एक बार फिर से पाक में जिस तरह से संकट बढ़ता ही जा रहा है उससे यही लगता है कि कहीं ऐसा न हो एक बार फिर से सेना वहां की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करके सैन्य शासन लागू कर दे क्योंकि पाक में कहने के लिए तो सरकार सर्वोच्च्च है पर आवश्यकता पड़ने पर वहां कि शक्तिशाली सेना हमेशा ही इसको रौंदती रही है. आज जिस तरह से पाक के रिश्ते अमेरिका से अचानक ही बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं उसमें भी सेना का महत्वपूर्ण रोल है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अब इस वर्चस्व की लड़ाई में लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार या सैन्य ढांचे में से किसी एक के प्रभाव को दुनिया शीघ्र ही देखेगी. कहने को तो ऐसा लग रहा है जैसे वहां पर सारा कुछ ठीक चल रहा है पर परदे के पीछे बहुत खींचतान चल रही है जिस कारण से वहां से कभी भी चौंकाने वाली खबर आ सकती है. सरकार सेना पर ओसामा के मामले में विफल रहने का आरोप लगा ही चुकी है ऐसे में सेना अपने चेहरे को बचाने के लिए क्या करेगी यह देखने का विषय है.
पाक में आज़ादी के समय से ही सेना इतनी शक्तिशाली रही है कि जब भी आवश्यकता पड़ी उसने वहां पर अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए लोकतंत्र का गला घोंटने में कोई कोताही नहीं की. अब जब एक बार फिर से सैन्य तंत्र लोकतंत्र के समर्थकों से टकराने के मूड में दिखाई दे रहा है उससे यही लगता है कि आज भी पाक में सेना की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. जिस तरह से छोटे छोटे विवाद भी वहां पर दोनों के बीच खाई बढ़ाने का काम कर रहे हैं उससे यही लगता है कि अभी भी पाक में इतनी परिपक्वता नहीं आ पायी है जिससे वह यह साबित कर सके कि वहां के सभी तंत्र ठीक ढंग से अपनी भूमिका का निर्वहन करने में लगे हुए हैं. पाक के इतिहास में अभी तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सेना से टकराव करके कोई सरकार बच पाई हो पर इस बार जिस तरह से सेना में भी मतभेद दिखाई दे रहा है उससे यही लगता है कि सत्ता पर सेना कब्ज़ा करने के मूड में नहीं है क्योंकि अमेरिका के बिना पाक की सेना कुछ भी नहीं कर सकती है और आने वाले समय में सेना यह तोहमत पाने सर नहीं लेना चाहती कि अमेरिका को उसने कोई रियायत दी थी.
वर्तमान में पाक में इस तरह की अनिश्चितता भारत समेत कई देशों के लिए बड़ी समस्या लेकर आ सकती है क्योंकि जब भी पाक में इस तरह का माहौल बनता है तो वहां पर भारत विरोधी तत्व पूरे तंत्र पर हावी हो जाते हैं और एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कुछ भी करना शुरू कर देते हैं ? भारत को अपना दुश्मन बताकर वहां की जनता को आसानी से बरगलाया जा सकता है जिस कारण से ऐसा माहौल भारत के लिए हमेशा ही अजीब सा होता है. अच्छा हो कि वहां की सेना और राजनैतिक तंत्र अपनी इस आदत को सुधारे जिससे वहां के लोगों का जीवन सुधरे और भारत के साथ विश्वास बहाली वास्तव में की जा सके. अज जब ४ वर्षों के बाद भारत-पाक में फिर से बात शुरू हुई है तो ऐसे में पाक में व्याप्त इतने तनाव के माहौल में क्या बात हो पायेगी यह सोचा जा सकता है ? हमेशा की तरह सरकार और सेना एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है और भारत के विरुद्ध कुछ कर भी सकते हैं. पाक सेना की सीमा पार हलचलों के बारे में भारत पहले ही सचेत हो चुका है और ऐसे में अगर अपनी विफलता को छिपाने के लिए ये दोनों भारत विरोध की अफीम का एक बार फिर से इस्तेमाल कर ले तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
पाक में आज़ादी के समय से ही सेना इतनी शक्तिशाली रही है कि जब भी आवश्यकता पड़ी उसने वहां पर अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए लोकतंत्र का गला घोंटने में कोई कोताही नहीं की. अब जब एक बार फिर से सैन्य तंत्र लोकतंत्र के समर्थकों से टकराने के मूड में दिखाई दे रहा है उससे यही लगता है कि आज भी पाक में सेना की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. जिस तरह से छोटे छोटे विवाद भी वहां पर दोनों के बीच खाई बढ़ाने का काम कर रहे हैं उससे यही लगता है कि अभी भी पाक में इतनी परिपक्वता नहीं आ पायी है जिससे वह यह साबित कर सके कि वहां के सभी तंत्र ठीक ढंग से अपनी भूमिका का निर्वहन करने में लगे हुए हैं. पाक के इतिहास में अभी तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सेना से टकराव करके कोई सरकार बच पाई हो पर इस बार जिस तरह से सेना में भी मतभेद दिखाई दे रहा है उससे यही लगता है कि सत्ता पर सेना कब्ज़ा करने के मूड में नहीं है क्योंकि अमेरिका के बिना पाक की सेना कुछ भी नहीं कर सकती है और आने वाले समय में सेना यह तोहमत पाने सर नहीं लेना चाहती कि अमेरिका को उसने कोई रियायत दी थी.
वर्तमान में पाक में इस तरह की अनिश्चितता भारत समेत कई देशों के लिए बड़ी समस्या लेकर आ सकती है क्योंकि जब भी पाक में इस तरह का माहौल बनता है तो वहां पर भारत विरोधी तत्व पूरे तंत्र पर हावी हो जाते हैं और एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कुछ भी करना शुरू कर देते हैं ? भारत को अपना दुश्मन बताकर वहां की जनता को आसानी से बरगलाया जा सकता है जिस कारण से ऐसा माहौल भारत के लिए हमेशा ही अजीब सा होता है. अच्छा हो कि वहां की सेना और राजनैतिक तंत्र अपनी इस आदत को सुधारे जिससे वहां के लोगों का जीवन सुधरे और भारत के साथ विश्वास बहाली वास्तव में की जा सके. अज जब ४ वर्षों के बाद भारत-पाक में फिर से बात शुरू हुई है तो ऐसे में पाक में व्याप्त इतने तनाव के माहौल में क्या बात हो पायेगी यह सोचा जा सकता है ? हमेशा की तरह सरकार और सेना एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है और भारत के विरुद्ध कुछ कर भी सकते हैं. पाक सेना की सीमा पार हलचलों के बारे में भारत पहले ही सचेत हो चुका है और ऐसे में अगर अपनी विफलता को छिपाने के लिए ये दोनों भारत विरोध की अफीम का एक बार फिर से इस्तेमाल कर ले तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा.
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