देश की बढ़ती आबादी के साथ बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाने के लिए जिस तरह से पुलिस सुधारों की वकालत लम्बे समय से की जा रही है उस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा सके हैं क्योंकि इस तरह के सुधारों के लिए जितनी राजनैतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है शायद वह हमारे राजनेताओं में बची ही नहीं है ? केंद्रीय गृह मंत्रालय ने १० लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के लिए थानों में तैनात पुलिस कर्मियों के कामों में बंटवारा करने के बारे में एक प्रस्ताव किया है जिसको अभी कैबिनेट की मंज़ूरी मिलनी भी बाक़ी है. इस नए प्रयास के तहत कानून व्यवस्था सँभालने वाले पुलिसकर्मियों से विवेचना का काम नहीं लिया जायेगा क्योंकि इन दोनों कामों को अभी तक एक साथ सँभालने के कारण ही पुलिस विवेचना के काम को ठीक ढंग से नहीं पर पाती है. प्रायोगिक तौर पर यह व्यवस्था दिल्ली पुलिस के लिए लागू किये जाने का प्रावधान किया गया है क्योंकि दिल्ली पुलिस के सामने इन सामान्य चुनौतियों के साथ आतंकियों से निपटने की चुनौती भी हर समय रहती है. दिल्ली पुलिस में ये सुधार करना आसान तो है ही साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने के कारण व्यावहारिक भी है वरना इस अच्छे प्रस्ताव के विरोध में भी आज तमाम राजनैतिक दल खड़े हो सकते हैं कि यह देश के संघीय ढांचे और राज्यों के अधिकार पर प्रहार है ?
सबसे पहले तो अंग्रेजों के ज़माने की पुलिस प्रणाली को आज के हिसाब से परिवर्तित करने की आवश्यकता है क्योंकि आज देश के सामने जो भी चुनौतियाँ हैं उनसे निपटने केलिए जिस इच्छा शक्ति की ज़रुरत है वह संसद को जुटाने की आवश्यकता है अभी तक संसद में ग़ैर सरकारी और सदस्यों द्वारा रखे जाने वाले प्रस्तावों पर जिस तरह से खानापूरी की जाती है अब उससे बाहर निकलने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी सदस्य के मन में कुछ ऐसा भी आ सकता है जो पूरे देश की दिशा बदलने की शक्ति रखता हो पर केवल कुछ राजनैतिक मजबूरियों या ढांचागत ख़ामियों के कारण इन पर विचार नहीं किया जाता है ? पुलिस व्यवस्था को सुधारने का संकल्प अब सभी को लेना ही होगा जिसके लिए सबसे पहले पुलिस को आबादी के अनुसार तैनात करना होगा और जहाँ पर इनकी संख्या आबादी के अनुसार नहीं है वहां पर इसे बढ़ाना ही होगा क्योंकि काम के बोझ से दबे हुए पुलिकर्मियों के लिए कितना काम व्यावहारिक रूप से किया जा सकता है इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि बिना इसके कुछ ठीक नहीं हो सकता है. विवेचना में लगी पुलिस टीम के अलग हो जाने से जहाँ काम में तेज़ी आएगी वहीं दोनों यूनिटों में सामंजस्य की समस्या भी खड़ी हो सकती है क्योंकि अभी तक जो भी भ्रष्टाचार फैलता है वह विवेचना के स्तर पर ही अधिक होता है जिससे ऐसी दशा में पुलिस कर्मियों में मनमुटाव हो जाने से काम पर प्रभाव भी पड़ सकता है ?
