मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 16 जनवरी 2012

चुनाव, नेता और नीतियां

       आजकल ५ प्रदेशों में चुनावी बुख़ार जोरों पर है और इसी क्रम में चुनाव से पूर्व चलने वाला प्रहसन/नाटक भी खूब चल रहा है. जिस तरह से हमारे नेता केवल अपने स्वार्थ के लिए पल पल निष्ठाएं बदलते रहते हैं उसे यही लगता है कि आने वाले समय में नीतियों और विचारधारों की कोई पूछ ही नहीं होगी क्योंकि चुनाव के समय अपने या दूसरों के काले धंधों पर पर्दा डालने के लिए अचानक ही कहीं किसी नेता का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है और पिछले ४/५ वर्षों में जिनके चरणों में झुके झुके उन्हें दर्द होने लगी थी वे अचानक अपनी दर्द को कम करने के लिए सीधे खड़े होकर किसी नए दल का दामन थाम लेते हैं और साथ ही पिछले दल को बिना पानी पिए ही कोसते नज़र आने लगते हैं. ऐसा नहीं है कि आज के समय में नीतियों पर चलने वाले नेताओं की कमी है पर जिस तरह से पूरे नेता समाज में ये कुछ लोग चुनावी सर्कस दिखाते रहते हैं उससे जनता के मन में नेताओं के प्रति आदर घटता ही जाता है. क्या कारण है कि जब देश में भ्रष्टाचारियों के बारे में सर्वेक्षण होता है तो नेता उसमें अव्वल आते हैं ?
      यदि इसके पीछे के कारणों को तलाशा जाये तो एक बात सामने आती है कि आज केवल सुख और सुविधाओं की चाह में ही लोग राजनीति में आते हैं जबकि पहले ये लोग नीतियों के चलते ही किसी दल का समर्थन करते हुए उसमें शामिल हुआ करते थे. क्या कारण है कि आज हर प्रदेश में चुनाव के समय एक जैसा माहौल होता है जिन्हें टिकट नहीं मिल वे दूसरे से सांठ-गाँठ करके अपने लिए एक अदद टिकट और सीट का जुगाड़ करके अचानक ही प्रेस को बुलाकर अपनी घुटन के बारे में खुलकर बोलते हैं ? अगर भारत में सभी को व्यक्तिगत आज़ादी दी गयी है तो उसका नाजायज़ लाभ नेता क्यों उठाते रहते हैं ? नीति पर नेता की महत्वकांक्षाएं इतनी हावी हो चुकी हैं कि वे इस परिवर्तन के बाद जनता की अदालत में बेशर्मों की तरह जाने से भी नहीं चूकते हैं ? ऐसा नहीं है कि सभी दलों में सभीके साथ न्याय होता रहता है पर अपने स्वार्थ को न्याय के तराजू पर तौलने से क्या हासिल किया जा सकता है ? अगर देश के कानून ने इन नेताओं को कहीं भी आने जाने की छूट दी है तो कम से कम इन्हें जनता और कानून के बारे में सोचना तो चाहिए.
       अगर केवल यूपी के इतिहास को ही देखा जाया तो पिछले कुछ चुनावों से कुछ नेता ऐसे हैं जो हमेशा से ही सत्ता पक्ष के साथ रहे हैं और सत्ता का उन्होंने जमकर लाभ भी उठाया है जिससे आज उनकी पकड़ क्षेत्र में मज़बूत तो है ही साथ ही वे ऐसे क्षत्रप बन चुके हैं जो अपने लोकसभा या विधान सभा क्षेत्र में अपने हिसाब से राजनीति चलाने की स्थिति में आ चुके हैं और उनके यहाँ पर नीतियों की कोई बात करना ही बेईमानी हो चुकी है ? देश और समाज नीतियों से ही चला करते हैं जिस तरह से आज हमारे देश में विभिन्न विचारधाराएँ पल रही हैं उनको पोषित करने के लिए उनसे सहमत होने वाले लोग भी चाहिए होते हैं पर आज के समय में केवल कुछ वोट बटोरू और जिताऊ नेताओं को सभी पार्टियाँ प्राथमिकतायें देने लगी हैं जिससे नीतियों पर इनके अपने भाव भारी पड़ने लगे हैं ? देश के लिए सही नीतियां होंगीं तो समाज का भला भी होगा पर केवल अपने कुछ निहित स्वार्थों की ख़ातिर देश के संविधान की भावना से खिलवाड़ करने वाले नेता आखिर किस दिशा में देश को ले जाना चाहते हैं ?  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें