हरियाणा के झज्जर में इस सप्ताह चालू हुई ६६० मेगावाट की यूनिट चालू हो जाने से देश में बिजली उत्पादन के नए आयाम बने क्योंकि अब देश में कुल बिजली उत्पादन क्षमता बढ़कर २ लाख मेगावाट से आगे निकल गयी है. बढ़ती हुई आर्थिक गतिविधियों में जिस तेज़ी के साथ हमारा बिजली उत्पादन भी बढ़ना चाहिए अभी तक हमने वह गति तो नहीं पाई है फिर भी ऊर्जा के क्षेत्र में काम हो तो रहा है. ११ वीं योजना के दौरान जितना बिजली उत्पादन बढ़ाने में सफलता मिली है उतनी पिछली तीन परियोजनाओं में मिलकर भी नहीं मिली थी. अभी तक जिस तरह से देश में जितनी भी बिजली बन रही है उसमें सबसे ६५ % का सबसे बड़ा हिस्सा तापीय परियोजनाओं से ही आता है जो कि सीमित संसाधनों के होने से आज उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ पा रहा है जितनी तेज़ी से बढ़ना चाहिए. लगभग १९ % पन बिजली की उपलब्धतता आज हमारे देश में है जो कि उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के अनुपात में बहुत ही कम है क्योंकि अभी तक जो भी पन बिजली परियोजनाएं लगायी गयी हैं उन्हें बहुत बड़े स्तर पर लगाने के प्रयासों के चलते विवादों की संख्या बहुत अधिक रही है जो कि इस क्षेत्र की उचित प्रगति में बाधक बनती रही है. देश में प्रचुर मात्रा में पहाड़ी नदियाँ और जल स्रोत उपलब्ध हैं पर उनका जिस तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना ही उपयोग करना चाहिए हम आज तक उसमें पूरी तरह से असफल ही रहे हैं.
केवल २.५ % परमाणु ऊर्जा पर जी रहे देश को अभी बहुत आगे के बारे में सोचने की ज़रुरत है, परमाणु ऊर्जा के बारे में देश को अभी बहुत आगे जाना है क्योंकि आने वाले समय में बिजली की तेज़ी से बढती हुई मांग को इस क्षेत्र से ही पूरा किया जा सकता है पर जिस तरह से देश में पुरानी प्रोद्योगिकी ही उपलब्ध है और आज के हिसाब से हमें परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के लिए विदेश तकनीक पर ही अधिक निर्भर होना पड़ रहा है जो कि हमारे विकास की गति को भी नुकसान पहुँचाने में लगा हुआ है. कुडनकुलम परियोजना इस बात का एक उदाहरण है जिसमें भारत रूस के संबंधों के कारण बनने वाले इस संयंत्र का पश्चिमी देशों ने आर्थिक और राजनैतिक कारणों से बहुत विरोध किया पर सरकार और परमाणु ऊर्जा से जुड़े केन्द्रों द्वारा इसे सुरक्षित घोषित किये जाने के बाद अब यहाँ का काम अपनी गति से चल रहा है. देश में किसी भी बात पर राजनीति करने के लिए हम सदैव ही तैयार रहते हैं पर जब इस तरह से विकास से जुड़ी बातों पर भी राजनीति होती है तो वह कहीं न कहीं से देश की विकास करने की असीम संभावनाओं पर भी रोक लगाने का ही काम करती हैं. पश्चिमी देश भारत को भी अन्य देशों की तरह ही समझते हैं जबकि उन्हें भी पता है कि यहाँ पर किसी भी बात को विवादित कर देने में हम भारतीयों की कोई सानी नहीं है और कई बार देश को इस तरह से बहुत नुकसान भी हो चुका है.