हालांकि इस दिशा में पुडुचेरी और चंडीगढ़ पुलिस ने प्रयास भी किये हैं और पुडुचेरी पुलिस को इसमें काफ़ी हद तक सफलता भी मिली है. जब इस तरह का काम ये राज्य अपने स्तर पर कर सकते हैं तो प्रायोगिक तौर पर बड़े शहरों में इसे आज़माने में क्या दिक्कतें हैं क्योंकि जब तक इसे ठीक ढंग से नहीं लागू किया जायेगा पुलिस अपने पुराने ढर्रे पर ही काम करती रहेगी और आने वाले समय की चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने में चूक करती ही रहेगी ? देश को किसी भी स्थिति में मज़बूत पुलिस तंत्र की आवश्यकता है जबकि हमारे नेता ही नहीं चाहते कि पुलिस किसी भी स्थिति में ऐसी हो जाये कि अपना काम निष्पक्ष रूप से करने की शक्ति जुटा ले. आज हमारे राजनैतिक तंत्र को पुलिस के दुरूपयोग की जो आदत लगी हुई है उससे वह किस हद तक मुक्त होना चाहता है यह किसी को भी नहीं पता है पर उनके द्वारा लगाये गए बंधनों से पुलिस की छवि निरंतर ही धूमिल होती जा रही है. आने वाले समय में दिल्ली पुलिस के लिए किये जाने वाले ये प्रस्ताव किस हद तक सफल होंगें यह तो समय ही बता पायेगा पर इस दिशा में अब सभी राज्यों को भी सोचने की ज़रुरत है क्योंकि हर क़ानून और नियम केवल केंद्र ही बनाकर भेजे और उस पर हो हल्ला हो इससे अच्छा यही है कि सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने कर्तव्यों का ठीक ढंग से अनुपालन करें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सबसे पहले तो अंग्रेजों के ज़माने की पुलिस प्रणाली को आज के हिसाब से परिवर्तित करने की आवश्यकता है क्योंकि आज देश के सामने जो भी चुनौतियाँ हैं उनसे निपटने केलिए जिस इच्छा शक्ति की ज़रुरत है वह संसद को जुटाने की आवश्यकता है अभी तक संसद में ग़ैर सरकारी और सदस्यों द्वारा रखे जाने वाले प्रस्तावों पर जिस तरह से खानापूरी की जाती है अब उससे बाहर निकलने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी सदस्य के मन में कुछ ऐसा भी आ सकता है जो पूरे देश की दिशा बदलने की शक्ति रखता हो पर केवल कुछ राजनैतिक मजबूरियों या ढांचागत ख़ामियों के कारण इन पर विचार नहीं किया जाता है ? पुलिस व्यवस्था को सुधारने का संकल्प अब सभी को लेना ही होगा जिसके लिए सबसे पहले पुलिस को आबादी के अनुसार तैनात करना होगा और जहाँ पर इनकी संख्या आबादी के अनुसार नहीं है वहां पर इसे बढ़ाना ही होगा क्योंकि काम के बोझ से दबे हुए पुलिकर्मियों के लिए कितना काम व्यावहारिक रूप से किया जा सकता है इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि बिना इसके कुछ ठीक नहीं हो सकता है. विवेचना में लगी पुलिस टीम के अलग हो जाने से जहाँ काम में तेज़ी आएगी वहीं दोनों यूनिटों में सामंजस्य की समस्या भी खड़ी हो सकती है क्योंकि अभी तक जो भी भ्रष्टाचार फैलता है वह विवेचना के स्तर पर ही अधिक होता है जिससे ऐसी दशा में पुलिस कर्मियों में मनमुटाव हो जाने से काम पर प्रभाव भी पड़ सकता है ?
हालांकि इस दिशा में पुडुचेरी और चंडीगढ़ पुलिस ने प्रयास भी किये हैं और पुडुचेरी पुलिस को इसमें काफ़ी हद तक सफलता भी मिली है. जब इस तरह का काम ये राज्य अपने स्तर पर कर सकते हैं तो प्रायोगिक तौर पर बड़े शहरों में इसे आज़माने में क्या दिक्कतें हैं क्योंकि जब तक इसे ठीक ढंग से नहीं लागू किया जायेगा पुलिस अपने पुराने ढर्रे पर ही काम करती रहेगी और आने वाले समय की चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने में चूक करती ही रहेगी ? देश को किसी भी स्थिति में मज़बूत पुलिस तंत्र की आवश्यकता है जबकि हमारे नेता ही नहीं चाहते कि पुलिस किसी भी स्थिति में ऐसी हो जाये कि अपना काम निष्पक्ष रूप से करने की शक्ति जुटा ले. आज हमारे राजनैतिक तंत्र को पुलिस के दुरूपयोग की जो आदत लगी हुई है उससे वह किस हद तक मुक्त होना चाहता है यह किसी को भी नहीं पता है पर उनके द्वारा लगाये गए बंधनों से पुलिस की छवि निरंतर ही धूमिल होती जा रही है. आने वाले समय में दिल्ली पुलिस के लिए किये जाने वाले ये प्रस्ताव किस हद तक सफल होंगें यह तो समय ही बता पायेगा पर इस दिशा में अब सभी राज्यों को भी सोचने की ज़रुरत है क्योंकि हर क़ानून और नियम केवल केंद्र ही बनाकर भेजे और उस पर हो हल्ला हो इससे अच्छा यही है कि सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने कर्तव्यों का ठीक ढंग से अनुपालन करें.
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