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सोमवार, 26 सितंबर 2011

सऊदी अरब में महिलाओं को अधिकार

आखिरकार सऊदी अरब ने महिलाओं को भी कुछ हद तक सही पर बराबरी का दर्ज़ा देने की दिशा में एक कदम तो उठा ही लिया है.  अब वहां पर महिलाओं को नगर पालिका चुनावों में खड़े होने का और मत देने का अधिकार भी दे दिया गया है जिससे वे अभी तक वंचित थीं. शाह अब्दुल्लाह की इस घोषणा के बाद से सऊदी में महिलाओं के हितों और अधिकारों से जुड़े लोगों में ख़ुशी का माहौल है क्योंकि वे इन अधिकारों के बारे में बहुत दिनों से संघर्ष करने में लगे हुए थे. इस्लामी दुनिया में सऊदी अरब का बहुत महत्त्व है क्योंकि पूरी दुनिया के मुसलमान वहां पर होने वाले किसी भी परिवर्तन को बहुत ध्यान से देखते और समझते हैं और उसके अनुसार ही अपने यहाँ पर भी कुछ सुधार लाने के बारे में सोचते हैं. आज के युग में जब महिलाओं को पूरी दुनिया में बहुत सारे बराबरी के अधिकार मिले हुए हैं तो ऐसे में इस्लामी जगत में उन पर लगने वाले प्रतिबंधों पर हमेशा से ही चर्चा होती रहती है.
      अच्छा है कि सऊदी अरब के शाह ने भी आज इस ज़रुरत को समझ लिया क्योंकि जन आंदोलनों की जो आंच पूरे मध्यपूर्व में महसूस की जा रही है वह सऊदी अरब तक भी पहुंच सकती है इस ख़तरे को भांपते हुए या फिर वास्तव में अधिकारों की पैरवी करते हुए जो क़दम वहां पर उठाया गया है उसकी तारीफ़ ही करनी होगी क्योंकि इस क़दम के बहुत दूरगामी परिणाम सामने आने वाले हैं. आज जिस तरह से शिक्षा का प्रचार प्रसार हो रहा है और पूरी दुनिया एक गाँव में बदलती जा रही है तो उसके बाद किसी भी स्तर पर इस तरह के प्रतिबन्ध बहुत दिनों तक चलने वाले नहीं हैं फिर भी इन क़दमों को अगर दबाव के स्थान पर स्वेच्छा से लागू किया जाये तो इसके और बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं. इस तरह के क़दमों से सऊदी अरब की नज़ीर देने वाले देश अब अपने यहाँ पर महिलाओं को धीरे धीरे बराबरी का दर्ज़ा देने पर विचार करेंगें ऐसा माना जा सकता है.
    अब इस परिवर्तन के बाद सऊदी अरब में महिलाओं की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाने वाली है क्योंकि इस अधिकार का उन्होंने किस तरह से उपयोग किया है इस पर ही उनके आगे के अधिकार निर्भर करने वाले हैं ? अगर इसके सकारात्मक परिणाम सामने आये तो आने वाले समय में उन्हें वहां और भी आज़ादी मिलने वाली है और यदि कहीं से पुरुष प्रधान समाज को यह लगा कि वे इसका नाजायज़ फ़ायदा उठा रही हैं तो फिर से इससे भी कड़े प्रतिबंधों के लगने का रास्ता साफ़ हो सकता अहि क्योंकि तब महिला अधिकारों का विरोध करने वालों के पास यह तर्क भी होगा कि इस तरह की बात का इसीलिए विरोध किया जाता था. इस पूरे प्रकरण में सबसे अलग बात यह होती है कि बराबरी की बात करने वाले धर्म इस्लाम की मनमानी व्याख्या करके महिलाओं पर प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं ? उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में इस क़दम से पूरी इस्लामी दुनिया में महिलाओं की स्थिति सुधरने का एक नया माहौल बनना शुरू हो जायेगा.   

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