मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 1 अप्रैल 2012

शक्तियों के भस्मासुर

             प्रेस परिषद के प्रमुख जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने जिस तरह से लोकपाल के वर्तमान स्वरुप के बारे में जो भी आशंकाएं ज़ाहिर की हैं वे निश्चित तौर पर ही चिंता का विषय हैं आज तक लोकपाल के नाम पर जिस तरह से सरकार और टीम अन्ना के बीच बातों की जंग छिड़ी हुई है उससे यही लगता है कि जन लोकपाल बनवाने के अन्ना के दबाव में सरकार भी कुछ ऐसे कड़े क़दम अपने द्वारा प्रस्तावित विधेयक में करने का मन बना चुकी है जो आने वाले समय में देश के लिए बहुत अधिक घातक सिद्ध हो सकते हैं. जस्टिस काटजू का यह सोचना बिलकुल सही है कि इतनी अधिक शक्तियों से लैस कोई भी लोकपाल कभी भी निरंकुश हो सकता है और जिस उद्देश्य के लिए उसका गठन किया जा रहा है वह पूरी तरह से विफल भी हो सकता है ? सरकार और जन लोकपाल में जिन प्रावधानों की बातें की जा रही हैं वे किसी भी समय देश को किसी बड़े राजनैतिक संकट की तरफ भी धकेल सकती हैं जिससे देश में अराजकता का माहौल भी बन सकता है. आज जिस तरह से देश का नैतिक चरित्र निम्नतम स्तर पर पहुँच चुका है उसमें कल लोकपाल नामक संस्था से जुड़ा व्यक्ति भ्रष्ट लोगों को बचने के लिए भ्रष्टाचार करना नहीं शुरू कर देगा इसकी गारंटी कौन ले सकता है ? वह स्थिति तो और भी ख़तरनाक होगी क्योंकि इस लोकपाल को हटाने के लिए जितनी शक्तियों का प्रावधान किया जा रहा है अगर लोकपाल ने उन शक्तियों को ही संदेह के घेरे में ला दिया तो उसे कौन हटा पायेगा ?
         टीम अन्ना जो कुछ भी मांग रही है वह देश की ज़रुरत है और सरकार कानूनी दांवपेंचों को कुछ हद तक समझ कर जो कुछ भी कर रही है वह अन्ना के हिसाब से कम है पर यह देश में सरकार के समानांतर एक ऐसी व्यवस्था बनाए की तरफ़ जाने वाला क़दम है जो किसी अति महत्वकांक्षी व्यक्ति के इस पद पर बैठने से देश को संकट में डाल सकता है ? अन्ना के साथ जन समर्थन था और आगे भी रहेगा पर जिस तरह से लोगों ने उन्हें समर्थन दिया उनकी टीम उस ऊर्जा को सही दिशा में नहीं मोड़ सकी जिसके दुष्परिणाम स्वरुप आज जो कुछ भी दिख रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है. जब किसी के पास जन समर्थन की इतनी प्रचंड शक्ति हो तो उसको सही दिशा में मोड़ने की बहुत आवश्यकता होती है पर टीम अन्ना इस मौके को गँवा चुकी है जिसे परिणाम स्वरुप अब होने वाले किसी भी आन्दोलन में उनके घटते जनसमर्थन से देखा जा सकता है. किसी एक संस्था या व्यक्ति के लिए कोई ऐसी संस्था या व्यक्ति कैसे कारगर साबित हो सकता है जब किसी को नहीं पता कि आने वाले समय में कौन किस पद पर बैठने जा रहा है ? देश में किस व्यक्ति को ढूँढा जायेगा जो देश और टीम अन्ना के पैमाने पर हमेशा ही खरा उतर पाए फिर जो स्थिति बन सकती है उसके खिलाफ कौन कहना शिकायत करेगा क्योंकि तब कोई सरकार भी अपने लाभ के लिए लोकपाल को साथ मिलाकर कुछ भी करने की कोशिश कर सकती है ?
           अच्छा हो कि टीम अन्ना अब पूरे देश में क्रियाशील और देश के लिए सोचने वाले लोगों को जोड़ने का काम करे इसके लिए पूरे देश से वह लोगों का आह्वाहन कर सकती है और सबसे पहले हर जिले में अपने इस अभियान से जुड़ने वाले उन चेहरों की पहचान करने का काम करे जो बिना किसी लालच के यह काम करने के इच्छुक हों क्योंकि जब तक इस टीम में स्थानीय निर्विवाद लोग नहीं होंगें तब तक इससे दिल्ली में चलने वाले किसी भी आन्दोलन को निरंतर ऊर्जा नहीं मिल पायेगी. जिस तरह से कुछ हाथों में आज भी टीम अन्ना सिमटी हुई है उससे यही लगता है कि अच्छे काम को शुरू करके अब यह अपने संगठन को धरातल पर उतारने में सफल नहीं हो पा रही है ? केवल दिल्ली में इस तरह के आन्दोलनों से केंद्र सरकार पर मीडिया और शिक्षित समाज का दबाव बनाने का काम किया जा सकता है पर जब इसे गाँवों और दूर दराज़ के शहरों तक पहुँचाने की आवश्यकता होगी तो दिल्ली में बैठे चंद लोग इस आन्दोलन के साथ कैसे न्याय कर पायेंगें ? सबसे पहले स्थानीय स्तर पर समितियों का गठन किया जाना चाहिए जो अपने नगर, गाँव, तहसील और ज़िला मुख्यालयों पर होने वाली अनियमितताओं को रोकने का काम करना शुरू करें तभी पूरे देश को यह लगेगा कि टीम अन्ना उनके पास भी है और किसी भी राज्य में किसी भी सरकारी कर्मचारी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध में कुछ करने की शुरुवात हो सकेगी. देश की राजनीति बेशक दिल्ली से चलती है पर इस राजनीति की आत्मा आज भी जहाँ बसती है वहां तक पहुंचे बिना कोई भी आन्दोलन जन आन्दोलन कैसे बन सकता है ?                  
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