा कि घाटी में हमेशा आम कश्मीरी को आगे करके अलगाव वादी नेता अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं जिससे वहां पर आम प्रदर्शन में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हो जाती है. इन अलगाववादियों का हमेशा ही यह प्रयास रहता है कि किसी भी तरह से पुलिस की गोलियों से आम नागरिक मारे जाएँ जिनका दुरूपयोग वे बाद में प्रदर्शन को और भड़काने में कर सकें ? पिछले वर्ष हुर्रियत के कुछ नेताओं कि आपसी बातचीत को टेप करने के बाद इस बात का खुलासा भी हो गया था कि हुर्रियत किस तरह से आम कश्मीरियों के खून की प्यासी है . सवाल यहाँ पर यह नहीं है कि पुलिस और बल किस तरह से हाथ बाँधकर अपना काम करेंगें बल्कि यह बड़ा सवाल है कि जब आतंकियों को पता होगा कि बलों की तरफ से सख्त प्रतिक्रिया नहीं होगी तो वे भीड़ में से बलों पर घातक हमले भी तो कर सकते हैं ? ऐसी स्थिति में बलों के सामने क्या विकल्प शेष रह जाते हैं ?
ऐसे किसी भी निर्णय को प्रयोग के तौर पर लिए जाना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर बलों के पास पूरी तैयारी भी होनी चाहिए क्योंकि सभी जानते हैं कि पता नहीं कब इन प्रदर्शनों की लगाम आतंकी खुद संभाल लें और मौके का लाभ उठाकर बलों का बड़ा नुक्सान कर दें ? सभी को यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि प्रदर्शन के शांति पूर्ण होने पर ही बलों की तरफ़ से हथियारों के प्रयोग को रोका जायेगा परन्तु किसी भी तरह की अराजकता फ़ैलाने पर बलों को उन्हें नियंत्रित करने की पूरी छूट होनी चाहिए भले ही उसके लिए कितना ही बल प्रयोग क्यों न करना पड़े ? घाटी में पूरे भारत जैसे नियम लागू नहीं हो सकते हैं क्योंकि वहां पर स्थितियां पूरी तरह से भिन्न हैं. अब अह गेंद आम कश्मीरियों के पाले में है कि उन्हें अपनी बात को शांति पूर्वक रखना है या फिर से हर प्रदर्शन में कुछ निर्दोष कश्मीरी युवकों को खोकर घाटी को आग में सुलगाना है ? कोई भी नियम तभी प्रभावी हो सकता है जब दोनों तरफ़ से उनका सम्मान किया जाए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस पूरे मामले में यह भी देखना होगा कि घाटी में हमेशा आम कश्मीरी को आगे करके अलगाव वादी नेता अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं जिससे वहां पर आम प्रदर्शन में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हो जाती है. इन अलगाववादियों का हमेशा ही यह प्रयास रहता है कि किसी भी तरह से पुलिस की गोलियों से आम नागरिक मारे जाएँ जिनका दुरूपयोग वे बाद में प्रदर्शन को और भड़काने में कर सकें ? पिछले वर्ष हुर्रियत के कुछ नेताओं कि आपसी बातचीत को टेप करने के बाद इस बात का खुलासा भी हो गया था कि हुर्रियत किस तरह से आम कश्मीरियों के खून की प्यासी है . सवाल यहाँ पर यह नहीं है कि पुलिस और बल किस तरह से हाथ बाँधकर अपना काम करेंगें बल्कि यह बड़ा सवाल है कि जब आतंकियों को पता होगा कि बलों की तरफ से सख्त प्रतिक्रिया नहीं होगी तो वे भीड़ में से बलों पर घातक हमले भी तो कर सकते हैं ? ऐसी स्थिति में बलों के सामने क्या विकल्प शेष रह जाते हैं ?
ऐसे किसी भी निर्णय को प्रयोग के तौर पर लिए जाना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर बलों के पास पूरी तैयारी भी होनी चाहिए क्योंकि सभी जानते हैं कि पता नहीं कब इन प्रदर्शनों की लगाम आतंकी खुद संभाल लें और मौके का लाभ उठाकर बलों का बड़ा नुक्सान कर दें ? सभी को यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि प्रदर्शन के शांति पूर्ण होने पर ही बलों की तरफ़ से हथियारों के प्रयोग को रोका जायेगा परन्तु किसी भी तरह की अराजकता फ़ैलाने पर बलों को उन्हें नियंत्रित करने की पूरी छूट होनी चाहिए भले ही उसके लिए कितना ही बल प्रयोग क्यों न करना पड़े ? घाटी में पूरे भारत जैसे नियम लागू नहीं हो सकते हैं क्योंकि वहां पर स्थितियां पूरी तरह से भिन्न हैं. अब अह गेंद आम कश्मीरियों के पाले में है कि उन्हें अपनी बात को शांति पूर्वक रखना है या फिर से हर प्रदर्शन में कुछ निर्दोष कश्मीरी युवकों को खोकर घाटी को आग में सुलगाना है ? कोई भी नियम तभी प्रभावी हो सकता है जब दोनों तरफ़ से उनका सम्मान किया जाए.
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