पूरी दुनिया में एक्ज़िट पोल को चुनाव पूर्व नतीजों का अनुमान लगाने का काफी सटीक उपाय माना जाता है इसमें जिस तरह से पूरे चुनाव क्षेत्रों से मत देकर निकले मतदाताओं के में से कुछ से बात करके उनकी राय के बारे में जानकर पूरे चुनाव के बारे में आंकड़े जुटाए जाते हैं इस पूरी प्रक्रिया का एक तरीका होता है जिसके तहत जुटाए गए आंकड़ों से इन बात का अनुमान लगाया जाता है कि चुनाव में मतदाताओं ने किस पार्टी को कितने आगे या पीछे किया है. वैसे तो यह पूरी तरह से एक नियत प्रक्रिया पर आधारित होता है पर भारत जैसे देश की विशालता और एक ही चुनाव क्षेत्र में व्यापक विविधता के कारण कई बार इस पर राजनैतिक दलों को संदेह करने के अवसर भी मिल जाते हैं. जिस तरह से पिछले दो चुनावों से उत्तर प्रदेश के बारे में कोई भी सही अनुमान नहीं लगा पाया था उसे देखते हुए इस बार भी लोगों को इन रुझानों पर संदेह करने का अवसर मिल जाता है. यह पूरी तरह से पूरी निष्ठा के साथ किया जाने वाला काम होता है पर इस बात का कोई कैसे पता लगा सकता है कि पूरे क्षेत्र के सही रुझान के बारे में उन चंद लोगों से ही राय ली गयी जो पूरे क्षेत्र के रुझान के अनुसार ही थे ?
कई बार ऐसा भी होता है कि जिन चंद मतदाताओं से बात की जाती है वे किसी पार्टी विशेष के ही होते हैं जिससे वहां से तस्वीर और धुंधली हो जाती है क्योंकि पार्टी के कार्यकर्ता किसी भी स्थिति में अपनी पार्टी को कहीं से भी हारते हुए नहीं दिखाना चाहते हैं पर इस तरह से इकठ्ठा किये गए रुझान पूरे एक्ज़िट पोल के नतीजों को प्रभावित करते रहते हैं. चुनाव विज्ञान के जानकर भी यह मानते हैं कि इस क्षेत्र में इस तरह की संभावनाएं हमेशा ही होती हैं पर कई बार इतने ग़लत नतीजे निकल आते हैं कि बाद में नेताओं को इनका उपहास उड़ाने का अवसर मिल जाता है. आज भी कई लोगों को अपनी हताशा मिटाने के लिए इन्हें ख़ारिज़ करने का अधिकार है पर भारत में यह अभी भी शैशव काल में है और धरातल पर जानकारी जुटाने वाले कई बार इस बात को भांप भी नहीं पाते हैं कि वे एक्ज़िट पोल के बारे में जानकारी जुटाने के समय बरती जाने वाली सावधानियों को रख पाते हैं या वे अन्य किसी काम की तरह ही इसे निपटाना चाहते हैं ? अगर इस बारे में पूरी सावधानी नहीं रखी जाती है तो आने वाले रुझान पूरी तरह से वास्तविक आंकड़ों से बहुत दूर चले जाते हैं जिसके लिए कार्यालय में बैठे विश्लेषकों से अधिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग ही अधिक ज़िम्मेदार होते हैं.
