मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 28 जनवरी 2012

नेगटिव वोटिंग

    इस बार ५ राज्यों के चुनावों में चुनाव आयोग ने नेगटिव वोटिंग के अधिकार को जिस तरह से महत्त्व देना शुरू किया है आने वाले समय में यह बड़े चुनाव सुधार की तरफ़ एक बड़ा कदम हो सकता है. अभी तक जिस तरह से कम जानकारी के कारण मतदाता को यह नहीं पता होता था कि उसके पास इन नेताओं में से किसी को भी न चुनने का भी अधिकार है या दूसरी भाषा में कहें तो मतदाता के पास नेगटिव वोटिंग करने कभी अधिकार काफ़ी दिनों से है पर जागरूकता के अभाव में न तो चुनाव करने वाले अधिकारियों और न ही मतदाताओं को इस बात की जानकारी होती थी कि वे इस तरह से भी अपना वोट दे सकते हैं. मतदाता को यह लगता था कि एक बार मतदान केंद्र में जाने के बाद उसे मत तो डालना ही होगा जबकि मत देना या फिर मत देने से मना करने का अधिकार संविधान ने हर नागरिक को दे रखा है. नेताओं द्वारा जिस तरह से मतदान अपने पक्ष में करने की कोशिशें रहती हैं उसमें यह विचार अगर जनता तक पहुँच जाये तो इससे देश का राजनैतिक भविष्य बदल सकता है. जानकारी के अभाव में लोग इस अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं.
      आज के समय में नेताओं को इस बात का कोई ख़तरा नहीं है कि उन्हें एक बार प्रत्याशी बनने के बाद कोई रोक नहीं सकता है पर आने वाले समय में अगर नेगटिव वोटिंग के साथ कुछ कड़े प्रावधान भी आयोग द्वारा लागू किये गए तो ये नेता जो अपने लिए वोट मानते नज़र आते हैं नेगटिव वोट न करने की गुहार लगाते घूमेंगें. केवल एक बार मतदाताओं द्वारा नकारा जाना इस बात के लिए काफ़ी किया जाना चाहिए कि आने वाले १० वर्षों तक इन प्रत्याशियों के किसी भी तरह के चुनाव को लड़ने पर रोक भी लगायी जाये तभी किसी उम्मीदवार को सही तरह से नकारा जा सकेगा. केवल एक चुनाव में कुछ उम्मीदवारों के विरुद्ध मत देने से कोई हल नहीं निकलने वाला है क्योंकि इससे वे अन्य चुनावों में फिर से ख़ुद भी लड़ने के पात्र हो जायेंगें और जनता को एक बार फिर से उसी प्रक्रिया से गुज़ारना होगा. अब इस प्रस्ताव के बारे में जिस तरह से आयोग ने मतदाताओं को जागरूक करना शुरू किया है उससे यही लगता है कि आयोग आने वाले समय में राइट टू रिजेक्ट पर भी काम करने का मन बना चुका है. पर चुनाव आयोग द्वारा सुझाये गए इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर अभी तक सरकार ने कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई है जिससे यही लगता है कि अभी यह पूरा मसला लागू होने में काफ़ी समय लगने वाला है.
         आज जब देश का कानून हर नागरिक को हर तरह की आज़ादी देता हैं तो ऐसे में मतदाता से मत देने या किसी को भी न देने का अधिकार कैसे वापस लिया जा सकता है. अगर इस फैसले के लागू होने के दूरगामी असर की बात की जाये तो आने वाले समय में नेताओं पर यह दबाव तो बन ही जायेगा कि वे अपने क्षेत्र की जनता की उम्मीदों पर खरे उतरें क्योंकि जब तक जनता के मन की बात नहीं होगी तब तक कुछ भी सुधर नहीं पायेगा. इस बार इन नकारात्मक वोटों की गिनती भी की जाएगी और उनके आंकड़े भी तैयार किये जायेंगें जिनका उपयोग भविष्य में इस बारे में और सटीक निर्णय लेने में किया जायेगा. अब जब धीरे धीरे ही सही चुनाव आयोग मतदाता को सर्वोपरि बनाने में बहुत मेहनत कर रहा है तो हम सभी मतदाताओं की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि आने वाले समय में ऐसे किसी भी उम्मीदवार को किसी भी संसदीय चौखट तक न पहुँचने दें जो इस लायक नहीं हैं. अगर संभव हो तो इस तरह के बटन को ही ईवीएम में लगाने के आदेश जारी कर दिए जाएँ जिससे मतदातों में किसने नकारात्मक वोट दिया यह पता भी न चले और रजिस्टर पर नाम आदि लिखने की औपचारिकता से भी बचा जा सके. हो सकता है कि किसी क्षेत्र में काफी बड़ी संख्या में लोग प्रत्याशियों को नकारना चाहते हों तो वैसी दशा में मतदान की गति भी प्रभावित हो सकती है जिससे निपटने के लिए बटन ज़रूरी है पर हमेशा कानून के दायरे में भी अपने हितों ढूँढने वाले नेता क्या यह चाहेंगें कि ऐसा कुछ हो जाये ?      
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