चुनावी माहौल में जहाँ हर तरफ़ केवल मुस्लिम वोट बैंक की बातें ही हो रही हैं उससे यही लगता है कि अभी आने वाले काफी समय तक राजनैतिक दल मुस्लिम वर्ग को एक काल्पनिक भय में जिंदा रखना चाहते हैं जिससे वे अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति कर सकें. क्या कारण है कि सदियों से भारत में रहने के बाद भी आज मुसलमानों पर क्षण भर में ही संदेह किया जाने लगता है ? क्यों उनकी निष्ठा को देश के साथ जोड़कर नहीं देखा जाता और क्यों उनके बारे में हमेशा इस तरह की बातें की जाती हैं कि वे देश के प्रति समर्पित नहीं हैं ? आज जब पूरी दुनिया तेज़ी से आगे जा रही है और इसमें इस्लाम के उदय से जुड़ा देश सऊदी अरब भी शामिल है तो इस परिवर्तन की बयार आख़िर भारत के मुसलमानों तक क्यों नहीं पहुँच रही है ? आज भी देश के मुस्लिम समाज को विकास की बातों के स्थान पर केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ी संवेदनशील बातों में ही उलझाने का काम क्यों किया जाता है ? क्या देश की आज़ादी में मुसलमानों का योगदान नहीं था ? पर केवल विभाजन की बात ने पूरी कौम पर संदेह का प्रश्नचिन्ह लगा दिया ? इस सभी बातों का जवाब केवल देश के मुसलमानों के पास ही है क्योंकि इस सबसे वे ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
सबसे पहले मुसलमानों को अपने पर भरोसा करना सीखना होगा कि वे इस देश का अहम् हिस्सा हैं और अगर उन्हें तरक्की करनी है तो उन्हें देश के विकास में अपनी हिस्सेदारी निभानी पड़ेगी. जब देश कि लगभग २०% आबादी देश के विकास में योगदान नहीं देगी तो उनका व देश का कैसे भला हो पायेगा ? आज हर तरफ़ मुसलमानों पर पिछड़े होने का आरोप लगाया जाता है पर कभी इस बारे में ध्यान नहीं दिया जाता कि वे किन मामलों में पिछड़े हैं ? मुसलमानों में समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा की कोई कमी नहीं है क्योंकि वे जिस तरह से अपने धार्मिक रिवाजों को श्रद्धा से मानते हैं उससे यही पता चलता है कि वे पूरी तरह से जिंदा कौम हैं पर इसके बाद भी वे अपनी शक्ति को पहचान नहीं पा रहे हैं तो इसके पीछे क्या कारण है ? मुसलमानों ने अपने को जिस तरह से पार्टी या व्यक्ति विशेष के लिए अपने को वोट बैंक में तब्दील कर दिया है आज वही उसके गले का फन्दा बनती जा रही है क्योंकि इससे राजनैतिक लोग उनके मन में भय उत्पन्न कर देते हैं जो आगे चलकर उनमें असुरक्षा का माहौल उत्पन्न करती है. जिस तरह से छोटी छोटी बातों से मुसलमाओं को बहलाने की कोशिश की जाती है उससे उनके भविष्य में अच्छी संभावनाओं पर रोक लग जाती है पर तात्कालिक लाभ दिखाकर कुछ चुनावों तक मुसलमानों से वोट बटोरने का काम करने वाले दल उनके लिए वास्तव में कुछ भी नहीं करना चाहते हैं.
