मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 3 मार्च 2012

अमेरिकी फौज और भारत

         लगता है कि अमेरिका के पास नए नए विवाद खड़े करने के अलावा कोई अन्य काम बचा ही नहीं है. कल जिस तरह से वहां के शीर्ष कमांडर ने यह कह कर भारत को चौंका दिया कि यहाँ पर भी उसके विशेष सैन्य दस्ते तैनात हैं जबकि वास्तविकता यह है कि आतंक से विश्वव्यापी लड़ाई के चलते अब विभिन्न देशों के सैन्य बलों के संयुक्त अभ्यास होते रहते हैं और इसके लिए समय समय पर विभिन्न देशों के चुनिन्दा सैन्य दस्ते यहाँ पर इन अभ्यासों के लिए आते रहते हैं और इसी तरह से भारत के दस्ते भी अमेरिका समेत विभिन्न देशों के साथ युद्धाभ्यास के लिए जाते रहते हैं. आज आतंकियों ने जिस तरह से पूरे विश्व में अपनी कार्यपद्धति को विकसित किया है उस स्थिति में इस तरह के संयुक्त अभ्यासों से सैन्य बलों को बहुत अधिक सहायता मिलती है इसीलिए इनको अब नियमित तौर पर किया जाने लगा है. यह सभी जानते हैं कि भारत भी अमेरिका से साथ मिलकर सेना के तीनों अंगों का संयुक्त अभ्यास भी समय समय पर कर चुका है पर इस तरह से उनके किसी अधिकारी का यह कहना कि उसके दस्ते यहाँ पर तैनात हैं पूरी तरह से गलत है. अमेरिका की इस बयान के पीछे कुछ मजबूरी हो सकती है पर इससे भारत में अनावश्यक विवाद होता है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं होती है. 
   भारत ने जिस तरह से दुर्गम क्षेत्रों में भी कम से कम नुक्सान में आतंकियों के हौसले कश्मीर में पस्त किये हैं उसके बाद अमेरिका को भी पाक-अफ़गान बार्डर पर कुछ उसी तरह की स्थितियों में लड़ने के लिए अपने सैनिकों को अभ्यास करवाना था जिसके लिए उसने भारत के साथ विशेष अभ्यास भी किये हैं. जिस तरह से सीमित संसाधनों में हमारे वीर सैनिकों ने आतंकियों को धूल चटाने और उन पर काफ़ी हद तक लगाम लगाने में सफलता पाई है उससे पूरा विश्व चकित है. इस तरह के सैन्य अभियानों का खुलासा करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना इनको सफलता पूर्वक संपन्न करने में है. मशीनों के भरोसे युद्ध लड़ने वाले अमेरिकी सैनिक आज भी ज़मीनी स्थितियों में उतना कुशलता से नहीं लड़ पाते हैं जिसमें भारत को महारत हासिल है. आज जिस तरह से अमेरिका सभी तरफ से घिरता जा रहा है और पाक पर उसे विश्वास नहीं रहा है उसके बाद इस तरह के निरर्थक बयान देने से उसके लिए समस्या और बढ़ने वाली ही है क्योंकि अब भारत उसके साथ किसी भी अभियान को सोच समझ कर ही चलाएगा. आने वाले समय में अमेरिका को मध्य पूर्व में भारत की ज़रुरत पड़ सकती है पर भारत अपने इन देशों से अच्छे संबंधों के कारण अपने को अमेरिका के साथ कभी से नहीं रखना चाहता है.
    पता नहीं क्यों आज भी अमेरिका आज भी इस बात को नहीं समझ पाया है कि भारत को पाक के साथ नहीं देखा जा सकता है और अगर आज भी अमेरिका को यह लगता है कि भारत पाक एक बराबर हैं तो उसके परिणामों के लिए उसे ख़ुद को तैयार रखना चाहिए. भारत को अमेरिका की तरह विस्तार वादी नीति में कोई विश्वास नहीं है और उसे अमेरिका में जाकर किसी अभियान में अपने हितों के लिए लड़ाई नहीं लड़नी है पर अमेरिका की यह मजबूरी है कि उसने अपने को एशिया और मध्यपूर्व में इस तरह से उलझा रखा है कि उसे इस तरह के अभियानों की अधिक आवश्यकता पड़ने वाली है ? अभ्यास के लिए सैनिकों के आने-जाने और उनकी तैनाती के फ़र्क को अगर अमेरिकी नहीं समझते हैं तो यह उनकी कमी है फिलहाल इस मसले पर भारत सरकार को स्थिति केवल प्रवक्ता के स्तर पर नहीं वरन रक्षा मंत्री/ गृह मंत्री या प्रधानमंत्री के स्तर से स्पष्ट करनी चाहिए जिससे अमेरिका ने जिस तरह का भ्रम बनाया है उसे दूर किया जा सके. हो सकता है ईरान की रणनीति के तहत ही अमेरिका ने इस तरह का बयान दिया हो जिससे मध्यपूर्व के देशों को यह लगे कि समय पड़ने पर भारत भी इन अभियानों में शामिल हो सकता है पर भारत ने ईरान से तेल लेने के फैसले को जारी रखकर सभी को अपनी प्राथमिकताओं के बारे में बता भी दिया है.          
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1 टिप्पणी:

  1. "मशीनों के भरोसे युद्ध लड़ने वाले अमेरिकी सैनिक आज भी ज़मीनी स्थितियों में उतना कुशलता से नहीं लड़ पाते हैं"
    और इसके बावजूद अमेरिका में उतने लोग बम धमाकों में नहीं मारे गये!

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