देश में बढ़ते हुए मोबाइल और कंप्यूटर की संख्या को देखते हुए अब इनके पुराने हो जाने पर इनका सही तरह से निस्तारण किये जाने के बारे में सरकार एक कानून लाने जा रही है जो 1 मई १२ से पूरे देश में प्रभावी होने जा रहा है. इस कानून के तहत अब किसी भी नागरिक को अपने पुराने इलेक्ट्रानिक उपकरण जैसे कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, टीवी, फ़ोन, फ्रिज, एलसीडी आदि सभी को पुराना हो जाने पर सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त केंद्र तक पहुँचाना होगा और इसमें विफल रहने पर स्थानीय प्रशासन को कानूनन कार्यवाही करने के अधिकार भी दिए जा रहे हैं. इस तरह के सभी उपकरणों में बहुत सारे ऐसे तत्वों का प्रयोग किया जाता है जो मनुष्यों समेत सभी जीव-जंतुओं, वनस्पति, जल और वायु के लिए हानिकारक हैं और इसके सही तरह से निस्तारण न करने से स्वस्थ्य सम्बन्धी बड़ी समस्याएं सामने आ सकती हैं. पश्चिमी देशों में पहले से ही इस तरह के कानून लागू हैं और उनका कडाई से अनुपालन भी करवाया जा रहा है साथ ही भारत में भी इस तरह के इ वेस्ट के आयात पर काफी पहले से ही प्रतिबन्ध लगा हुआ है.
इस काम को सुचारू ढंग से चलाने के लिए पहले जागरूकता बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जायेगा जिससे आम नागरिक यह समझ सकें कि इस तरह के सामान को कबाड़ी को बेचने से उनके ही स्वास्थ्य पर बुरा असर भी पड़ सकता है और इनसे निकले वाले अपशिष्ट पदार्थ ज़मीन में पड़े रहकर कई तरह के प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार बन सकते हैं. इस काम को चरण बद्ध तरीके से शुरू करने केलिए सबसे पहले लगभग ४०० बड़े उपभोक्ताओं की पहचान की गयी है जहाँ पर इनका बड़े स्तर पर प्रयोग किया जाता है क्योंकि जब तक बड़े स्तर से शुरुवात नहीं की जाएगी तब तक इसे धरातल पर उतार पाना आसान नहीं होगा. साथ ही इन उत्पादों को बेचने वाली कम्पनियों से भी इस बात की उम्मीद की जा रही है कि वे अपने उत्पाद बेचते समय ही ग्राहकों को इस तरह के ख़तरों के बारे में सचेत करेंगीं और यदि उनके पास कोई सम्बंधित पुराना उपकरण है तो उसे सही तरह से निस्तारित करवाने की व्यवस्था कराने की व्यवस्था भी करेंगीं. भारत में जिस तरह से पुराने उत्पाद के बदले नए उत्पाद लेने की ख़ास आदत है उसे यह काम काफ़ी हद तक आसान हो सकता है क्योंकि इससे पुराने उपकरण आसानी से निस्तारित किये जा सकते हैं.
