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शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

एयर इंडिया और सरकार

         भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की विमान कम्पनी एयर इंडिया को फिर से पटरी पर वापस लाने के लिए इसके पुनर्गठन को मंज़ूरी दे दी है जिसके साथ इस डूबती हुई और क़र्ज़ के बोझ से दबी जा रही कम्पनी के लिए अपने परिचालन को एक बार फिर से सुधारने का अवसर मिल रहा है. अभी तक जिस तरह से इस कम्पनी को सरकारी विभाग की तरह चलाये जाने की आदत उड्डयन मंत्रालय को रही है उससे कहीं से भी नहीं लगता है कि आने वाले समय में सरकारी विभाग और कंपनी के ठप्पे को हटाने में एयर इंडिया सफल होने वाली है ? आज पूरे विश्व में व्यापारिक और आर्थिक संकट के कारण जिस तरह से पुनर्गठन और अधिग्रहण चल रहे हैं उस स्थिति में आख़िर कब तक भारत सरकार अपने इस महाराजा को उड़ा पाने में सफल होगी यह तो स्पष्ट नहीं है पर इसी तरह से जनता से कर के रूप में जुटाया गया धन अगर सरकारी कम्पनियों पर खर्च किया जाता रहेगा तो एक न एक दिन जनता भी यह सवाल पूछने पर मजबूर हो जाएगी कि यह सब आख़िर किसके लिए किया जा रहा है ? अगर आज भी एयर इंडिया का प्रबंधन और कर्मचारी सही ढंग से काम नहीं करते हैं तो सरकार को उन्हें चेतावनी देकर निकाल बाहर करने में चूकना नहीं चाहिए क्योकि इस तरह से बोझ बने ये संसाधन एयर इंडिया को कहाँ लेकर जायेंगें या किसी को नहीं पता है ?
      आख़िर ऐसा क्या है कि यह सरकारी कम्पनी कभी भी ठीक ढंग से नहीं चल पाती है और इसको अपने परिचालन से जुड़ी नाकामियों के चलते हमेशा ही सरकार के सामने आर्थिक संकट का रोना रोना पड़ता है ? कहीं न कहीं से इस पूरी कम्पनी के प्रबन्धन में ही कोई बड़ी गड़बड़ी है जिसको अनजाने में या जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है जिसका खामियाज़ा आम जनता के धन को भुगतना पड़ रहा है ? जिस तरह से सरकार ने एक बार फिर से इसके पुनर्गठन की बात कही है उस स्थिति में आगे के लिए क्या सोचा जाये क्योंकि जिस तरह से इसके परिचालन में अनियमितताएं हमेशा ही बनी रहती हैं उनको दूर किये बिना आख़िर किस तरह से इसे आर्थिक रूप से सक्षम कम्पनी बनाया जा सकता है ? केवल आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करने के लिए धन की व्यवस्था हर बार कर दी जाये इससे कम्पनी का कैसे भला हो सकता है क्योंकि जब गड़बड़ी परिचालन से जुड़ी जगहों पर है तो बिना उसे सुधारे इसका बेड़ा कैसे पार हो सकता है ? अब सरकार को इस पुनर्गठन के साथ ही एक समय बद्ध घोषणा भी कर देनी चाहिए जिसमें इसके कर्मचारियों के लिए यह आवश्यक कर दिया जाये कि वे उतने समय में इस कम्पनी को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश करें और अगर वे इसमें असफल होते हैं तो सरकार को एक तय समय सीमा के बाद इसका विनिवेश कर देना चाहिए या फिर किसी अन्य कम्पनी के हाथों इसे बेच देना चाहिए.
          देश में सस्ती विमान सेवाओं के आने के बाद से विभिन्न तरह से ग्राहकों को अपनी तरफ खींचने के प्रयास सभी द्वारा किये जाते हैं फिर भी एयर इण्डिया को अपने लिए ग्राहक जुटाने में शर्म ही आती रहती है जिससे कभी भारतीय आसमान पर राज करने वाली यह कम्पनी आज इस दुर्दशा की शिकार हो चुकी है. मंहगी पर खाली सीटों के साथ उड़ने में एयर इन्डिया का कोई सानी नहीं है और जिस तरह से अचानक ही किंगफिशर के परिचालन पर बुरा असर पड़ा तो उस स्थिति में भी पूरे भारत में अपनी पहुँच होने के बाद भी एयर इंडिया उसका हिस्सा नहीं सँभाल पाई ? क्या कारण था कि एयर इंडिया ने इस यात्रियों को जुटाने के लिए उस स्तर पर कोई प्रयास नहीं किये जो उसके द्वारा किये जाने चाहिए थे, अब इस तरह से अपने काम को करने में कोई भी सरकारी कम्पनी कैसे चूक सकती है जबकि उसके सामने इतना बड़ा संकट खड़ा हो ? खाली पड़ी सीटों को भरने के लिए आख़िरी समय से कुछ पहले ऐसी नीलामी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए जिससे ये सीटें खाली न रहें और अंतिम समय में कम्पनी के किये बिना कुछ किये अतिरिक्त धन की व्यवस्था भी हो जाये पर इस सबके लिए जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है वह एयर इंडिया में कहीं से भी नहीं दिखाई देती है और इसका असर इस पूरी सेवा पर हमेशा ही पड़ता रहता है.       
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