पिछले कुछ दिनों में सेना में वाहनों की खरीद पर जिस तरह का बवाल मचा उससे इस बात के सन्देश मिलने लगे थे कि जल्दी ही सरकार इस दिशा में कोई नए कदम उठाने की तरफ कोशिश करने वाली है. रक्षा मंत्री ने सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के साथ लम्बी बैठक करके इस बात के बारे में विचार विमर्श किया है और उन्होंने सेना मुख्यालय और रक्षा मंत्रालय से कहा है कि रक्षा से जुड़ी खरीद की प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाया जाए जिससे इस पर नज़र रख पाना आसान हो साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि किसी भी खरीद से पहले किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता को जांचने में आज जितना समय लगता है उसको भी कम करने की दिशा में तेज़ी से काम करने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक इन सारी प्रक्रियाओं में तेज़ी नहीं आएगी तब तक इसमें गड़बड़ी की सम्भावना बनी रहेगी. अभी तक देश में जो भी नीति काम कर रही है उसमें किसी भी नए उत्पाद को खरीदने में बहुत लम्बा समय लगता है और पिछले कुछ समय से जिस तरह से लगभग हर खरीद पर ऊँगली उठने लगी है तो वैसी स्थिति में इस पूरी तरह से पारदर्शी कर देने में कुछ ग़लत भी नहीं है. इसमें तेज़ी लाकर ही सेना में उस कमी को पूरा किया जा सकता है जिसकी तरफ जनरल वी के सिंह ने अपने कथित पत्र में भी इशारा किया था.
सैन्य खरीद के सम्बन्ध में रक्षा मंत्री ने जो प्रमुख सुझाव दिया है उसमें तीनों सेना मुख्यालयों को खरीद के लिए और अधिक वित्तीय अधिकार दिए जाने की बात की गयी है इससे सबसे बड़ा परिवर्तन यह भी होगा कि सेना के तीनों अंग अपनी ज़रुरत के हिसाब से थोड़ी खरीद कर सकेंगें जो कि अंत में खरीद प्रक्रिया को ही मदद करेगी और किसी भी सौदे के आकार को बहुत बड़ा होने से भी रोकेगी. जब सौदे छोटे स्तरों पर होने लगेंगें तो उन पर निर्णय लेने में भी कम समय लगेगा. आज देश को सैन्य हथियारों को खरीद के लिए पूरी तरह से नयी और आज के समय में कारगर नीति की आवश्यकता है क्योंकि पुराने समय में हमारी रक्षा ज़रूरतें अलग तरह की थीं और अब इसमें बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है जिससे निपटने के लिए अब ठीक दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है. यह भी सही है कि देश के आयुध भण्डार में कमी आ रही है और किसी बड़े सौदे को अभी तक मंज़ूरी नहीं मिली है जबकि सेना को बोफोर्स तोपें खरीदे ढाई दशक बीत चुके हैं ? सेना की ज़रूरतें इस तरह की परिस्थितियों में कम नहीं हो जाती हैं बल्कि उसे अपने समय से अपने भंडार और मारक क्षमता को बनाये रखने की ज़रुरत पड़ती है. सेना के तीनों अंगों की तात्कालिक ज़रूरतों को चिन्हित करके उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए.
देश जितनी बड़ी मात्रा में हथियारों की खरीद करता है उसके लिए अब स्वदेशी उद्योग को आगे लाने के लिए नीतियों में परिवर्तन किया जाना चाहिए क्योंकि भारत में उत्पादन क्षमता की कमी नहीं है फिर भी यहाँ पर रक्षा सम्बन्धी उपकरणों के उत्पादन के लिए सरल नीतियां न होने से यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है. जब अन्य सभी क्षेत्रों में देश ने आगे बढ़ना सीख लिया है तो अब हमें रक्षा से जुड़े उत्पादों के स्थानीय स्तर पर उत्पादन के बारे में भी सचना चाहिए जिससे इस पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके और आने वाले समय में भारत दुनिया के अन्य हथियार उत्पादक देशों को इस क्षेत्र में भी चुनौती देने की स्थिति में आ सके. रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ने से जहाँ रोज़गार बढेंगें वहीं साथ ही इस क्षेत्र में अनुसन्धान को भी गति मिलेगी जो कि भारतीय परिस्थितियों के लिए बेहतर उत्पाद बनाने के लायक माहौल को भी विकसित करने में सहायक साबित होंगीं. जब इस मसले पर इतना बवाल मच ही चुका है तो इस पर पूरी निष्ठां के साथ काम किया जाना चाहिए और रक्षा सम्बन्धी खरीद में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में सेना की कमान उनमें से ही किसी के पास रहती है और इन निर्णयों में पहले से ही शामिल होने से उनके लिए काम करना और गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं से निपटने में आसानी ही होगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सैन्य खरीद के सम्बन्ध में रक्षा मंत्री ने जो प्रमुख सुझाव दिया है उसमें तीनों सेना मुख्यालयों को खरीद के लिए और अधिक वित्तीय अधिकार दिए जाने की बात की गयी है इससे सबसे बड़ा परिवर्तन यह भी होगा कि सेना के तीनों अंग अपनी ज़रुरत के हिसाब से थोड़ी खरीद कर सकेंगें जो कि अंत में खरीद प्रक्रिया को ही मदद करेगी और किसी भी सौदे के आकार को बहुत बड़ा होने से भी रोकेगी. जब सौदे छोटे स्तरों पर होने लगेंगें तो उन पर निर्णय लेने में भी कम समय लगेगा. आज देश को सैन्य हथियारों को खरीद के लिए पूरी तरह से नयी और आज के समय में कारगर नीति की आवश्यकता है क्योंकि पुराने समय में हमारी रक्षा ज़रूरतें अलग तरह की थीं और अब इसमें बहुत बड़ा परिवर्तन आ चुका है जिससे निपटने के लिए अब ठीक दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है. यह भी सही है कि देश के आयुध भण्डार में कमी आ रही है और किसी बड़े सौदे को अभी तक मंज़ूरी नहीं मिली है जबकि सेना को बोफोर्स तोपें खरीदे ढाई दशक बीत चुके हैं ? सेना की ज़रूरतें इस तरह की परिस्थितियों में कम नहीं हो जाती हैं बल्कि उसे अपने समय से अपने भंडार और मारक क्षमता को बनाये रखने की ज़रुरत पड़ती है. सेना के तीनों अंगों की तात्कालिक ज़रूरतों को चिन्हित करके उन्हें पूरा करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए.
देश जितनी बड़ी मात्रा में हथियारों की खरीद करता है उसके लिए अब स्वदेशी उद्योग को आगे लाने के लिए नीतियों में परिवर्तन किया जाना चाहिए क्योंकि भारत में उत्पादन क्षमता की कमी नहीं है फिर भी यहाँ पर रक्षा सम्बन्धी उपकरणों के उत्पादन के लिए सरल नीतियां न होने से यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है. जब अन्य सभी क्षेत्रों में देश ने आगे बढ़ना सीख लिया है तो अब हमें रक्षा से जुड़े उत्पादों के स्थानीय स्तर पर उत्पादन के बारे में भी सचना चाहिए जिससे इस पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके और आने वाले समय में भारत दुनिया के अन्य हथियार उत्पादक देशों को इस क्षेत्र में भी चुनौती देने की स्थिति में आ सके. रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ने से जहाँ रोज़गार बढेंगें वहीं साथ ही इस क्षेत्र में अनुसन्धान को भी गति मिलेगी जो कि भारतीय परिस्थितियों के लिए बेहतर उत्पाद बनाने के लायक माहौल को भी विकसित करने में सहायक साबित होंगीं. जब इस मसले पर इतना बवाल मच ही चुका है तो इस पर पूरी निष्ठां के साथ काम किया जाना चाहिए और रक्षा सम्बन्धी खरीद में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में सेना की कमान उनमें से ही किसी के पास रहती है और इन निर्णयों में पहले से ही शामिल होने से उनके लिए काम करना और गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं से निपटने में आसानी ही होगी.
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अब तो जनरल वीके सिंह की यह बात स्वत: साबित हो जाती है कि जब उन्होंने खुद को रिश्वत की पेशकश किए जाने के मामले की जानकारी रक्षा मंत्री एके एंटनी को दी थी तो उन्होंने अपना माथा पीटने के अलावा और कुछ नहीं किया। क्या कोई और विशेष रूप से खुद रक्षा मंत्री एके एंटनी यह बताएंगे कि वह जनरल सिंह की ओर से आगाह किए जाने के बावजूद क्यों नहीं चेते? यह प्रश्न अनुत्तरित रहना एक गंभीर बात है कि रक्षा मंत्री ने सेना प्रमुख की शिकायत पर तत्काल कोई कार्रवाई करना जरूरी क्यों नहीं समझा? केंद्रीय मंत्री स्तर के किसी राजनेता को यह शोभा नहीं देता कि वह ऐसे मामले की अनदेखी करे जिसमें गड़बड़ी की शिकायत उसके शीर्ष अधिकारी ने खुद की हो। देश यह जानना चाहेगा कि एके एंटनी ने उसी समय यह क्यों सुनिश्चित नहीं किया कि इस मामले की जांच गहन तरीके से और प्राथमिकता के आधार पर हो। यह सवाल इसलिए और अधिक गंभीर हो गया है, क्योंकि कुछ अन्य लोगों ने भी टाट्रा ट्रक खरीद में अनियमितता की शिकायत की थी। चूंकि अब इस बात के भी प्रमाण सामने आ गए हैं कि टाट्रा ट्रक खरीद में अनियमितता की शिकायत रक्षा मंत्री को भी चिट्ठी लिखकर की गई थी इसलिए उनके लिए यह और आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी स्थिति स्पष्ट करें।
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