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सोमवार, 23 जनवरी 2012

मुसलमान और अल्पसंख्यक ?

      देश के ५ राज्यों के चुनावी माहौल में जहाँ सभी दल कुछ वोट पक्के करने के लिए कुछ भी बोलने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं उसमें ही राज्यसभा के उप-सभापति के. रहमान खान ने बिहार में मुसलमानों की समस्याओं पर विचार करने के लिए बुलाये गए एक सम्मलेन में जो कुछ कहा अब उस पर देश के मुसलमानों को गंभीरता से सोचना होगा. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अब देश के मुसलमानों को अपने ऊपर लगा हुआ माइनारिटी का ठप्पा ख़ुद ही हटाना होगा और यह समझना होगा कि वे इस देश में अल्पसंख्यक नहीं बल्कि दूसरी सबसे बड़ी आबादी हैं. उन्होंने मुसलमानों से आज के परिवेश में शिक्षा के महत्त्व को भी समझने का आह्वाहन किया क्योंकि उनके अनुसार मुसलमानों के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा ही है और जब तक उनमें साक्षरता का प्रतिशत नहीं बढ़ेगा तब तक कौम तरक्की नहीं कर पायेगी. ऐसा कह कर के. रहमान खान ने मुसलमानों की सही स्थिति के बारे में जैसे पूरी कौम को आईना दिखा दिया है क्योंकि अभी तक आज़ादी के बाद से मुसलमान राजनेताओं के हाथों बंधक बने हुए हैं जिससे उनकी तरक्की के सभी रास्ते बंद होते जा रहे हैं. मुसलमानों के विकास को उनकी शिक्षा से जोड़ दिया जाना चाहिए और देश में अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में सही शिक्षा दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए क्योंकि जब शिक्षा बढ़ेगी तो पूरी कौम की सोच भी बदल जाएगी और वे नेताओं के इन भ्रामक प्रचारों से भी बच पायेंगें.  
     देश में आज जिस तरह से मुसलमानों के वोटों को लेकर खींचतान मची रहती है उसमें यह बयान बहुत कुछ अपने आप ही कह देता है. जिस रंगनाथ मिश्र और सच्चर समिति की सिफारिशों की बातें तो की जाती हैं पर उनके बारे में कुछ भी विस्तार से नहीं बताया जाता है जस कारण से मुसलमानों को यह लगता है कि जैसे इन सिफारिशों में कोई अलादीन का चिराग़ है जिसे सत्ताधारी दल छिपा कर रखते हैं ? अगर किसी समिति की सिफारिश से ही लोगों की स्थिति में परिवर्तन होने वाला होता तो देश पता नहीं कहाँ पहुँच गया होता पर आज जिस तरह से मुसलमानों को डराकर उनसे वोट लिए जाते हैं वह प्रवृत्ति देश और समाज के लिए घातक है. देश में ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध आदि वास्तव में अल्पसंख्यक हैं पर वे कभी भी सरकार पर भेदभाव का आरोप नहीं लगाते हैं क्योंकि उनमें शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा है और वे आज़ादी के पहले से ही शिक्षा में आगे रहे हैं जबकि मुसलमानों के लिए केवल बातें ही की जाती हैं और उन्हें पल पल इस अंदेशे में जिंदा रखा जाता हैं कि हमारे साथ रहो वरना नहीं बचोगे ? यह मुद्दा बिलकुल सही समय पर उठाया गया है भले ही इसका कोई बहुत बड़ा असर इन चुनावों में न दिखाई दे पर आने वाले समय में यह देश के लिए एक मुद्दा तो बन ही सकता है.   
   अच्छा ही है कि यह बात ख़ुद एक मुस्लिम की तरफ़ से आई है और अब पूरे मुस्लिम समुदाय को यह समझने की ज़रुरत है कि वे भी इस देश के सामान्य नागरिक हैं और उन्हें भी वही सुविधाएँ मिली हुई हैं जो अन्य लोगों को मिली हैं. साथ ही उन्हें अपने को अल्पसंख्यक कहलाने से परहेज़ भी करना चाहिए क्योंकि इससे यही लगता है कि जैसे वे पता नहीं कितने कम हैं और नेता अपने स्वार्थ के लिए उन्हें वास्तव में उनकी शक्ति से वंचित किये हुए हैं ? देश में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी बहुत कुछ किया है पर उसके बारे में कितने लोग जानते हैं ? देश का राजनैतिक चरित्र ही कुछ इस तरह का हो गया है किसी आतंकी के मुसलमान होने की ख़बर तो तेज़ी से उड़ती है पर खुशबू मिर्ज़ा कौन हैं और किस परिवार से हैं यह बहुत कम लोग जानते हैं ? इस तरह की ख़बरों से मुसलमानों को भी यह लगने लगता हैं कि वे वास्तव में अब भी भारत में बहुत असुरक्षित हैं जबकि वास्तविकता इससे बहुत दूर है. अब देश के मुस्लिम वर्ग को अपनी शिक्षा, पिछड़ेपन और कौमी तालीम में आधुनिकीकरण के लिए सरकार पर दबाव डालना चाहिए जिससे भारत में केवल कुछ इदारे ही इस बात के गवाह न रहें बल्कि पूरी दुनिया में इस्लाम की सही रौशनी फ़ैलाने का काम भी यहीं के मुसलमान करें.         
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