जिस तरह से देश में ऊर्जा का संकट गहराता ही जा रहा है उससे यही लगता है कि अगर सस्ती लोकप्रियता के चलते अब भी डीज़ल और गैस के दामों में बाज़ार के हिसाब से सुधार नहीं किया गया तो आने वाले दशक में लोग बाज़ार से भी ऊंचे रेट पर पेट्रोलियम पदार्थों को लेने पर मजबूर हो जायेंगें क्योंकि इस तरह की नीतियों के चलते सरकारी तेल कम्पनियों को बंद होने में बहुत अधिक समय नहीं लगने वाला है. यह सही है कि लोगों को उचित दर पर सभी चीज़ें मिलनी चाहिए पर ऐसी दर को क्या कहा जाये जो सामान बेचने वाले को ही दीवालिया बना दे ? इस मसले पर हमेशा से ही बहुत विवाद होता रहता है पर आज तक देश के राजनैतिक दल इस बारे में कोई ठीक फार्मूला नहीं बना पाए हैं. अब भी इस तरह से अगर फ़ैसले नहीं लिए जा पाते हैं और उपभोक्ताओं को रोज़ ही ग़लत नीतियों के कारण अधिक पैसे देने पड़ते हैं तो इससे देश के राजनैतिक दलों की सोच के बारे में ही पता चलता है. यह सही है कि देश में आज भी डीज़ल, केरोसिन और गैस के दामों को सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है पर इस तरह की नीतियां आखिर किसको लाभ पहुंचाती हैं या कौन बताएगा ? क्या संप्रग के कुछ घटक दल और विपक्षी दल भी यही चाहते हैं कि आने वाले समय में पेट्रोलियम पदार्थ आम जनता के लिए एक भयानक सपना ही बनकर रह जाएँ ?
यह सही है कि जनता को सही दर पर सब कुछ मिलना चाहिए पर केरोसिन की कालाबाज़ारी में जिस तरह से नेता और अधिकारीयों की मिलीभगत होती है उस पर किसी ने कभी विचार भी किया है ? जिस कोटे वाले के सम्बन्ध स्थानीय नेताओं से ठीक नहीं होते उसके लिए काम कर पाना ही असंभव होता है क्या कभी किसी दल ने अपने द्वारा शासित राज्य में यह देखने की कोशिश की है कि जिन दुकानों को निरस्त किया गया है वास्तव में वे कैसे चल रही थीं और अन्य दुकानों की क्या हालत है ? सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने नेताओं के लिए एक ऐसा खज़ाना खोल दिया है जो रोज़ ही भ्रष्टाचार की नयी इबारत लिखता रहता है आख़िर इन्डियन आयल के शहीद मंजूनाथ की क्या ग़लती थी ? वह केवल नेताओं के इस भ्रष्ट काम में शामिल नहीं हो रहे थे तो उनको रास्ते से ही हटा दिया गया. आख़िर देश में पेट्रोल का इस्तेमाल करने वालों ने क्या ग़लती कर रखी है जिससे वे हमेशा ही बाज़ार के रेट पर पेट्रोल खरीदते हैं और डीज़ल वाले सब्सिडी का मज़ा उठाते रहते हैं ? देश से इस तरह के भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए इस तरह के पदार्थों पर से हर तरह की सब्सिडी हटा दी जानी चहिये और गैस कम्पनियों और केरोसिन के कनेक्शनों की पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए जिससे यह भी सामने आ सके कि कौन किस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है ?