देश में जिस तेज़ी से अक्षय ऊर्जा में बढ़ोत्तरी हो रही है उसके बाद यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में इसका कोई मुकाबला नहीं कर पायेगा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. आज देश की कुल ऊर्जा ज़रुरत का १२.५ % भाग अक्षय ऊर्जा से ही मिल रहा है और जिस तरह से पिछ्ले कुछ वर्षों में निजी क्षेत्र की तेज़ी से बढती भागीदारी ने इस क्षेत्र को नए आयाम दिए हैं उससे यही लगता है के आने वाले समय में इस पूर्ण रूप से सुरक्षति ऊर्जा का ही देश में बोलबाला होने वाला है. सौर ऊर्जा के बाद जिस तरह से पवन ऊर्जा में भी देश ने नए आयाम स्थापित किये हैं उसके बाद यह क्षेत्र भी तेज़ी से विकास करने वाले क्षेत्र के रूप में सामने आया है. देश के तटीय क्षेत्रों में जितनी बड़ी मात्रा में पवन ऊर्जा का दोहन किया जा सकता है अभी उसका सही अनुमान भी नहीं लगाया जा सका है क्योंकि कुछ निजी क्षेत्र की कम्पनियां ही इसे बढ़ावा देने में लगी हुई है और जब तक तटीय क्षेत्रों में इसका स्थानीय स्तर पर उत्पादन नहीं बढाया जायेगा तब तक देश की बिजली आवश्यकता को पूरा नहीं किया जा सकेगा. जो कम्पनियां बड़ी परियोजनाएं लगा रही हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और साथ ही पंचायत स्तर पर भी बिजली उत्पादन के बारे में सोचा जाना चाहिए जिससे स्थनीय लोगों को अपने ही घर के आस पास बनी बिजली कम खर्चे पर मिल सके. तटीय गाँवों में उनकी आबादी और आवश्यकता के अनुसार सरकार सहायता देकर बिजली को कम खर्च में उन तक पहुंचा सकती है. तेज़ी से विकास करते हुए भारत के पास अब प्रचुर मात्रा में बिजली होनी ही चाहिए जिससे आने वाले समय में हमारी ज़रूरतों में कटौती करने की आवश्यकता ही न रहे.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
केवल २.५ % परमाणु ऊर्जा पर जी रहे देश को अभी बहुत आगे के बारे में सोचने की ज़रुरत है, परमाणु ऊर्जा के बारे में देश को अभी बहुत आगे जाना है क्योंकि आने वाले समय में बिजली की तेज़ी से बढती हुई मांग को इस क्षेत्र से ही पूरा किया जा सकता है पर जिस तरह से देश में पुरानी प्रोद्योगिकी ही उपलब्ध है और आज के हिसाब से हमें परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के लिए विदेश तकनीक पर ही अधिक निर्भर होना पड़ रहा है जो कि हमारे विकास की गति को भी नुकसान पहुँचाने में लगा हुआ है. कुडनकुलम परियोजना इस बात का एक उदाहरण है जिसमें भारत रूस के संबंधों के कारण बनने वाले इस संयंत्र का पश्चिमी देशों ने आर्थिक और राजनैतिक कारणों से बहुत विरोध किया पर सरकार और परमाणु ऊर्जा से जुड़े केन्द्रों द्वारा इसे सुरक्षित घोषित किये जाने के बाद अब यहाँ का काम अपनी गति से चल रहा है. देश में किसी भी बात पर राजनीति करने के लिए हम सदैव ही तैयार रहते हैं पर जब इस तरह से विकास से जुड़ी बातों पर भी राजनीति होती है तो वह कहीं न कहीं से देश की विकास करने की असीम संभावनाओं पर भी रोक लगाने का ही काम करती हैं. पश्चिमी देश भारत को भी अन्य देशों की तरह ही समझते हैं जबकि उन्हें भी पता है कि यहाँ पर किसी भी बात को विवादित कर देने में हम भारतीयों की कोई सानी नहीं है और कई बार देश को इस तरह से बहुत नुकसान भी हो चुका है.
देश में जिस तेज़ी से अक्षय ऊर्जा में बढ़ोत्तरी हो रही है उसके बाद यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में इसका कोई मुकाबला नहीं कर पायेगा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. आज देश की कुल ऊर्जा ज़रुरत का १२.५ % भाग अक्षय ऊर्जा से ही मिल रहा है और जिस तरह से पिछ्ले कुछ वर्षों में निजी क्षेत्र की तेज़ी से बढती भागीदारी ने इस क्षेत्र को नए आयाम दिए हैं उससे यही लगता है के आने वाले समय में इस पूर्ण रूप से सुरक्षति ऊर्जा का ही देश में बोलबाला होने वाला है. सौर ऊर्जा के बाद जिस तरह से पवन ऊर्जा में भी देश ने नए आयाम स्थापित किये हैं उसके बाद यह क्षेत्र भी तेज़ी से विकास करने वाले क्षेत्र के रूप में सामने आया है. देश के तटीय क्षेत्रों में जितनी बड़ी मात्रा में पवन ऊर्जा का दोहन किया जा सकता है अभी उसका सही अनुमान भी नहीं लगाया जा सका है क्योंकि कुछ निजी क्षेत्र की कम्पनियां ही इसे बढ़ावा देने में लगी हुई है और जब तक तटीय क्षेत्रों में इसका स्थानीय स्तर पर उत्पादन नहीं बढाया जायेगा तब तक देश की बिजली आवश्यकता को पूरा नहीं किया जा सकेगा. जो कम्पनियां बड़ी परियोजनाएं लगा रही हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और साथ ही पंचायत स्तर पर भी बिजली उत्पादन के बारे में सोचा जाना चाहिए जिससे स्थनीय लोगों को अपने ही घर के आस पास बनी बिजली कम खर्चे पर मिल सके. तटीय गाँवों में उनकी आबादी और आवश्यकता के अनुसार सरकार सहायता देकर बिजली को कम खर्च में उन तक पहुंचा सकती है. तेज़ी से विकास करते हुए भारत के पास अब प्रचुर मात्रा में बिजली होनी ही चाहिए जिससे आने वाले समय में हमारी ज़रूरतों में कटौती करने की आवश्यकता ही न रहे.
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