मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 15 अगस्त 2011

न्याय में विलम्ब

दिल्ली की एक अदालत ने एक जज महोदय ने अपने फैसले को सुनाने के बाद जिस तरह से यह भी स्वीकार किया कि निर्णय होने में हुई देरी की भी वे ज़िम्मेदारी लेते हैं उससे यही लगता है की आने वाले समय में हो सकता है की लोगों को त्वरित न्याय मिल सके. आज देश की अदालतों पर भारी बोझ है और उसके निपटारे के लिए उचित संख्या में कोर्ट और जज होने चाहिए तभी इस संख्या के बोझ को कम किया जा सकेगा. वैसे देखा जाये तो देश में जितने मुक़दमे हैं उतनी तेज़ी से उनको निपटने के लिए हमारा न्यायतंत्र सक्षम नहीं है क्योंकि वहां पर आवश्यक संसाधन ही उपलब्ध नहीं हैं. इस मामले में सरकारी स्तर पर जिस तरह से विचार चल रहा है उससे यही लगता है की आने वाले समय में शायद कुछ हद तक यह बोझ कम हो सके पर कोई भी व्यवस्था करने में सरकार को बहुत अधिक समय लगता है जिससे कहीं न कहीं से पूरा तंत्र चरमराता हुआ दिखाई देता है.
  देश में जो काम सबसे पहले किया जाना चाहिए वह यह की गाँवों में पहले जो सरपंच चुनने की व्यवस्था हुआ करती थी उसे मजबूती के साथ बहाल किया जाए जिससे कोई भी विवाद किसी भी तरह से किसी जनपद या तहसील स्तर के कोर्ट में पहुँचने से पहले ही सुलझ सकें और लोगों को स्थानीय स्तर पर ही उचित न्याय मिल सके. इसके बाद भी अगर किसी को लगता है की उसके साथ न्याय नहीं हुआ है तो वह अपनी अपील आगे की अदालत में करने के लिए स्वतंत्र है. ऐसा होने से जहाँ वर्षों तक चलने वाली दुश्मनी भी समाप्त हो जाएगी वहीं लोगों को न्याय भी मिल सकेगा. गाँवों में आज भी भू राजस्व से जुड़े बहुत सारे मामले ऐसे होते हैं की अगर उनकी सुनवाई ठीक से की जाये तो वे २ महीनों में ही निपट सकते हैं पर काम के बोझ और कुछ लोगों के निहित स्वार्थ के चलते यह सब संभव नहीं हो पाता है. 
अब समय आ गया है की देश इस बारे में कुछ सोचे क्योंकि जितनी अधिक देरी इस मसले में की जाएगी नए वादों के बोझ इन न्यायालयों पर बढ़ता ही जायेगा जिनसे निपटने के लिए हमारे पास आज ही पूरे संसाधन नहीं हैं. देश की जनता को सही समय से न्याय दिलाने के लिए इससे अधिक कुछ भी किये जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो लोग कुछ करना चाहते हैं वे कर ही लेंगें और काम को लटकाने का प्रयास तब भी किया जायेगा. किसी भी मुक़दमे में कमज़ोर पक्ष ही अधिक जोर लगता है क्योंकि उसे सच्चाई का पूरा पता होता है और वो यह भी जनता है की कमज़ोर पैरवी से फैसला उनके ख़िलाफ़ भी जा सकता है ऐसे में कई बार कहीं न कहीं से कुछ ऐसा हो ही जाता है जो न्याय पर से लोगों का भरोसा उठता है पर ऐसा भी नहीं है की सब कुछ ही ठीक नहीं है आज भी देश की जनता को न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है.  
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