केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए तीन नए विधेयकों को जिस तरह से अपनी मंज़ूरी दी है उससे यही लगता है कि देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सरकार प्रयास तो कर रही है पर जिस तरह से अन्ना की टीम और कुछ विपक्षी दल चाहते हैं उसे उनका वह स्वरुप मंज़ूर नहीं है. अन्ना की मुख्य मांगों में हर स्तर से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए मज़बूत लोकपाल की मांग की जा रही है जबकि सरकार इससे मतभिन्नता दिखाते हुए अपने हिसाब से इन मुद्दों को अलग अलग नियामकों के हवाले करना चाहती है. न्यायपालिका उत्तरदायित्व विधेयक, सिटिज़न चार्टर और व्हिसिल ब्लोवर विधेयक को तीन अलग अलग स्वरूपों में सरकार ने अपनी मंज़ूरी प्रदान कर दी है जिससे यह लगता है कि आने वाले समय में सरकार अपने तरकश में वे सारे तीर चाहती है जिससे उस पर हमले करने की नीति पर विपक्ष चल रहा है. यह सही है कि देश में भ्रष्टाचार जिस स्तर पर पहुंचा हुआ है उससे निपटने के लिए अब बहुत ही कड़े कानूनों की आवश्यकता है पर जिस तरह से लोकपाल में सारी शक्तियां समाहित करने की अन्ना की मांग के स्थान पर सरकार अलग अलग तरह से शक्तियों को बाँट रही है वह भारत के संविधान की मूल आत्मा के साथ बिलकुल ठीक कर रही है क्योंकि देश का संविधान किसी एक व्यक्ति या पद को किसी भी स्तर पर सारी शक्तियां देने की वक़ालत नहीं करता है.
सरकार का अपने ढंग से सोचना ठीक है पर सरकार जिस मंशा से काम कर रही है उससे उसकी नियति पर संदेह होने लगता है और अन्ना को भी हमले करने पर मजबूर होना पड़ता है. अच्छा होता कि इन मसलों पर सरकार अन्ना को पहले ही विश्वास में लेती और यह बताती कि इन विधेयकों को अलग अलग लाने के पीछे उसकी मंशा क्या है ? देश की विशालता व्याप्त भ्रष्टाचार से स्वरुप को देखते हुए किसी एक कार्यालय या व्यक्ति के लिए समय पर सारी जांचे करके उचित कदम उठाने की संस्तुति किये जाने की आशा कैसे की जा सकती है ? अगर इस स्तर से सोचा जाये तो सरकार के इन विधेयकों को अलग करने की मंशा साफ़ हो जाती है पर जिस तरह से इस मसौदे को भी विचार विमर्श से दूर रखा गया उससे यही लगता है कि सरकार में कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो देश में अनावश्यक तरीके से कुछ सनसनी फैलाने का काम करते रहते हैं या फिर हो सकता है कि ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा यह भी हो कि वह जनता को यह बता सके कि वह भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए केवल लोकपाल पर ही निर्भर नहीं रहना चाहती है वरन सभी विभागों को इसके लिए पूरी तरह से तैयार करना चाहती है ?
