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शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

राहुल भावी सीएम क्यों नहीं ?

          उत्तर प्रदेश में जिस तरह से लगातार कांग्रेस अपने खोये हुए जनाधार को वापस पाने की तरफ बढ़ती जा रही है उसे अब समीक्षक भी मानने लगे हैं अभी तक जो लोग राहुल को केवल पोस्टर बॉय के रूप में देख या दिखा रहे थे अब उन्हें यह पता चल रहा है कि जिन बातों को पिछले दो वर्षों में केवल हथकंडे के रूप में देखा जा रहा था आज वे वोट में बदलते हुए दिखाई दे रहे हैं. ऐसी स्थिति में प्रदेश के लिए बहुत अच्छी खबर सामने आ सकती है कि आने वाले समय में बिहार की तरह यूपी भी जाति/ बिरादरी की इस बेडी को तोड़ फेंके ? पिछले दो चुनावों में जिस तरह से बिहार ने अपने आप को पूरी तरह से इस छोटी जकड़न दूर कर लिया है वह उल्लेखनीय है और अब समय है कि देश के विकास के साथ यूपी भी इस जकड़न से बाहर निकल आये. वर्तमान चुनाव में जिस तरह से अब राजनीतक समीक्षक भी राहुल को अधिक गंभीर नेता और विपक्षियों के लिए बड़ी चुनौती मानने लगे हैं वह कांग्रेस के लिए शुभ संकेत है. अब प्रदेश की जनता भी यह चाहती है कि देश में यूपी फिर से अपने पुराने गौरव को पा सके और आने वाले समय में प्रदेश की वही हैसियत लौट आये जो आज से २५ वर्ष पहले हुआ करती थी. 
       अभी तक कांग्रेस भी इस बात को नहीं समझ पायी है कि वह यूपी में कितने बड़े लाभ की स्थिति में है क्योंकि अब हर तरह के बंधनों से मुक्त होकर प्रदेश की जनता भी एक मज़बूत जनादेश के साथ आगे बढ़ने की आशा कर रही है पर शायद कांग्रेस अभी भी इस बात को भांप नहीं पा रही है. यह सही है कि केवल बसपा को छोड़कर किसी भी दल ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि अगर उनके दल को बहुमत मिलता है तो मुख्यमंत्री कौन होगा ? ऐसे में जो लाभ मज़बूत नेता के रूप में किसी को पेश करके पाया जा सकता है वह सभी दल खोये दे रहे हैं. आज के समय में जब आम कांग्रेसी राहुल को केवल प्रधानमंत्री पद पर ही देखना चाहता है वह यह नहीं समझ पा रहा है कि यूपी में राहुल आख़िर किस तरह का रोल अदा करें ? राहुल के करने से जो कुछ भी होने वाला है वह हो रहा है और आने वाले समय में कांग्रेस को भी उन्हें बड़ी चुनौतियाँ लेने के लिए ख़ुद ही तैयार कर देना चाहिए जिस तरह से राहुल अपनी गंभीर शैली से विरोधियों के खेमे में हलचल मचाये दे रहे हैं उससे भी सभी को कुछ सीखना चाहिए. अभी तक जिसे विपक्षी दल राहुल की नौटंकी बताते थे आज वे उसको एक समझी हुई रणनीति का हिस्सा मानने लगे हैं. मायावती को शुरू से ही इस तरह की बातों का अंदेशा था तभी उन्होंने ख़ुद और पार्टी के स्तर पर राहुल पर हमले करना जारी रखा था. 
     आज जिस तरह से पूरे प्रदेश में राहुल की सभाओं में लोगों का समर्थन दिखाई दे रहा है अगर कांग्रेस को उसका पूरा लाभ उठाना है और राहुल की नेतृत्व क्षमता को परखने में दिलचस्पी है तो बिना देर किये अब कांग्रेस को उन्हें यूपी में बहुमत मिलने की स्थिति में सीएम के रूप में पेश कर ही देना चाहिए. जिन लोगों को यह डर सताता है कि पता नहीं राहुल कैसा कर पायें उन्हें अब यह सोचना ही होगा कि उन पर पूरा भरोसा करने का समय आ गया है और जैसा कि देश के लिए कुशल नेतृत्व की बात करने वाले लोगों में राहुल की भी गिनती होती है तो उन्हें इस समय यूपी की इस ज़िम्मेदारी को चुनौती पूर्वक स्वीकार करना ही चाहिए क्योंकि आज राहुल पार्टी के लिए वोट मांग रहे हैं और जनता भी जानती है कि कांग्रेस के बड़े दल के रूप में उभरने पर राहुल तो कम से कम सीएम नहीं बनने जा रहे हैं जो कि प्रदेश में कांग्रेस के ख़िलाफ़ जा सकता है. अब राहुल को आगे बढ़कर ख़ुद ही यह कहना चाहिए कि वे इस चुनौती के लिए तैयार हैं क्योंकि अगर वे जीत जाते हैं तो उन्हें आगे आने वाले समय में प्रधानमंत्री पद के राजनीति का अनुभव भी हो जायेगा और हार की स्थिति में उनके पास २०१४ के आम चुनाव और बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार करने की स्थिति भी होगी. राजनीति में इस तरह के क़दम बिना नफ़े नुकसान के देखे जाने चाहिए क्योंकि जब तक यह पूरा नहीं हो पायेगा तब तक देश में अच्छे नेतृत्व को विकसित करने में सफलता नहीं मिलेगी.      
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