देश के नेताओं को अगर यह लगता है कि सरकार की नीतियों में कहीं से ग़लती है तो उन्हें पूरी दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों की वितरण नीतियों पर विचार करना चाहिए जिससे यह सामने आ सके कि क्या हमारी नीति में कोई बड़ी ख़ामी है या फिर हो सकता है कि किसी तरह से नीतियों के अनुपालन में कोई बड़ी गड़बड़ी हो रही हो ? सरकार उत्तर भारत और दक्षिण भारत की ऊर्जा ज़रूरतों पर भी विचार करके ही नयी नीति बनाये क्योंकि सर्दी के मौसम में गैस की खपत खाना बनाने में बढ़ जाती है और लगभग १५% ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है तो देश के उत्तरी भागों और पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों के लिए ८ सिलेंडर में शायद काम नहीं चल पाए ? नीतियां ऐसी होनी चाहियें जो किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने वाली हों न कि उनसे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलना शुरू हो जाये ? आज जिस तरह से देश में चुनावों में पैसा लुटने लगा है तो नेताओं को चुनाव में पैसे की अधिक आवश्यकता पड़ने लगी है जिससे वे बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के द्वारा पैसे बनाने में भी नहीं चूक रहे हैं. नीतियां ऐसी हों जो देश हित में हों चुनाव आते जाते रहेंगें और सत्ता बदलती रहेगी पर घाटे के कारण एक बार तेल कम्पनियां बंद हो गयी तो नेताओं के लिए सस्ती लोकप्रियता के चलते ऐसे कदम उठाने के अवसर भी ख़त्म हो जायेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि जनता को सही दर पर सब कुछ मिलना चाहिए पर केरोसिन की कालाबाज़ारी में जिस तरह से नेता और अधिकारीयों की मिलीभगत होती है उस पर किसी ने कभी विचार भी किया है ? जिस कोटे वाले के सम्बन्ध स्थानीय नेताओं से ठीक नहीं होते उसके लिए काम कर पाना ही असंभव होता है क्या कभी किसी दल ने अपने द्वारा शासित राज्य में यह देखने की कोशिश की है कि जिन दुकानों को निरस्त किया गया है वास्तव में वे कैसे चल रही थीं और अन्य दुकानों की क्या हालत है ? सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने नेताओं के लिए एक ऐसा खज़ाना खोल दिया है जो रोज़ ही भ्रष्टाचार की नयी इबारत लिखता रहता है आख़िर इन्डियन आयल के शहीद मंजूनाथ की क्या ग़लती थी ? वह केवल नेताओं के इस भ्रष्ट काम में शामिल नहीं हो रहे थे तो उनको रास्ते से ही हटा दिया गया. आख़िर देश में पेट्रोल का इस्तेमाल करने वालों ने क्या ग़लती कर रखी है जिससे वे हमेशा ही बाज़ार के रेट पर पेट्रोल खरीदते हैं और डीज़ल वाले सब्सिडी का मज़ा उठाते रहते हैं ? देश से इस तरह के भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए इस तरह के पदार्थों पर से हर तरह की सब्सिडी हटा दी जानी चहिये और गैस कम्पनियों और केरोसिन के कनेक्शनों की पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए जिससे यह भी सामने आ सके कि कौन किस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है ?
देश के नेताओं को अगर यह लगता है कि सरकार की नीतियों में कहीं से ग़लती है तो उन्हें पूरी दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों की वितरण नीतियों पर विचार करना चाहिए जिससे यह सामने आ सके कि क्या हमारी नीति में कोई बड़ी ख़ामी है या फिर हो सकता है कि किसी तरह से नीतियों के अनुपालन में कोई बड़ी गड़बड़ी हो रही हो ? सरकार उत्तर भारत और दक्षिण भारत की ऊर्जा ज़रूरतों पर भी विचार करके ही नयी नीति बनाये क्योंकि सर्दी के मौसम में गैस की खपत खाना बनाने में बढ़ जाती है और लगभग १५% ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है तो देश के उत्तरी भागों और पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों के लिए ८ सिलेंडर में शायद काम नहीं चल पाए ? नीतियां ऐसी होनी चाहियें जो किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने वाली हों न कि उनसे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलना शुरू हो जाये ? आज जिस तरह से देश में चुनावों में पैसा लुटने लगा है तो नेताओं को चुनाव में पैसे की अधिक आवश्यकता पड़ने लगी है जिससे वे बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के द्वारा पैसे बनाने में भी नहीं चूक रहे हैं. नीतियां ऐसी हों जो देश हित में हों चुनाव आते जाते रहेंगें और सत्ता बदलती रहेगी पर घाटे के कारण एक बार तेल कम्पनियां बंद हो गयी तो नेताओं के लिए सस्ती लोकप्रियता के चलते ऐसे कदम उठाने के अवसर भी ख़त्म हो जायेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें