एक बार फिर से भारत और जापान ने असैन्य परमाणु वार्ता की शुरू करने के बारे में सहमति जताई है जो दोनों ही देशों के लिए बहुत दूरगामी अच्छे परिणाम लाने वाली साबित होने वाली होगी. आज जिस तरह से स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता पूरे विश्व में महसूस की जा रही है वैसे में कहीं से भी कोई देश अपने आप कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है. आज जिस तरह से एक देश की ऊर्जा ज़रूरतें पूरे विश्व की ज़रुरत बनती जा रही है उसके बाद किसी भी देश के लिए किसी तेज़ी से आगे बढती आर्थिक ताक़त की अनदेखी करना आसान नहीं होगा क्योंकि आज इन विकसित देशों में चल रही आर्थिक मंदी के कारण इनको अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए नयी उभरती हुई अर्थ व्यवस्थाओं की तरफ देखने की ज़रुरत पड़ती ही है. इसी कारण से आज भारत मंदी से जूझती विष की बड़ी आर्थिक ताकतों के लिए एक सहर बना हुआ है.
भारत ने जिस तरह से चीन के बाद विश्व में अपनी आर्थिक हैसियत में इज़ाफा किया है उसके बाद किसी भी देश के लिए इसकी अनदेखी करना बहुत ही मुश्किल हो चुका है. आज जापान के सामने भारत में चल रहे अपने साझा या पूर्ण स्वामित्व वाले उपक्रमों को चलाये रखने का बहुत दबाव है क्योंकि विकसित देशों में एक बार फिर से मौद्रिक संकट गहराने के कारण वहां पर मंदी की आशंका सर उठाने लगी है और ऐसी स्थिति में किसी भी वैश्विक कम्पनी के लिए अपने को बचाए रखने के लिए बहुत सारी जुगत लगानी पड़ती है. ऐसे में अगर जापान भी किसी भी तरह की अन्य बातों और भारत के शानदार परमाणु इतिहास को देखते हुए इस तरह की किसी संधि पर विचार करना चाहता है तो उससे दोनों ही देशों के लिए विकास के नए आयाम खुल सकते हैं. जापान की बड़ी मोटर कम्पनियां आज भारत को ऐसी में अपने उत्पादन केंद्र के रूप में स्थापित करने में लगी हुई है जहाँ से वे खाड़ी और अफ़्रीकी देशों तक अपने माल को बेचने की रणनीति पर भी काम कर रही हैं जिससे भारत का आर्थिक महत्त्व और भी बढ़ जाता है.
भारत को अविलम्ब ऐसी किसी भी स्थिति का लाभ उठाना चाहिए और साथ ही इनको केवल सरकार के स्तर तक द्विपक्षीय न रखते हुए आर्थिक सौदों से भी जोड़ना चाहिए क्योंकि अब बिना इस तरह की संभावनाओं को टटोले कोई देश काम नहीं करना चाहता है. इससे भारत को यह लाभ भी मिलेगा की आने वाले समय में इन देशों के आर्थिक हित भी इन समझौतों से जुड़े होंगे जिस कारण से ये देश परमाणु ऊर्जा के लिए ईंधन आदि की आपूर्ति पर नयी शर्तें लगाने की स्थिति में नहीं होंगें. आज भारत का हर मामले में हाथ ऊपर ही है और इसका सही इस्तेमाल भी किया जाना ज़रूरी है क्योंकि किसी भी स्थिति में अब देश और अधिक अनर्गल बातें झेलने की स्थिति में नहीं है. हाँ देश की राजनीति को देखते हुए सरकार को किसी भी तरह की वार्ता को अंतिम दौर में पहुँचाने से पहले सभी राजनैतिक दलों को विश्वास में लेना चाहिए जिससे आने वाले समय में संसद में इन संधियों के अनुमोदन में अनावश्यक विलम्ब न हो सके और देश की ऊर्जा ज़रूरतों को समय रहते पूरा किया जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारत ने जिस तरह से चीन के बाद विश्व में अपनी आर्थिक हैसियत में इज़ाफा किया है उसके बाद किसी भी देश के लिए इसकी अनदेखी करना बहुत ही मुश्किल हो चुका है. आज जापान के सामने भारत में चल रहे अपने साझा या पूर्ण स्वामित्व वाले उपक्रमों को चलाये रखने का बहुत दबाव है क्योंकि विकसित देशों में एक बार फिर से मौद्रिक संकट गहराने के कारण वहां पर मंदी की आशंका सर उठाने लगी है और ऐसी स्थिति में किसी भी वैश्विक कम्पनी के लिए अपने को बचाए रखने के लिए बहुत सारी जुगत लगानी पड़ती है. ऐसे में अगर जापान भी किसी भी तरह की अन्य बातों और भारत के शानदार परमाणु इतिहास को देखते हुए इस तरह की किसी संधि पर विचार करना चाहता है तो उससे दोनों ही देशों के लिए विकास के नए आयाम खुल सकते हैं. जापान की बड़ी मोटर कम्पनियां आज भारत को ऐसी में अपने उत्पादन केंद्र के रूप में स्थापित करने में लगी हुई है जहाँ से वे खाड़ी और अफ़्रीकी देशों तक अपने माल को बेचने की रणनीति पर भी काम कर रही हैं जिससे भारत का आर्थिक महत्त्व और भी बढ़ जाता है.
भारत को अविलम्ब ऐसी किसी भी स्थिति का लाभ उठाना चाहिए और साथ ही इनको केवल सरकार के स्तर तक द्विपक्षीय न रखते हुए आर्थिक सौदों से भी जोड़ना चाहिए क्योंकि अब बिना इस तरह की संभावनाओं को टटोले कोई देश काम नहीं करना चाहता है. इससे भारत को यह लाभ भी मिलेगा की आने वाले समय में इन देशों के आर्थिक हित भी इन समझौतों से जुड़े होंगे जिस कारण से ये देश परमाणु ऊर्जा के लिए ईंधन आदि की आपूर्ति पर नयी शर्तें लगाने की स्थिति में नहीं होंगें. आज भारत का हर मामले में हाथ ऊपर ही है और इसका सही इस्तेमाल भी किया जाना ज़रूरी है क्योंकि किसी भी स्थिति में अब देश और अधिक अनर्गल बातें झेलने की स्थिति में नहीं है. हाँ देश की राजनीति को देखते हुए सरकार को किसी भी तरह की वार्ता को अंतिम दौर में पहुँचाने से पहले सभी राजनैतिक दलों को विश्वास में लेना चाहिए जिससे आने वाले समय में संसद में इन संधियों के अनुमोदन में अनावश्यक विलम्ब न हो सके और देश की ऊर्जा ज़रूरतों को समय रहते पूरा किया जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कुछ सार्थक अवश्य निकलेगा।
जवाब देंहटाएं