विश्व प्रसिद्द इस्लामी शिक्षा केंद्र दारुल उलूम ने एक सवाल पर पूछी गयी राय से इस्लाम की रौशनी में भारतीय मुसलमानों से दूसरे निक़ाह की बात को अपने दिल में लाने से भी दूर रहने को कहा है. दर असल यह जवाब फतवा विभाग दारुल इफ्ता ने एक भारतीय मुसलमान के सवाल के जवाब में कही जिसमें उसने अपनी पहली बीवी के रहते हुए दूसरे निक़ाह के बारे में राय मांगी थी. इस बारे में दारुल इफ्ता ने यह भी स्पष्ट किया है कि हालाँकि शरियत में दूसरे निक़ाह को जायज़ बताया गया है फिर भी हिन्दुस्तानी रस्मोरिवाज़ इसकी इजाज़त नहीं देते इसलिए आम मुसलमान को दूसरे निक़ाह की बात को भी अपने दिल से निकाल देना चाहिए. हिन्दुस्तानी रिवाज़ों में दूसरे निक़ाह को अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता है इसलिए शरई इजाज़त होते हुए भी इससे दूर ही रहा जाना चाहिए. आम तौर पर यह देखा जाता है कि दूसरा निक़ाह करने के बाद शौहर पहली बीवी के साथ बराबरी का इंसाफ नहीं कर पाता है जिस शर्त के साथ ही दूसरे निक़ाह के लिए इस्लाम में इजाज़त दी गयी है इसलिए ऐसे निक़ाह से दूर ही रहना चाहिए. दारुल उलूम से आये इस फतवे से इस बात को भी स्पष्ट करने में मदद मिली है जो केवल इस्लाम का सहारा लेकर ही दूसरा निक़ाह करने के मंसूबे अपने दिल में पाले रखते हैं और अपनी दोनों बीवियों के साथ इंसाफ नहीं कर पाते हैं.
इस मसले में एक व्यक्ति ने अपनी खुश-हाल शादी शुदा ज़िन्दगी के बाद भी अपने साथ कालेज में पढ़ने वाली लड़की से दूसरा निक़ाह करने के बारे में सवाल ( संख्या ३८०९७) पूछा था कि वह ९ साल से शादी शुदा है और अपने पहले निक़ाह से खुश भी है फिर भी वह उस लड़की से निक़ाह करना चाहता है जो उसके साथ कालेज में पढ़ती थी और उसने उससे सिर्फ इसलिए निक़ाह करने से मना कर दिया था क्योंकि उसके सर के बाल कम हो गए थे. साथ ही सवाल करने वाले ने इस बात को भी कहा था कि उसने अपनी पहली बीवी और बच्चों के बारे में भी इस लड़की को बता दिया है फिर भी वह उससे निक़ाह के लिए राज़ी है. इस सवाल के बाद ही दारुल इफ्ता ने शरई व्याख्या करते हुए यह जवाब दिया है जिसमें स्पष्ट रूप से दूसरे निक़ाह को जायज़ तो बताया गया है पर साथ ही दूसरे निक़ाह के बाद पहली बीवी के सभी हकों को पूरा करने के बारे में ताक़ीद भी की गयी है. अगर कोई व्यक्ति दूसरा निक़ाह करने के साथ पहली बीवी को बराबरी के सभी हक नहीं दे सकता है तो उसे इसकी इजाज़त नहीं है. इस्लाम तो ४ निक़ाह करने को भी जायज़ ठहरता है पर उन सभी साथ बराबरी के व्यवहार के बारे में भी सख्ती से कहता है. इसलिए हिन्दुस्तानी समाज में दूसरे निक़ाह के बारे में आम मुसलमान को नहीं सोचना चाहिए.
