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मंगलवार, 20 सितंबर 2011

भ्रष्टाचार और सतर्कता आयोग

जिस तरह से केंद्रीय सतर्कता आयोग के आंकड़े सामने आये हैं उससे यही लगता है कि देश में सबसे अधिक शिकायतें रेलवे के ख़िलाफ़ ही आती हैं और वही सबसे भ्रष्ट विभाग है जबकि ऐसा नहीं है देश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और रेलवे केंद्रीय मंत्रालय है जिससे उसके ख़िलाफ़ दिल्ली में आसानी से शिकायतें भी होती रहती हैं अगर पूरे देश में कोई ऐसी व्यवस्था हो जिसके अंतर्गत कोई भी कहीं पर भी भ्रष्टाचार की शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग से कर सके तो वास्तविकता सामने आ जाएगी. वैसे भी आज के समय में केंद्रीय सरकार के किसी भी कर्मचारी अधिकारी के ख़िलाफ़ शिकायत को सीबीआई ने लेना शुरू कर दिया है पर यही व्यवस्था राज्य कर्मचारियों के लिए लागू नहीं की जा सकती है क्योंकि तब अनावश्यक रूप से केंद्र और राज्य के सम्बन्ध बिगड़ने शुरू हो जायेंगें और कुछ राजनैतिक दलों के अनुसार देश के संघीय ढांचे में बने संविधान की मूल भावना को ठेस पहुँच सकती है.
     इन दलों से यह पूछा जाना चाहिए जब इनके नेतागण भ्रष्टाचार करते हैं तो वे किस तरह से देश के संविधान को मज़बूत करने का काम किया करते हैं ? क्योंकि हर जगह से किसी ने किसी रूप में भ्रष्टाचार की शिकायतें निरंतर मिलती रहती हैं और सरकारों के चहेते लोग अपने काम में लगे ही रहते हैं क्या तब उनको संविधान और देश की परवाह नहीं होती या फिर वे अपनों के स्वार्थों के कारण देश को डिब्बे में बंद करके रख दिया करते हैं ? आज देश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कठोर नियम होने चाहिए और इस पर नज़र रखने के लिए स्थानीय स्तर पर भी निगरानी समितियां होनी चाहिए जिसमें समाज के प्रबुद्ध और ग़ैर राजनैतिक लोगों को शामिल किया जाये जिनकी कोई महत्वकांक्षाएं न हों जिससे वे निष्पक्ष होकर काम कर सकें देश में केंद्रीय स्तर पर बने किसी भी संगठन के लिए यह निश्चित तौर पर बहुत मुश्किल काम है कि वह पूरे देश के इस तरह के अनैतिक कामों पर रोक लगा पाए. वर्तमान परिस्थियों में देश के कुछ ज़िलों या जिन राज्यों की सहमति हो वहां पर इस तरह के शिकायत तंत्र को प्रायोगिक तौर पर लागू किया जाना चाहिए और इसके नतीजों को देखकर आगे की नीतियां तय की जानी चाहिए.
     आज देश में ऊर्जा की कमी नहीं है हमारे युवा आज आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं पर साथ ही उन्हें यह बिलकुल भी मंज़ूर नहीं है कि उनके संसाधनों की इस तरह से लूट मचाई जाये और यह चंद लोगों के हाथ में ही जाकर ख़त्म हो जाये ? देश के राजनैतिक तंत्र पर जिस तरह से युवाओं को अविश्वास होता जा रहा है वह देश के नेताओं के लिए ख़तरे की घंटी है क्योंकि अब सब कुछ सुधारे बिना इन नेताओं पर देश की आने वाली पीढ़ी विश्वास नहीं करने वाली है केवल बातें करने से कुछ भी नहीं सुधरने वाला है और इसके लिए कुछ करना ही होगा. देश में कोई ऐसे वेबसाइट भी होनी चाहिए जहाँ पर जनता अपनी शिकायत कर सके और वहां पर विभागों और राज्यों के अनुसार शिकायतें करने के लिए पूरी व्यवस्था होनी चाहिए और किसी भी शिकायत के बारे में शिकायतकर्ता को एक संख्या भी प्रदान की जाये और फिर देखा जाये कि देश में ईमानदारी के पैमाने पर कौन कहाँ खड़ा है ? पर क्या नेता अपने को किसी भी स्तर पर ऐसे दिखाना पसंद करेंगें जहाँ पर उनके नाम से उनके काले कारनामों की पूरी सूची मौजूद हो ? 

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