मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

राजनैतिक शुचिता और मोदी

        देश में राजनीति ने जिस तरह से मुद्दों को व्यक्तिगत स्तर तक पहुँचाने का काम करना शुरू कर दिया है उससे यही लगता है कि अब राजनैतिक मुद्दों को व्यक्तिगत हमले के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है. इसी क्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने १८ दिसंबर के सद्भावना उपवास से पहले लगाये गए कुछ होर्डिंग्स को हटाये जाने के आदेश दिए हैं और साथ ही यह भी कहा है कि राजनैतिक विरोध करते समय गरिमा का ध्यान रखा जाना चाहिए. जब देश में किसी भी काम को व्यक्तिगत हमले के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है जिससे यह पता चलता है कि नेताओं के पास वास्तविक मुद्दों की कितनी कमी हो गयी है और अब व्यक्तिगत हमलों को प्राथमिकता दी जाने लगी है. ऐसा नहीं है कि पूरी दुनिया में इस तरह के हमले नहीं किये जाते हैं पर भारत में इनका स्तर जितना गिरता जा रहा है वह वास्तव में चिंता की बात है आरोप लगते समय नेता और कार्यकर्ता यह भूल जाते हैं कि उनको ऐसी बातें करने का कोई हक़ किसी से भी नहीं मिला हुआ है ?
    हमेशा से ही अपने अलग तरह से काम करने के अंदाज़ के कारण चर्चा में रहने के कारण मोदी के लिए इस तरह की बातें करना कोई नयी बात नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने इस तरह की बातें कभी नहीं की हैं गुजरात चुनाव के समय लिंगदोह के मुख्य चुनाव आयुक्त रहते समय उन्होंने उनके ईसाई होने और सोनिया की मदद करने के आरोप खुले आम लगाये थे ? फिर भी अगर वे वास्तव में इस तरह की राजनीति पर लगाम लगाने के लिए चिंतित हैं तो सबसे पहले उन्हें गुजरात से ही इसकी शुरुवात कर देनी चाहिए क्योंकि गुजरात में भाजपा के मायने केवल और केवल नरेन्द्र मोदी ही हैं. ऐसा भी नहीं है कि केवल भाजपा ही इस तरह के व्यक्तिगत आरोप लगाया करती है बल्कि समय आने पर कांग्रेस समेत सभी दल अपने विरोधियों पर इस तरह के आरोप लगाते रहते हैं पर जब तक इनका मतलब केवल कुछ हंसी मजाक के साथ अपनी बात कहने तक हो तभी तक इसके इस्तेमाल की इजाज़त दी जा सकती है. जब राजनेताओं को हर बात के लिए एक नियामक की आवश्यकता महसूस होती है तो उन्हें ऐसे में एक दूसरे के ख़िलाफ़ मर्यादित व्यवहार करना सिखाने और उनकी हरकतों पर नज़र रखने के लिए एक आयोग की आवश्यकता क्यों महसूस नहीं होती है ?
      देश के लोग इतने नासमझ भी नहीं है कि इस तरह की बातें करने वाले लोगो की मंशा नहीं समझ पायें पर देश के लिए नीतियां बनाये जाते समय उठाये जाने वाले कड़े क़दमों में किसी की व्यक्तिगत आलोचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसका वह कदम उसके लिए नहीं वरन देश के लिए होता है. आज भी जिस तरह से राजनैतिक विरोध को व्यक्तिगत रंजिश के रूप में लिया जाने लगा है उसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि कभी न कभी कोई न कोई दल सत्ता में होता है तो कभी कोई विपक्ष में ? पर केवल अपनी बात को ज़ोरदार तरीके से कहने के लिए अपशब्दों या अमर्यादित व्यवहार करने की छूट किसी को भी नहीं दी जा सकती है. मुद्दों पर बात करने के लिए हमारे नेता संसद और विधान सभाओं में जाना ही नहीं चाहते हैं पर व्यक्तिगत हमले करने के लिए उनके पास थोक के भाव में समय रहता है ? अब समय आ गया है कि इसी बहाने से व्यक्तिगत हमलों को रोकने के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं को समझा दिया जाना चाहिए क्योंकि व्यक्तिगत मुद्दों पर इस तरह से हमले करने से किसी का भला नहीं होने वाला है और नेताओं की जो ऊर्जा देश हित में लगनी चाहिए वह केवल फालतू की बातों में ही नष्ट हो जाती है..  
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