मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

पेट्रोल की कीमत

         बुधवार मध्यरात्रि से एक बार फिर से पेट्रोल की कीमतों का पुनर्निर्धारण तेल कम्पनियों द्वारा किया गया जिसके बाद अब यह प्रति लीटर ७८ पैसे की कमी के साथ बाज़ार में उपलब्ध होगा. जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रोज़ ही तेल की कीमतें बढ़ती घटती रहती हैं उसके बाद इस तरह के उतार चढ़ाव के लिए अब उपभोक्ताओं को तैयार रहना ही होगा क्योंकि अब तेल कम्पनियों को किसी भी तरह से घाटे में रखकर या फिर जनता के द्वारा चुकाए गए कर को इस मद में खर्च करने का कोई मतलब नहीं बनता है. आज देश में विकास योजनाओं और अन्य योजनाओं को चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता है तो उसे इन पर खर्च करने के बजाय सब्सिडी के रूप में देने से कोई मतलब हल नहीं होने वाला है. अभी तक जिस तरह से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य के बढ़ने पर हो हल्ला मचाया जाता है उसकी देश में कोई आवश्यकता नहीं है अब जब हाल ही में दो बार दाम घटाए जा चुके हैं तो कोई विपक्षी दल यह कहने वाला नहीं है कि इससे मंहगाई घटेगी ?
  देश में जिस तरह से हर बात में राजनीति को घुसेड़ने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है उससे देश के संसाधनों के बेहतर प्रयोग पर रोक लग जाती है और आने वाले समय में ये फालतू की रोक देश के विकास में बाधक बनने वाली है और उस समय सभी को यह लगेगा कि आख़िर हमने समय रहते सही कदम क्यों नहीं उठाया ? आज डीज़ल के नाम पर जो मक्कारी देश में चल रही है उस पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है अब यही सही समय है कि डीज़ल के दामों को भी बाज़ार के ताज़ा मूल्यों से जोड़ दिया जाये जिससे तेल कम्पनियों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी रह सके. देश को अब एक पेट्रोलियम नियामक आयोग की भी आवश्यकता है जो इस तरह की परिस्थितियों में तेल कंपनियों पर नज़र रख सके.  कोई भी सरकार इस तरह के अलोकप्रिय कदम तभी उठा सकती है जब वह इतना बड़ा ख़तरा मोल लेने के लिए तैयार हो क्योंकि इस तरह के कदम किसी पार्टी को तात्कालिक लाभ तो नहीं दे सकते पर लम्बे समय में देश के लिए बहुत अच्छे होते हैं. जैसे रोगी की जान बचाने के लिए उसको कड़वी दवाईयां देनी पड़ती हैं वैसे ही अब कड़े कदम उठाने की ज़रुरत आ गयी है.
   देश में कभी भी कुछ भी सही ढंग से न चलने देने की क़सम खाए कुछ लोग पता नहीं क्या चाहते हैं क्योंकि अब देश को सही दिशा में सधे हुआ क़दमों से बढ़ने की आवश्यकता है आज देश में जो कुछ भी चल रहा है उसके लिए सभी को विचार करने की ज़रुरत है सर्वदलीय बैठकों में किसी बात का हल एकदम से नहीं निकल सकता है ऐसे में बात करके सही रास्ते ढूँढने की तरफ़ जाने चाहिए. सरकार के लिए भी यह आवश्यक है कि वह देश को विश्वास में ले और जनता को भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने का अवसर दे क्योंकि आज संसद में जो कुछ भी होने लगा है उसमें देश के भविष्य के लिए किसी सार्थक बहस का कोई स्थान बचा ही नहीं है और हर कोई अपनी बात करने में लगा हुआ है. संसद सर्वोच्च है यह सभी कहते हैं पर इसको ठेस पहुँचाने की बात भी वही लोग करते हैं. देश की प्रगति के लिए सही कदम उठाने के लिए सार्थक बहस की ज़रुरत है पर क्या देश का राजनैतिक तंत्र इस सच्चाई को समझ पा रहा है ?     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. ये मनमोहन भी ले लो; ये राहुल भी ले लो; भले छीन लो हमसे सोनिया गांधी!
    मगर हमको लौटा दो, वो कीमतें पुरानी; वो पेट्रोल, वो गैस, वो बिजली, वो पानी!
    बड़ी मेहरबानी, बड़ी मेहरबानी!!

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