अभी तक के अनुमान के अनुसार देश में प्रति वर्ष लगभग ४ लाख टन ई-वेस्ट निकलता है जिसमें से केवल १० % ही सही तरह से निस्तारित किया जाता है और बाकी स्थानीय कबाड़ियों के हाथों में चला जाता है जो कि केवल उपयोग में आने वाले सामान को ही निकाल कर अन्य भाग को ऐसे ही फ़ेंक देते हैं जिससे इनसे होने वाले प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है. हमें अपने पूरे उपकरणों को बच्चों को खिलौने की तरह भी नहीं इस्तेमाल करने देना चाहिए क्योंकि बच्चे उन्हें अपने मुंह में डालते रहते हैं जो उनके लिए खतरनाक हो सकता है. अब इस तरह के कानून के लागू होने के बाद नागरिकों को इस बारे में जागरूक करने के लिए देश में विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले एनजीओ कि भी भागीदारी करवाने के प्रयास किये जा रहे हैं. ई-वेस्ट आगे आने वाले समय में देश के लिए बड़ी समस्या न बन जाए इसके लिए अभी से हम सभी को जागरूक होने की ज़रुरत है. सरकार कानून बना सकती है जिससे प्रशासन के पास नागरिकों को समझाने और दण्डित करने का प्रावधान रहे पर सही अर्थों में किसी मामले में जागरूकता तभी आ सकती है जब हम सभी नागरिक इस बारे में केवल सोचें ही नहीं वरन समय रहते काम भी करना शुरू कर दें जिससे आने वाली पीढ़ी हमें इस बात के लिए दोषी न माने कि हमने उनके लिए सांस लेने लायक हवा और पीने लायक पानी नहीं छोड़ा था...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस काम को सुचारू ढंग से चलाने के लिए पहले जागरूकता बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जायेगा जिससे आम नागरिक यह समझ सकें कि इस तरह के सामान को कबाड़ी को बेचने से उनके ही स्वास्थ्य पर बुरा असर भी पड़ सकता है और इनसे निकले वाले अपशिष्ट पदार्थ ज़मीन में पड़े रहकर कई तरह के प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार बन सकते हैं. इस काम को चरण बद्ध तरीके से शुरू करने केलिए सबसे पहले लगभग ४०० बड़े उपभोक्ताओं की पहचान की गयी है जहाँ पर इनका बड़े स्तर पर प्रयोग किया जाता है क्योंकि जब तक बड़े स्तर से शुरुवात नहीं की जाएगी तब तक इसे धरातल पर उतार पाना आसान नहीं होगा. साथ ही इन उत्पादों को बेचने वाली कम्पनियों से भी इस बात की उम्मीद की जा रही है कि वे अपने उत्पाद बेचते समय ही ग्राहकों को इस तरह के ख़तरों के बारे में सचेत करेंगीं और यदि उनके पास कोई सम्बंधित पुराना उपकरण है तो उसे सही तरह से निस्तारित करवाने की व्यवस्था कराने की व्यवस्था भी करेंगीं. भारत में जिस तरह से पुराने उत्पाद के बदले नए उत्पाद लेने की ख़ास आदत है उसे यह काम काफ़ी हद तक आसान हो सकता है क्योंकि इससे पुराने उपकरण आसानी से निस्तारित किये जा सकते हैं.
अभी तक के अनुमान के अनुसार देश में प्रति वर्ष लगभग ४ लाख टन ई-वेस्ट निकलता है जिसमें से केवल १० % ही सही तरह से निस्तारित किया जाता है और बाकी स्थानीय कबाड़ियों के हाथों में चला जाता है जो कि केवल उपयोग में आने वाले सामान को ही निकाल कर अन्य भाग को ऐसे ही फ़ेंक देते हैं जिससे इनसे होने वाले प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है. हमें अपने पूरे उपकरणों को बच्चों को खिलौने की तरह भी नहीं इस्तेमाल करने देना चाहिए क्योंकि बच्चे उन्हें अपने मुंह में डालते रहते हैं जो उनके लिए खतरनाक हो सकता है. अब इस तरह के कानून के लागू होने के बाद नागरिकों को इस बारे में जागरूक करने के लिए देश में विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले एनजीओ कि भी भागीदारी करवाने के प्रयास किये जा रहे हैं. ई-वेस्ट आगे आने वाले समय में देश के लिए बड़ी समस्या न बन जाए इसके लिए अभी से हम सभी को जागरूक होने की ज़रुरत है. सरकार कानून बना सकती है जिससे प्रशासन के पास नागरिकों को समझाने और दण्डित करने का प्रावधान रहे पर सही अर्थों में किसी मामले में जागरूकता तभी आ सकती है जब हम सभी नागरिक इस बारे में केवल सोचें ही नहीं वरन समय रहते काम भी करना शुरू कर दें जिससे आने वाली पीढ़ी हमें इस बात के लिए दोषी न माने कि हमने उनके लिए सांस लेने लायक हवा और पीने लायक पानी नहीं छोड़ा था...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
समय रहते ध्यान देना पड़ेगा, समस्या गंभीर होने वाली है।
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