मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

आन्दोलन और विशेषाधिकार हनन

देश की संसद में जिस तरह से एक मत से कई सांसदों के विशेषाधिकार हनन नोटिस स्वीकार कर लिए गए उससे यही लगता है कि कुछ लोग अभी भी अन्ना के आन्दोलन की खटास को भूलना नहीं चाहते हैं. अब जब बाकि सारी बातें ख़त्म हो चुकी हैं तो इस तरह की कानूनी पेचीदगियों में फंसने के स्थान पर उन सांसदों को इस बात पर विचार करना चाहिए था जिससे यह लगता कि देश का राजनैतिक तंत्र अब देश के संवैधानिक पुनर्निर्माण में जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए तत्पर है. संविधान के अनुसार संसद सर्वोच्च है और इसीलिए सांसदों को बहुत सारे विशेष अधिकार मिले हुए हैं. ये अधिकार तब दिए गए थे जब नेताओं में पूरी तरह से ईमानदारी शुचिता और सार्वजनिक जवाबदेही हुआ करती थी जिससे कभी भी सांसदों के इस विशेषाधिकार पर किसी ने भी ऊँगली नहीं उठायी. यह भी सही है कि आज के समय में बहुत सारे सांसद पढ़े लिखे भी हैं पर आज भी जो मानदंड हर सांसद को अपनाना चाहिए शायद १० % ही उनको अपना पाते हैं. पहले आम लोग सांसदों को आदर की नज़रों से देखते थे पर आज नज़रिया ही बदला हुआ है ? अगर देश में आज भी सर्वेक्षण कराया जाए तो जनता नेताओं को ही सबसे भ्रष्ट मानती है तो क्या पूरे देश की जनता के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन का मामला बनाया जायेगा ? 
   सभी सांसदों की कभी कोई बात नहीं होती है पर जब कोई बात की जाती है तो उस समय अवश्य ही किसी सांसद के आचरण में ऐसा अवश्य होता होगा तभी कोई कुछ कहता है. अगर संसद को अपनी सर्वोच्चता की इतनी परवाह है तो उसे सभी सांसदों को यह भी कहना चाहिए कि वे सार्वजनिक जीवन में पूरी ईमानदारी बरतें क्योंकि जब आप सार्वजनिक जीवन में हैं तो पूरे समाज की नज़रें आप पर होती हैं उस समय अधिक सतर्कता की आवश्यकता होती है. संसद को अपने सांसदों की गतिविधियों पर भी नज़र रखनी चाहिए क्योंकि देश के अधिकांश हिस्सों में आज भी सांसदों द्वारा जिस तरह से कानून की अवहेलना की जाती है वह सभी जानते हैं. आज देश में क्या कोई ऐसा प्रावधान है जिसके तहत आम जनता किसी सांसद के ख़िलाफ़ कोई शिकायत कर सके ? राजनीति को सेवा के स्थान पर कमाई का ज़रिया मानने वाले कुछ सांसदों के बारे में संसद की क्या राय है यह भी जनता जानना चाहती है ? अपने चुनाव क्षेत्र में एक एक सांसद की ५-५  गाड़ियों पर सांसद लिखा होता है जिससे उनमें चलने वाले उनके समर्थक भी जगह जगह कानून व्यवस्था और प्रशासन के लिए सर दर्द बनते रहते हैं ? इस बारे में संसद क्या कहना चाहती है ? कुछ माननीय निधियों को देने के लिए भी एक निश्चित धनराशि पहले ही मांगते हैं उसके लिए क्या किया जा रहा है ? जनता के वोट देने के अधिकार को रोज़ ही कहीं न कहीं कोई माननीय तिलांजलि देते रहते हैं तो उसके लिए जनता कहाँ नोटिस दे ?
        अच्छा होता कि कुछ लोगों को विशेषाधिकार नोटिस देने के स्थान पर सांसदों के आचरण में सुधार लाने के लिए कोई संकल्प लाया जाता और सभी सांसद ध्वनि मत से उसका अनुमोदन ही नहीं करते बल्कि उस पर अमल भी करते. किरण बेदी या ओम पुरी के ख़िलाफ़ कुछ भी करने से एक बार फिर जनता की नब्ज़ को पकड़ने में देश का राजनैतिक तंत्र एक बार फिर से असफल होने जा रहा है. यह भी सही है कि अगर अन्ना के मंच से किसी ने कुछ भी कहा है तो वह सारा कुछ सही नहीं हो सकता है पर जब भावनाएं उबाल पर होती हैं और मसला हल होता नहीं दिखाई देता तो इस तरह की बातें हो जाया करती हैं. अब समय है कि किरण बेदी को भी इस मसले में अपनी बात स्पष्ट कर देनी चाहिए साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं से अनावश्यक बयान बाज़ी के द्वारा संसद की गरिमा को ठेस भी न पहुंचाई जाये ?  संसद को भी इस मसले को कानूनी दांव पेंचों में उलझाने के स्थान पर भूल जाना चाहिए जिससे वातावरण में अनावश्यक रूप से कुछ भी न होता रहे. अभी आगे सिविल सोसाइटी और सरकार को एक दूसरे की ज़रुरत पड़ेगी और इस तरह से अगर कुछ भी किया गया तो आगे फिर से संवादहीनता की स्थिति बन सकती है जिसमें नुकसान केवल देश का होगा. सभी को अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए और देश के बारे में सोचना चाहिए.           
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. भारत भी अजीब देश है। यहां अहिंसा के ज़रिये जंग लड़ी जाती है और उसकी बुनियाद आत्मघात पर रखी जाती है।
    ख़ैर अगर आदमी मरने पर उतारू हो जाए तो फिर हरेक चीज़ उसके सामने झुक जाती है। अफ़ग़ानिस्तान के आत्मघाती हमलावरों के सामने तो अमेरिका भी घुटने टेक चुका है।
    अन्ना का प्रभाव तो उनसे कहीं ज़्यादा व्यापक है क्योंकि उनकी मरने की धमकी की शैली गांधी शैली है।
    लोग अफ़गान आत्मघातियों को बुरा कह सकते हैं लेकिन गांधी शैली को नहीं।
    भारत व्यक्ति पूजक लोगों का समूह है, यहां ऐसे ही होता है। वह करे तो ग़लत और हम करें तो महान।
    बहरहाल अब जब तक अन्ना जिएगा, उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि सरकार की गर्दन में गांधी शैली का फंदा टाइट ही रखे।
    उन्हें हमारा समर्थन इसी बात के लिए है।

    See ♥
    http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%A6-%E0%A4%AE-%E0%A4%B8-%E0%A4%B2-%E0%A4%AE-%E0%A4%95-%E0%A4%AE-%E0%A4%B9%E0%A4%AC-%E0%A4%AC%E0%A4%A4-%E0%A4%95-%E0%A4%A4-%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%B2-%E0%A4%B9-%E0%A4%A6-%E0%A4%B5%E0%A4%AC-%E0%A4%A6

    जवाब देंहटाएं