जिस तरह की आशाएं यूपी और देश को युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले अखिलेश यादव से थीं वह उनके मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही टूटनी शुरू हो चुकी हैं क्योंकि अखिलेश जिस तरह से पूर्ण बहुमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं उसके बाद उनसे कुछ अलग करने की उम्मीदें लगाना किसी भी तरह से गलत नहीं कहा जा सकता है. लम्बी जद्दोजहद के बाद जिस तरह से विभागों का बंटवारा किया गया उसमें तो अखिलेश अपने पिता से भी कंजूस साबित हुए क्योंकि उन्होंने ५० से अधिक मंत्रालय अपने पास ही रख लिए जिससे स्पष्ट है कि आने वाले समय में मुख्यमंत्री के दायित्वों के बोझ के चलते इन विभागों में एक बार फिर से बाबुओं का दबदबा बना रहेगा जैसा कि माया सरकार में रहा करता था. समाजवादी सोच वाले मुलायम ने किस दबाव में अखिलेश से यह काम करवाया यह तो किसी को नहीं पता पर इस तरह की टीम से अखिलेश कितनी लम्बी पारी खेल पायेंगें इस पर अभी से प्रश्न चिन्ह लग गया है ? जब इस तरह का स्पष्ट बहुमत साथ हो तो पार्टी और नेता को बिना किसी दबाव के पूरे मनोयोग से जनता के कामों को पूरा करने के प्रयास करने चाहिए पर यहाँ पर स्थिति उलटी ही नज़र आ रही है पूर्ण बहुमत की सरकार भी ऐसे चलायी जा रही है जैसे वह गठबंधन की सरकार हो ? इसे सपा की अंदरूनी राजनीति या फिर अपने ही लोगों पर अविश्वास की स्थिति कहा जाये कि २००० में हुए प्रदेश के बंटवारे के बाद २२५ का आंकड़ा पहली बार पार करने वाली पार्टी के पास विश्वसनीय नेताओं की ऐसी कमी है कि मुख्यमंत्री खुद सभी मंत्रालयों को लेकर बैठे हुए हैं ?
प्रदेश में जिस तरह की प्रशासनिक अराजकता व्याप्त रही है और राजनैतिक तंत्र के स्थान पर पिछले ५ वर्षों तक केवल अधिकारियों का ही दबदबा बना रहा है उस स्थिति में अब यह सपा पर था कि वह इन मंत्रालयों को ऊर्जावान लोगों को बांटने में संकोच नहीं करती जिससे उनकी शक्ति का सही तरह से उपयोग किया जा सकता पर जिस तरह से पुरानी मुलायम सरकार के मंत्रियों को फिर से उन्हीं मंत्रालयों को सौंपा गया उससे यही लगता है कि यह सरकार भी कुछ खास करने की इच्छुक ही नहीं है इस तरह के दबाव के सामने झुकने के स्थान पर अखिलेश को संसद में अपनी ऊर्जा का सही ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए था और मुलायम को ही यहाँ पर सत्ता की चाभी सौंप देनी चाहिए थी. प्रदेश को ऊर्जा, कृषि, सामान्य प्रशासन, गृह, सड़क परिवहन, शिक्षा, उद्योग, समाज कल्याण, ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों में महत्वपूर्ण और अनुभवी मंत्रियों की आवश्यकता थी पर ये सारे विभाग खुद अखिलेश के पास रहने से इन क्षेत्रों के साथ वे कितना न्याय कर पायेंगें यह भी भविष्य के गर्भ में है ? प्रदेश के समग्र विकास के लिए पूर्वांचल, बुंदेलखंड,अवध और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए एक दूसरे के क्षेत्र के लोगों को प्रभारी मंत्री बनाया जाना चाहिए था जो विकास की सही रफ़्तार को अपने सम्बंधित क्षेत्रीय मुख्यालय से तेज़ करने की कोशिश करते ? अगर हर मुख्यमंत्री इस तरह की सोच रखने लगे तो पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि खुद सीएम के पास प्रोटोकाल के चलते इतने अधिक कार्यक्रम होते हैं कि वे चाहकर भी इन सभी विभागों और प्रदेश के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं.