अब समय है कि मुसलमानों को अपनी इस तरह की छवि को तोड़ना होगा जिससे कुछ लोगों को उन पर उँगली उठाने का अवसर मिलता है. कश्मीर में मुसलमानों ने ही जब सुरक्षा बलों के साथ सहयोग शुरू किया तभी उनकी ज़िन्दगी बेहतर हुई और वहां पर आज पहले की अपेक्षा काफी शांति है. ठीक इसी तरह से पूरे देश के मुसलमानों को अपने बेहतर भविष्य और राष्ट के संसाधनों में व्यापक हिस्सेदारी के लिए अपने में शिक्षा का प्रसार करना ही होगा क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से राजनेताओं ने केवल मदरसों की बात की है उससे आम मुसलमान की रोज़ी रोटी पर असर पड़ा है. आज इन मदरसों में दीनी तालीम के साथ ऐसी तालीम भी दी जानी चाहिए जो आज के समय में रोज़गार परक हो. अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय की स्थापना मुसलमानों की बेहतरी के बारे में सोचकर ही की गयी थी पर उसके बाद से इस स्तर पर कोई काम क्यों नहीं हुआ यह सवाल आज हर मुसलमान को देश के राजनैतिक तंत्र से पूछना चाहिए ? इसका कोई जवाब उनके पास नहीं है क्योंकि उन्हें देश में डरा और सहमा हुआ मुसलमान चाहिए जो छोटी छोटी बातों के लिए उनकी तरफ़ ताकता रहे वे कभी भी नहीं चाहेंगें कि उनका इतना बड़ा वोट बैंक ख़ुद आगे बढ़कर देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाये और उनसे अपने और अपनी कौम के बारे में ऐसे सवाल पूछे जिनका जवाब वे देना ही नहीं चाहते हैं.....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सबसे पहले मुसलमानों को अपने पर भरोसा करना सीखना होगा कि वे इस देश का अहम् हिस्सा हैं और अगर उन्हें तरक्की करनी है तो उन्हें देश के विकास में अपनी हिस्सेदारी निभानी पड़ेगी. जब देश कि लगभग २०% आबादी देश के विकास में योगदान नहीं देगी तो उनका व देश का कैसे भला हो पायेगा ? आज हर तरफ़ मुसलमानों पर पिछड़े होने का आरोप लगाया जाता है पर कभी इस बारे में ध्यान नहीं दिया जाता कि वे किन मामलों में पिछड़े हैं ? मुसलमानों में समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा की कोई कमी नहीं है क्योंकि वे जिस तरह से अपने धार्मिक रिवाजों को श्रद्धा से मानते हैं उससे यही पता चलता है कि वे पूरी तरह से जिंदा कौम हैं पर इसके बाद भी वे अपनी शक्ति को पहचान नहीं पा रहे हैं तो इसके पीछे क्या कारण है ? मुसलमानों ने अपने को जिस तरह से पार्टी या व्यक्ति विशेष के लिए अपने को वोट बैंक में तब्दील कर दिया है आज वही उसके गले का फन्दा बनती जा रही है क्योंकि इससे राजनैतिक लोग उनके मन में भय उत्पन्न कर देते हैं जो आगे चलकर उनमें असुरक्षा का माहौल उत्पन्न करती है. जिस तरह से छोटी छोटी बातों से मुसलमाओं को बहलाने की कोशिश की जाती है उससे उनके भविष्य में अच्छी संभावनाओं पर रोक लग जाती है पर तात्कालिक लाभ दिखाकर कुछ चुनावों तक मुसलमानों से वोट बटोरने का काम करने वाले दल उनके लिए वास्तव में कुछ भी नहीं करना चाहते हैं.