बहरहाल किसी भी दल की सरकार बने पर इस चुनाव विज्ञान की अपनी ही महत्ता है और इसके अपने ही विशेषज्ञ हैं कई बार इसके अनुमान इतने सटीक होते हैं कि लगता है कि इन लोगों ने कहीं से इन चुनावों के नतीजों के बारे में पहले से ही भनक लगा ली हो पर कई बार ये इतने ग़लत होते हैं कि लोगों का इन पर से विश्वास ही उठ जाता है ? नेताओं को आख़िरी दम तक अपनी इज्ज़त बचाने की लगी रहती है इसलिए वे अंतिम परिणाम आने तक इस बात को स्वीकार ही नहीं करते हैं कि उनके हाथ से सत्ता की चाभी जा रही है. अब मंगलवार तक इस बात पर काफी कयास लगाये जाने वाले हैं कि कौन वास्तव में कितनी सीटें पा रहा है और इन प्रदेशों में कहाँ पर किसकी सरकार बनने वाली है ? इतने लम्बे और थका देने वाले चुनावी कार्यक्रम के बाद अब इस बात पर नेता बहस कर सकते हैं कि आख़िर कौन कितने पानी में है पर अब वे भी कुछ आराम के मूड में हैं पर कुछ इक्के दुक्के लोगों ने अपनी आदतों के अनुसार इन अनुमानों को ख़ारिज़ कर दिया है. किसी भी दल की सरकार बने पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि इन एक्ज़िट पोल की अपनी ही महत्ता है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. अब चुनाव विश्लेषकों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आने वाले समय में इस पूरी प्रक्रिया को कैसे और विश्वसनीय बनाया जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कई बार ऐसा भी होता है कि जिन चंद मतदाताओं से बात की जाती है वे किसी पार्टी विशेष के ही होते हैं जिससे वहां से तस्वीर और धुंधली हो जाती है क्योंकि पार्टी के कार्यकर्ता किसी भी स्थिति में अपनी पार्टी को कहीं से भी हारते हुए नहीं दिखाना चाहते हैं पर इस तरह से इकठ्ठा किये गए रुझान पूरे एक्ज़िट पोल के नतीजों को प्रभावित करते रहते हैं. चुनाव विज्ञान के जानकर भी यह मानते हैं कि इस क्षेत्र में इस तरह की संभावनाएं हमेशा ही होती हैं पर कई बार इतने ग़लत नतीजे निकल आते हैं कि बाद में नेताओं को इनका उपहास उड़ाने का अवसर मिल जाता है. आज भी कई लोगों को अपनी हताशा मिटाने के लिए इन्हें ख़ारिज़ करने का अधिकार है पर भारत में यह अभी भी शैशव काल में है और धरातल पर जानकारी जुटाने वाले कई बार इस बात को भांप भी नहीं पाते हैं कि वे एक्ज़िट पोल के बारे में जानकारी जुटाने के समय बरती जाने वाली सावधानियों को रख पाते हैं या वे अन्य किसी काम की तरह ही इसे निपटाना चाहते हैं ? अगर इस बारे में पूरी सावधानी नहीं रखी जाती है तो आने वाले रुझान पूरी तरह से वास्तविक आंकड़ों से बहुत दूर चले जाते हैं जिसके लिए कार्यालय में बैठे विश्लेषकों से अधिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग ही अधिक ज़िम्मेदार होते हैं.
बहरहाल किसी भी दल की सरकार बने पर इस चुनाव विज्ञान की अपनी ही महत्ता है और इसके अपने ही विशेषज्ञ हैं कई बार इसके अनुमान इतने सटीक होते हैं कि लगता है कि इन लोगों ने कहीं से इन चुनावों के नतीजों के बारे में पहले से ही भनक लगा ली हो पर कई बार ये इतने ग़लत होते हैं कि लोगों का इन पर से विश्वास ही उठ जाता है ? नेताओं को आख़िरी दम तक अपनी इज्ज़त बचाने की लगी रहती है इसलिए वे अंतिम परिणाम आने तक इस बात को स्वीकार ही नहीं करते हैं कि उनके हाथ से सत्ता की चाभी जा रही है. अब मंगलवार तक इस बात पर काफी कयास लगाये जाने वाले हैं कि कौन वास्तव में कितनी सीटें पा रहा है और इन प्रदेशों में कहाँ पर किसकी सरकार बनने वाली है ? इतने लम्बे और थका देने वाले चुनावी कार्यक्रम के बाद अब इस बात पर नेता बहस कर सकते हैं कि आख़िर कौन कितने पानी में है पर अब वे भी कुछ आराम के मूड में हैं पर कुछ इक्के दुक्के लोगों ने अपनी आदतों के अनुसार इन अनुमानों को ख़ारिज़ कर दिया है. किसी भी दल की सरकार बने पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि इन एक्ज़िट पोल की अपनी ही महत्ता है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. अब चुनाव विश्लेषकों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आने वाले समय में इस पूरी प्रक्रिया को कैसे और विश्वसनीय बनाया जाये.
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