जिस तरह से अभिषेक मिश्रा को अपने साथ सम्बद्ध कर अखिलेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके मंत्रिमंडल में भले ही आज़म और शिवपाल जैसे वरिष्ठ लोग हों पर अभिषेक सत्ता के केंद्र बने रहेंगें जो कि आने वाले समय में इन समाजवादियों को अखर सकता है ? सपा, मुलायम और अखिलेश के पास एक ऐसा अवसर आया है जिसे वे प्रदेश के हित में बहुत अच्छे से उपयोग में ला सकते हैं पर राजनैतिक मजबूरियों या फिर अपने आप ही इस तरह के दबाव को मान लेने से इस तरह की स्थितियां सामने आती रहती है ? देश गठबन्धन मजबूरियों के साथ चलने वाली संप्रग सरकार को देख ही रहा है जिसके पास बहुमत नहीं है फिर भी वह कई बार ऐसे कदम उठाने में नहीं चूकती है जो आने वाले समय में देश केलिए लाभकारी साबित होने वाले हो सकते हैं ? प्रदेश के हित के लिए ठोस धरातल पर सोचने का एक अवसर सपा और अखिलेश ने खो दिया है क्योंकि जिस सरकार के दम पर वे २०१४ के आम चुनावों को लड़ना चाहते हैं उसके लिए मिली हुई बढ़त को इस तरह के मंत्रिमंडल को बनाकर उन्होंने खो दिया है अब उनके लिए इनमें से चुनाव के नज़दीक किसी को भी नाराज़ करने की हिम्मत नहीं बचेगी. दो सालों में वास्तव में जो परिवर्तन जनता को दिखाया जा सकता था वह अवसर हाथ से जाता रहा है. फिर भी आशा की जानी चाहिए कि इस व्यवस्था की खामियों से रूबरू होने के बाद अखिलेश जल्दी ही कुछ नया कर पायेंगें....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
प्रदेश में जिस तरह की प्रशासनिक अराजकता व्याप्त रही है और राजनैतिक तंत्र के स्थान पर पिछले ५ वर्षों तक केवल अधिकारियों का ही दबदबा बना रहा है उस स्थिति में अब यह सपा पर था कि वह इन मंत्रालयों को ऊर्जावान लोगों को बांटने में संकोच नहीं करती जिससे उनकी शक्ति का सही तरह से उपयोग किया जा सकता पर जिस तरह से पुरानी मुलायम सरकार के मंत्रियों को फिर से उन्हीं मंत्रालयों को सौंपा गया उससे यही लगता है कि यह सरकार भी कुछ खास करने की इच्छुक ही नहीं है इस तरह के दबाव के सामने झुकने के स्थान पर अखिलेश को संसद में अपनी ऊर्जा का सही ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए था और मुलायम को ही यहाँ पर सत्ता की चाभी सौंप देनी चाहिए थी. प्रदेश को ऊर्जा, कृषि, सामान्य प्रशासन, गृह, सड़क परिवहन, शिक्षा, उद्योग, समाज कल्याण, ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालयों में महत्वपूर्ण और अनुभवी मंत्रियों की आवश्यकता थी पर ये सारे विभाग खुद अखिलेश के पास रहने से इन क्षेत्रों के साथ वे कितना न्याय कर पायेंगें यह भी भविष्य के गर्भ में है ? प्रदेश के समग्र विकास के लिए पूर्वांचल, बुंदेलखंड,अवध और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए एक दूसरे के क्षेत्र के लोगों को प्रभारी मंत्री बनाया जाना चाहिए था जो विकास की सही रफ़्तार को अपने सम्बंधित क्षेत्रीय मुख्यालय से तेज़ करने की कोशिश करते ? अगर हर मुख्यमंत्री इस तरह की सोच रखने लगे तो पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि खुद सीएम के पास प्रोटोकाल के चलते इतने अधिक कार्यक्रम होते हैं कि वे चाहकर भी इन सभी विभागों और प्रदेश के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं.
जिस तरह से अभिषेक मिश्रा को अपने साथ सम्बद्ध कर अखिलेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके मंत्रिमंडल में भले ही आज़म और शिवपाल जैसे वरिष्ठ लोग हों पर अभिषेक सत्ता के केंद्र बने रहेंगें जो कि आने वाले समय में इन समाजवादियों को अखर सकता है ? सपा, मुलायम और अखिलेश के पास एक ऐसा अवसर आया है जिसे वे प्रदेश के हित में बहुत अच्छे से उपयोग में ला सकते हैं पर राजनैतिक मजबूरियों या फिर अपने आप ही इस तरह के दबाव को मान लेने से इस तरह की स्थितियां सामने आती रहती है ? देश गठबन्धन मजबूरियों के साथ चलने वाली संप्रग सरकार को देख ही रहा है जिसके पास बहुमत नहीं है फिर भी वह कई बार ऐसे कदम उठाने में नहीं चूकती है जो आने वाले समय में देश केलिए लाभकारी साबित होने वाले हो सकते हैं ? प्रदेश के हित के लिए ठोस धरातल पर सोचने का एक अवसर सपा और अखिलेश ने खो दिया है क्योंकि जिस सरकार के दम पर वे २०१४ के आम चुनावों को लड़ना चाहते हैं उसके लिए मिली हुई बढ़त को इस तरह के मंत्रिमंडल को बनाकर उन्होंने खो दिया है अब उनके लिए इनमें से चुनाव के नज़दीक किसी को भी नाराज़ करने की हिम्मत नहीं बचेगी. दो सालों में वास्तव में जो परिवर्तन जनता को दिखाया जा सकता था वह अवसर हाथ से जाता रहा है. फिर भी आशा की जानी चाहिए कि इस व्यवस्था की खामियों से रूबरू होने के बाद अखिलेश जल्दी ही कुछ नया कर पायेंगें....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस देश में एक ही वाद चलता है... और कोई दूसरा वाद नहीं. किन ख्यालों में रहते हैं आप..
जवाब देंहटाएंटिप्पणी थोड़ी तिक्त हो गयी है, माफी चाहूंगा, लेकिन सत्य यही है. हर एक के अपने निशाने हैं, बस और कुछ नहीं. जनता के लिये कौन करे.
जवाब देंहटाएंपचास विभाग का मतलब है कि ढाई महीने लगेंगे सभी विभागों को ठीक से रिव्यू करने में.
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