अब समय है कि मुसलमानों को अपनी इस तरह की छवि को तोड़ना होगा जिससे कुछ लोगों को उन पर उँगली उठाने का अवसर मिलता है. कश्मीर में मुसलमानों ने ही जब सुरक्षा बलों के साथ सहयोग शुरू किया तभी उनकी ज़िन्दगी बेहतर हुई और वहां पर आज पहले की अपेक्षा काफी शांति है. ठीक इसी तरह से पूरे देश के मुसलमानों को अपने बेहतर भविष्य और राष्ट के संसाधनों में व्यापक हिस्सेदारी के लिए अपने में शिक्षा का प्रसार करना ही होगा क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से राजनेताओं ने केवल मदरसों की बात की है उससे आम मुसलमान की रोज़ी रोटी पर असर पड़ा है. आज इन मदरसों में दीनी तालीम के साथ ऐसी तालीम भी दी जानी चाहिए जो आज के समय में रोज़गार परक हो. अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय की स्थापना मुसलमानों की बेहतरी के बारे में सोचकर ही की गयी थी पर उसके बाद से इस स्तर पर कोई काम क्यों नहीं हुआ यह सवाल आज हर मुसलमान को देश के राजनैतिक तंत्र से पूछना चाहिए ? इसका कोई जवाब उनके पास नहीं है क्योंकि उन्हें देश में डरा और सहमा हुआ मुसलमान चाहिए जो छोटी छोटी बातों के लिए उनकी तरफ़ ताकता रहे वे कभी भी नहीं चाहेंगें कि उनका इतना बड़ा वोट बैंक ख़ुद आगे बढ़कर देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाये और उनसे अपने और अपनी कौम के बारे में ऐसे सवाल पूछे जिनका जवाब वे देना ही नहीं चाहते हैं.....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
लकीर के फकीर !
जवाब देंहटाएंकुछ कडवे सच होते है, जिन्हें लिखना, पढना और बोलना भले ही कर्णप्रिय न लगता हो, मगर आख़िरकार होता तो वो सच ही है ! मुसलमान आज इस देश में जिस भी परिस्थिति में हैं, उसके लिए वे खुद जिम्मेदार है, और मैं तो यहाँ तक कहूंगा की वे इसे डिजर्व भी करते है ! अमेरिका लीबिया और सीरिया में उसी तरह खुलकर क्यों सामने नहीं आया, जिस तरह मिश्र और ईराक में आया था ? क्योंकि उसे अपनी इस गलती का अहसास हो गया था कि सद्दाम, गद्दाफी, असद, हुश्नेमुबारक चाहे कितने भी कमीने डिक्टेटर क्यों न हो, मुसलमानों को सही मायने में कंट्रोल में रखने वाले भी यही नेता/ डिक्टेटर थे ! मिश्र, लीबिया, इराक में उसके बाद के परिस्थितियां देख लो ! आप क्या सोचते है भारत के मुसलमान इनसे भिन्न है ? नहीं यदि कोई यह सोचता है तो भारी भूल कर रहा है ! बस यूं समझिये कि वक्त का तकाजा है और इन्हें अभी मौक़ा नहीं मिल रहा, वरना तो ! आज के हिन्दी हिंदुस्तान में आपने देखा होगा कि उत्तरप्रदेश में मुसलमानों ने अब तक सबसे अधिक वोट ३८ से ६० प्रतिशत के बीच सिर्फ समाजवादी पार्टी को दिए, फिर कौंग्रेस को और फिर बी एस पी को ! अब सच्चाई यह है कि मायावती के २० से भी अधिक मंत्री क्तिमिनल और भर्ष्टाचार के मामलों में या तो पार्टी से बाहर कर दिए गए ( सिर्फ दिखावे और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए ) या फिर जेल में है ! इसका मतलब मायावाते की सरकार को पिछले ५ सालों से क्रिमिनल लोग चला रहे थे ! ये लोग कौन थे ? जबाब जो समाजवादी पार्टी से पाला बदलकर यहाँ आए थे! और समाजवादी पार्टी में लाने और फिर इन्हें सत्ता तक पहुचने का श्रेय किसको है ? जबाब मुसलमानों को ! अभी जो चुनाव हो रहे है उसमे भी सूफी तबके और मुस्लिम बौडियों ने इसबार कौंग्रेस को वोट देने के अपनी जमात को फरमान जारी कर दिए है ! माना कि ये जो मुस्लिम संगठन है, इनका अपना निहित स्वार्थ है, मगर क्या जमात इतनी बेवकूफ है जो एक तथाकथित स्वतंत्र देश में किसी के हुक्म के तहत वोट डालती है ? और फिर दोष मादा जाता है दूसरों पर ! खुदा इन्हें सद्बुद्धि दे !
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