मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 25 जुलाई 2011

जाना वस्तानवी का...

दुनिया की शीर्ष इस्लामी संस्था दारुल उलूम में हावी कुछ लोग आख़िरकार अपने मकसद में क़ामयाब हो ही गए जब उन्होंने इस महत्वपूर्ण संस्था के कुलपति के पद से वस्तानवी को हटाने में सफलता पाई. कल देवबंद में हुई शूरा की एक बैठक में वस्तानवी को इस्तीफ़ा देने के लिए कहा गया जिस पर राज़ी न होने पर उन्हें मतदान के ज़रिये इस पद से हटा दिया गया. जैसा कि पहले से स्पष्ट भी था कि अब देवबंद की इस संस्था में शीर्ष पद पर कोई नया व्यक्ति ही दिखाई देगा उसके बाद यह घटना बहुत अप्रत्याशित सी नहीं लगती है. वस्तानवी ने विकास और मुसलमानों की स्थिति के मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री की तारीफ कर दी थी जिसके बाद उनके बयान को लेकर देवबंद में हावी गुट ने उनको हटाने का मन बना लिया था. दारुल उलूम के कुलपति के पद से हटाये जाने के बाद वस्तानवी ने कहा कि वे आख़िर ऐसी स्थिति में कैसे काम कर सकते थे जब हर तरफ हंगामे हो रहे हों. जो व्यक्ति शांति से काम करने का आदी रहा हो वह इस तरह की परिस्थितियों में कैसे काम कर सकता है. 
       वस्तानवी ने खुद एमबीए की पढ़ाई की है और अब वे गुजरात के कई इलाकों में मुसलमानों की शैक्षिक स्थति को सुधारने में अपने दम पर लगे हुए हैं. उन्होंने इस्लामी शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा दिए जाने के अपने तर्क को पूरे दम के साथ अपनी संस्थाओं में लागू किया है और वहां से पढ़े हुए नौजवान आज हर मामले में बेहतर साबित हो रहे हैं. एक ऐसे प्रगतिशील व्यक्ति के हाथों में अगर कुछ वर्षों तक देवबंद की कमान रहती तो शायद कुछ परिवर्तन वास्तव में दिखाई देता और पूरी दुनिया में इस संस्था का नाम इस बात के लिए भी लिया जाता कि यहाँ पर धार्मिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है. आज पूरी दुनिया में स्थित विभिन्न धर्मों के बड़े धार्मिक शिक्षा के केंद्र अपने यहाँ पर शिक्षा को आधुनिक बनाने पर लगे हुए हैं क्योंकि जब इस केन्द्रों से निकले हुए लोग अपने क्षेत्र में जाते हैं तो उन्हें यह नहीं लगता है कि आज की दुनिया के हिसाब से उन्हें कुछ नहीं आता है. धार्मिक शिक्षा के साथ अगर आज की शिक्षा को नहीं जोड़ा जाता है तो इन संस्थाओं निकले हुए लोगों को यह लग सकता है कि उनकी शिक्षा में कुछ कमी रह गयी है ?
   किसी भी संस्था के लिए वहां पर बैठे हुए शीर्ष व्यक्ति की सोच बहुत महत्वपूर्ण होती है और शायद वस्तानवी ने जब गुजरात का उदाहरण दिया तो मोदी का नाम लेने की जगह पर उन्हें अपने शिक्षण संस्थानों का नाम लेना चाहिए था पर वे सरल व्यक्ति हैं और जैसे हैं वैसे ही दिखते हैं. वे वास्तव में कौम की भलाई करना चाहते थे पर कुछ लोगों को यह लगा कि अगर सुधार की बयार देवबंद तक भी पहुँच गयी तो आम मुसलमान आज के हिसाब से जीना सीख जायेगा जो कि कौम के ही कुछ लोग नहीं चाहते हैं. गुजरात के बारे में गुजरात में रहकर काम करने वाले और धार्मिक शिक्षा के केंद्र चलाने वाले एक व्यक्ति से अच्छी वहां की स्थिति कौन जान सकता है ? शायद वस्तानवी की यह बेबाक टिप्पणी दुनिया भर के मुसलमानों की गुजरात के बारे में बनायीं गयी छवि से मेल नहीं खाती थी तभी उन्हें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा ? हो सकता है कि आज भी वस्तानवी जैसे बहुत सारे लोग गुजरात में मुसलमानों को प्रगतिशील बनाने में लगे हों ? वस्तानवी के जाने से और कुछ हो या न हो पर एक बात तो है कि अब पता नहीं कितने वर्षों बाद दारुल उलूम को ऐसा व्यक्ति दोबारा मिलेगा जो वास्तव में आज की दुनिया में अपने धार्मिक मूल्यों को सहेजते हुए पूरी प्रगतिशीलता के साथ आगे बढ़ सके.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. इस बात पर उन लोगों की कड़ी आलोचना होना चाहिये थी जिन्होंने वस्तानवी को हटाया. लेकिन आपके आलेख में आलोचना का पूर्ण अभाव है..

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