मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 31 अगस्त 2011

वाह क्रिकेट आह क्रिकेट

आख़िर बीसीसीआई ने इस बात को स्पष्ट रूप से कहकर अपनी मंशा ज़ाहिर कर ही दी की वह किसी भी तरह के खेल संघ में बदलना नहीं चाहता है और साथ ही यह भी कह दिया कि वह सूचना अधिकार के अंतर्गत भी नहीं आना चाहता है ? क्रिकेट के लिए पागल हुए जा रहे इस देश में इसकी संस्था आख़िर किस तरह से ऐसा बर्ताव कर सकती है यह सोचने का विषय है क्योंकि आज भारत में इस खेल से बहुत पैसा बनता है जब धन का प्रवाह इतने बड़े स्तर पर होने लगता है तो कहीं न कहीं से कोई जवाबदेही बननी ही चाहिए जिससे जनता के उगाहे गए इस धन का सही प्रयोग किया जा सके ? पर सरकार की मंशा के अनुरूप बोर्ड ने अपना राग अलग से छेड़ रखा है जिसका कोई मतलब नहीं बनता है. कोई भी बोर्ड या अन्य खेल संघ देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकता है पर यहाँ पर सब कुछ बोर्ड अपनी मर्ज़ी से करना चाहता है जिसे किसी भी स्थिति में सही नहीं कहा जा सकता है.
     इस बात पर विचार किये जाने की आवश्यकता है कि आख़िर बोर्ड की इतनी हिम्मत कैसे हो जाती है कि वह कुछ भी कहने और करने लगे ? इसका एक मात्र कारण यहाँ अपर नेताओं के जमे होने से ही पैदा हो जाता है क्योंकि इनको ही संसद में कानून बनाना है और इन्हें ही बोर्ड को भी चलाना है. यहाँ भी नेताओं के निहित स्वार्थ आड़े आने लगते हैं जिससे वे किसी भी स्तर पर कोई भी सुधार लागू होने ही नहीं देते हैं. आज देश के अधिकांश खेल संघों पर नेताओं का कब्ज़ा है क्योंकि यहाँ पर आने वाले पैसे को ये अपनी मर्ज़ी के हिसाब से खर्च करने को अपना अधिकार समझते हैं और सुधार लागू होने से इनकी दुकान बंद होने का ख़तरा भी होने लगता है. आज शायद ही कोई ऐसा खेल संघ हो जिसमें वास्तव में उस खेल से जुड़े हुए खिलाड़ियों को कुछ स्थान मिला हो ? देश में खेलों की दुर्दशा के पीछे इस तरह की नियति ही हमेशा से ज़िम्मेदार रही है और आज भी कहीं से कोई सुधार होने की आशा नहीं दिखाई दे रही है. नेताओं को देश के खेल संघों पर दया करनी चाहिए और अपनी राजनीति संसद तक ही सीमित रखनी चाहिए.
  अब वास्तव में इस पूरे तंत्र में सुधार करने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक इनमें वित्तीय पारदर्शिता नहीं लागू की जाएगी तब तक कुछ भी सही नहीं हो पायेगा. देश में क्रिकेट ने इतना पैसा उड़ेल रखा है कि पूरी दुनिया में यह पहले स्थान पर आ गया है बोर्ड हर बड़े टूर्नामेंट से बहुत बड़ी मात्रा में धन इकठ्ठा करता है और उसका किस तरह से दुरूपयोग किया जाता है यह कोई नहीं जान पाता है जिससे इन संघों पर नेताओं का काम करने का अधिक मन भी होता है. जब नेताओं के पास काम करने के लिए अन्य क्षेत्र खुले हुए हैं तो उन्हें इस तरह से देश में खेलों का भट्ठा बैठाने की क्या ज़रुरत है ? कोई भी व्यक्ति कई कामों के साथ एक साथ में न्याय नहीं कर सकता है जिस कारण से भी खेल पीछे छूट जाया करता है और पीछे के खेल में लोग लग जाया करते हैं. बोर्ड के पैसे को सार्वजनिक और पारदर्शी तरह से चलाया जाए जिससे हर नागरिक यह जान सके कि आख़िर बोर्ड किस तरह से काम कर रहा है ? पर यह तभी हो सकेगा जब सरकार कड़ाई से पेश आएगी.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. अन्ना मरने के मूड में आ चुके हैं और ऐसे लोगों से हमारे चुने हुए प्रतिनिधि और हमारा प्रशासन, दोनों ही घबराते हैं।
    यह भी आत्मघात का ही एक प्रकार है।
    भारत भी अजीब देश है। यहां अहिंसा के ज़रिये जंग लड़ी जाती है और उसकी बुनियाद आत्मघात पर रखी जाती है।
    ख़ैर अगर आदमी मरने पर उतारू हो जाए तो फिर हरेक चीज़ उसके सामने झुक जाती है। अफ़ग़ानिस्तान के आत्मघाती हमलावरों के सामने तो अमेरिका भी घुटने टेक चुका है।
    अन्ना का प्रभाव तो उनसे कहीं ज़्यादा व्यापक है क्योंकि उनकी मरने की धमकी की शैली गांधी शैली है।
    लोग अफ़गान आत्मघातियों को बुरा कह सकते हैं लेकिन गांधी शैली को नहीं।
    भारत व्यक्ति पूजक लोगों का समूह है, यहां ऐसे ही होता है। वह करे तो ग़लत और हम करें तो महान।
    बहरहाल अब जब तक अन्ना जिएगा, उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि सरकार की गर्दन में गांधी शैली का फंदा टाइट ही रखे।
    उन्हें हमारा समर्थन इसी बात के लिए है।

    See ♥
    http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%A6-%E0%A4%AE-%E0%A4%B8-%E0%A4%B2-%E0%A4%AE-%E0%A4%95-%E0%A4%AE-%E0%A4%B9%E0%A4%AC-%E0%A4%AC%E0%A4%A4-%E0%A4%95-%E0%A4%A4-%E0%A4%9C%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%B2-%E0%A4%B9-%E0%A4%A6-%E0%A4%B5%E0%A4%AC-%E0%A4%A6

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  2. aap ke shabd man ko prabhavit karte hain,
    saadhuvaad

    aaj do naye par acche blogs se parichay hua ek aap aur ek
    http://jan-sunwai.blogspot.com/2011/08/blog-post_31.html
    unko aap tak aur aapko untak pahunchan ka dussahas kar rahi hun

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