मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

अल कायदा और अफ्रीका

         पाकिस्तान में लगातार कमज़ोर होते जा रहे इस्लामी कट्टरपंथी समूह अल कायदा के बारे में अब यह ख़ुफ़िया सूचना मिली है कि वह उत्तरी अफ्रीका में अपना नया ठिकाना बनाने की फ़िराक में है. अभी तक जिस तरह से इस आतंकी संगठन ने पाकिस्तान को अपना स्थायी ठिकाना बनाया हुआ था उससे यही लगता है कि यहाँ पर बढ़ते दबाव ने उसे अपनी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर कर दिया है जिस तरह से इस संगठन के शीर्ष आतंकी २०११ में मारे गए हैं उससे इसकी ताक़त में कमी तो आई है और कुछ आतंक के ख़िलाफ़ बेहतर लड़ रहे देशों में बेहतर तालमेल होने से भी इन पर काफी हद तक दबाव बन गया है ऐसे में इनके लिए सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल बचके रहने की ही है क्योंकि इनका मानना है कि फिर माहौल कुछ अनुकूल होने पर ये अपने आतंक को आगे बढ़ा सकते हैं. पर आज जिस तरह से बड़ी ज़मीनी लड़ाई के स्थान पर इनसे ड्रोन हमलों से निपटा जा रहा है उसमें इनका मनोबल तो टूट रहा है पर इनके ख़िलाफ़ लड़ने वाले देशों को बहुत नुकसान नहीं हो पा रहा है. इस सधे हुए हमलों से जान माल का व्यापक नुकसान भी नहीं होता है और अधिकांश मामलों में सफलता ही हाथ लगती है.
     जब इन आतंकियों का दबाव कम हो रहा है तो ऐसे में इनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में पीड़ित देशों को सही ढंग से पुनर्वास कार्यक्रमों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि जब तक विकास और विश्वास की भावना लोगों में नहीं आएगी तब तक ये आतंकी अपने मंसूबों को किसी न किसी तरह से पूरा करने में लगे ही रहेंगें. इस्लामी आतंक से पीड़ित सभी देशों को एक व्यापक पुनर्वास कार्यक्रम के बारे में विचार करना चाहिए क्योंकि जब तक दबे कुचले इन लोगों के लिए सम्मान से जीने की राह नहीं खुलेगी तब तक कोई आतंकी संगठन फिर से कुछ न कुछ करके इन्हें अपने पंजे में जकड़ने की कोशिश करता रहेगा. दुनिया और समाज में जो कुछ भी होता है उसका प्रभाव सभी पर पड़ता है जैसे आतंक के इस दौर से कोई भी देश बच नहीं पाया है ऐसे में आतंक को केवल आतंक के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए जिससे कोई इसे अपने हिसाब से अन्य नाम देकर अपने हितों को साधने का काम न कर सके ? आतंक की परिभाषा अलग अलग देशों के नज़रिए से अलग हो सकती है पर इससे आम लोगों के अधिकारों का हनन हमेशा ही होता रहता है. इसलिए अब आतंक को अन्य सम्मान से जुड़े मसलों से जोड़कर देखने की दृष्टि को ख़त्म ही करना होगा.
    संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्था को अब मज़बूत किये जाने की और वहां बनने वाली नीतियों को पूरी दुनिया के परिपेक्ष्य में भी देखे जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जब तक इस संस्था से केवल अपने चहेते देशों को रेवड़ी बांटने का काम किया जाता रहेगा तब तक असंतुलन की इस खाई को पाटना मुश्किल ही होगा. आतंकियों के मंसूबों पर ध्यान देने के साथ व्यापक नीतियों की भी अब आवश्यकता है क्योंकि जब तक कहीं भी लोगों के सामने जीने का संकट रहेगा तब तक उन्हें बरगलाने की संभावनाएं भी बनी रहेंगीं. आज जिन देशों में अल कायदा अपने पैर जमाना चाहता है उन पर सभी को ध्यान देना चाहिए और इसे केवल उन देशों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि अगर उन आतंकियों ने अपने लिए फिर कोई मज़बूत ठिकाना बना लिया तो उन्हें वहां से निकालने के लिए फिर से बड़ी सैन्य कार्यवाही करनी होगी जिसमें आम आदमी और पूरी दुनिया के संसाधन भी लग जायेंगें. आतंक के मसले पर पूरी दुनिया में सभी को एक संधि पर विचार करना चाहिए अपर आज के समय समस्या यह है कि अपने हितों को छोड़कर पूरी दुनिया के लिए सोचने की दृष्टि अमेरिका के पास है भी या नहीं ?    
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. पहले भारत की ही देख लीजिए, बाकी देश खुद की चिंता कर लेंगे. भारत से तो नासूर मिटाइए.

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