अच्छा हो कि इन विधेयकों पर सभी लोग खुले मन से अपनी राय दें जिससे आने वाले समय में इन कड़े प्रावधानों के साथ देश से भ्रष्टाचार को मिटने की दिशा में सही ढंग से काम किया जा सके क्योंकि अब देश को अराजकता और संघर्ष की नहीं बल्कि समग्र विकास की आवश्यकता है और इससे निपटने के लिए जिस तरह के भी प्रावधानों की ज़रुरत है वे बिना किसी हिचक के किये जाने चाहिए. संसद को सड़क बनाए के स्थान पर वहां सार्थक बहस को स्थान मिलना चाहिए. लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का पूरा हक़ है पर संसद में चुप्पी साधने वाले राजनैतिक दलों के नेता जंतर मंतर पर अपनी बात कहने में नहीं चूकते हैं क्या यह लोकतंत्र के लिए घातक स्थिति नहीं है ? संसद के चलते समय सरकार पर इस बात की पाबन्दी रहती है कि वह कोई भी नीतिगत घोषणा सदन में ही कर सकती है पर विपक्ष के लिए यह आचार संहिता अलग कैसे हो सकती है ? अगर विपक्षियों को लोकपाल पर कुछ कहना था तो पहले संसद के दोनों सदनों में सरकार से सार्थक बहस में उलझना चाहिए था और इसके बाद सफलता न मिलने पर ही इस तरह से जंतर मंतर पर बोलना चाहिए थे. संसद की गरिमा का उल्लंघन करने के लिए इन सांसदों पर क्या कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए ? पर वो नहीं हो पायेगी क्योंकि नियमों को अपने हिसाब से तोड़ने और उनकी व्याख्या करने में हमारे नेताओं की कोई सानी नहीं है भले ही देश और संसद कुछ भी चाहते रहें ? विरोध ग़लत बातों का होना चाहिए न कि हर बात का पर देश में लोकतंत्र और नेताओं को यह समझने में अभी बहुत समय लगने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सरकार का अपने ढंग से सोचना ठीक है पर सरकार जिस मंशा से काम कर रही है उससे उसकी नियति पर संदेह होने लगता है और अन्ना को भी हमले करने पर मजबूर होना पड़ता है. अच्छा होता कि इन मसलों पर सरकार अन्ना को पहले ही विश्वास में लेती और यह बताती कि इन विधेयकों को अलग अलग लाने के पीछे उसकी मंशा क्या है ? देश की विशालता व्याप्त भ्रष्टाचार से स्वरुप को देखते हुए किसी एक कार्यालय या व्यक्ति के लिए समय पर सारी जांचे करके उचित कदम उठाने की संस्तुति किये जाने की आशा कैसे की जा सकती है ? अगर इस स्तर से सोचा जाये तो सरकार के इन विधेयकों को अलग करने की मंशा साफ़ हो जाती है पर जिस तरह से इस मसौदे को भी विचार विमर्श से दूर रखा गया उससे यही लगता है कि सरकार में कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो देश में अनावश्यक तरीके से कुछ सनसनी फैलाने का काम करते रहते हैं या फिर हो सकता है कि ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा यह भी हो कि वह जनता को यह बता सके कि वह भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए केवल लोकपाल पर ही निर्भर नहीं रहना चाहती है वरन सभी विभागों को इसके लिए पूरी तरह से तैयार करना चाहती है ?
अच्छा हो कि इन विधेयकों पर सभी लोग खुले मन से अपनी राय दें जिससे आने वाले समय में इन कड़े प्रावधानों के साथ देश से भ्रष्टाचार को मिटने की दिशा में सही ढंग से काम किया जा सके क्योंकि अब देश को अराजकता और संघर्ष की नहीं बल्कि समग्र विकास की आवश्यकता है और इससे निपटने के लिए जिस तरह के भी प्रावधानों की ज़रुरत है वे बिना किसी हिचक के किये जाने चाहिए. संसद को सड़क बनाए के स्थान पर वहां सार्थक बहस को स्थान मिलना चाहिए. लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का पूरा हक़ है पर संसद में चुप्पी साधने वाले राजनैतिक दलों के नेता जंतर मंतर पर अपनी बात कहने में नहीं चूकते हैं क्या यह लोकतंत्र के लिए घातक स्थिति नहीं है ? संसद के चलते समय सरकार पर इस बात की पाबन्दी रहती है कि वह कोई भी नीतिगत घोषणा सदन में ही कर सकती है पर विपक्ष के लिए यह आचार संहिता अलग कैसे हो सकती है ? अगर विपक्षियों को लोकपाल पर कुछ कहना था तो पहले संसद के दोनों सदनों में सरकार से सार्थक बहस में उलझना चाहिए था और इसके बाद सफलता न मिलने पर ही इस तरह से जंतर मंतर पर बोलना चाहिए थे. संसद की गरिमा का उल्लंघन करने के लिए इन सांसदों पर क्या कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए ? पर वो नहीं हो पायेगी क्योंकि नियमों को अपने हिसाब से तोड़ने और उनकी व्याख्या करने में हमारे नेताओं की कोई सानी नहीं है भले ही देश और संसद कुछ भी चाहते रहें ? विरोध ग़लत बातों का होना चाहिए न कि हर बात का पर देश में लोकतंत्र और नेताओं को यह समझने में अभी बहुत समय लगने वाला है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
agar sarkarein chahti to ab tak desh sudhar gaya hota, saath saal kam nahi hote..
जवाब देंहटाएं