दारुल उलूम का यह जवाब इस्लाम के बारे में बनाई गई ग़लत धारणा को भी तोड़ता है कि सभी मुसलमान ४ निकाह कर सकते हैं ? निश्चित तौर पर यह हक़ शरिया ने मुसलमानों को दिया है पर इसके साथ जितनी कड़ी शर्तें भी जोड़ी हैं उनके बारे में कोई नहीं बात करता है. इस सवाल करने वाले को शरई राय में स्पष्ट तौर पर दारुल इफ्ता ने दूसरे निक़ाह की बात को दिल से निकाल देने को भी कहा है. इस्लाम इस बात की इजाज़त तो देता है पर साथ ही यदि दूसरा निक़ाह करने वाला व्यक्ति दोनों बीवियों के साथ बराबरी का बर्ताव नहीं कर सकता है तो उसे भी दूसरे निक़ाह की इजाज़त नहीं है ऐसे में पहली बीवी के रहते हुए दूसरा निक़ाह करने को इस्लाम की रौशनी में जायज़ ठहराने वालों के लिए यह एक सबक़ के तौर पर है और उन लोगों के लिए एक सही स्पष्टीकरण भी जो मुसलमानों के ४ शादियाँ करने के हक़ को हमेशा इस तरह से प्रस्तुत करते हैं जैसे सारे मुसलमान ही ४-४ शादियाँ कर चुके हैं. दारुल उलूम से इस तरह के फ़तवे तो निकलते ही रहते हैं पर इनको देश के समाचार जगत में उतनी जगह नहीं मिल पाती है जिसके वे हक़दार हैं पर कोई रुढ़िवादी फ़तवा जारी होते ही उस पर तमाम हल्ला मचाया जाने लगता है ? यह एक ऐसा फ़ैसला है जिसको आम मुसलमानों के साथ सभी लोगों तक पहुंचना ही चाहिए जिससे इस बारे में अभी तक फैली हुई भ्रांतियों को दूर किया जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस मसले में एक व्यक्ति ने अपनी खुश-हाल शादी शुदा ज़िन्दगी के बाद भी अपने साथ कालेज में पढ़ने वाली लड़की से दूसरा निक़ाह करने के बारे में सवाल ( संख्या ३८०९७) पूछा था कि वह ९ साल से शादी शुदा है और अपने पहले निक़ाह से खुश भी है फिर भी वह उस लड़की से निक़ाह करना चाहता है जो उसके साथ कालेज में पढ़ती थी और उसने उससे सिर्फ इसलिए निक़ाह करने से मना कर दिया था क्योंकि उसके सर के बाल कम हो गए थे. साथ ही सवाल करने वाले ने इस बात को भी कहा था कि उसने अपनी पहली बीवी और बच्चों के बारे में भी इस लड़की को बता दिया है फिर भी वह उससे निक़ाह के लिए राज़ी है. इस सवाल के बाद ही दारुल इफ्ता ने शरई व्याख्या करते हुए यह जवाब दिया है जिसमें स्पष्ट रूप से दूसरे निक़ाह को जायज़ तो बताया गया है पर साथ ही दूसरे निक़ाह के बाद पहली बीवी के सभी हकों को पूरा करने के बारे में ताक़ीद भी की गयी है. अगर कोई व्यक्ति दूसरा निक़ाह करने के साथ पहली बीवी को बराबरी के सभी हक नहीं दे सकता है तो उसे इसकी इजाज़त नहीं है. इस्लाम तो ४ निक़ाह करने को भी जायज़ ठहरता है पर उन सभी साथ बराबरी के व्यवहार के बारे में भी सख्ती से कहता है. इसलिए हिन्दुस्तानी समाज में दूसरे निक़ाह के बारे में आम मुसलमान को नहीं सोचना चाहिए.
दारुल उलूम का यह जवाब इस्लाम के बारे में बनाई गई ग़लत धारणा को भी तोड़ता है कि सभी मुसलमान ४ निकाह कर सकते हैं ? निश्चित तौर पर यह हक़ शरिया ने मुसलमानों को दिया है पर इसके साथ जितनी कड़ी शर्तें भी जोड़ी हैं उनके बारे में कोई नहीं बात करता है. इस सवाल करने वाले को शरई राय में स्पष्ट तौर पर दारुल इफ्ता ने दूसरे निक़ाह की बात को दिल से निकाल देने को भी कहा है. इस्लाम इस बात की इजाज़त तो देता है पर साथ ही यदि दूसरा निक़ाह करने वाला व्यक्ति दोनों बीवियों के साथ बराबरी का बर्ताव नहीं कर सकता है तो उसे भी दूसरे निक़ाह की इजाज़त नहीं है ऐसे में पहली बीवी के रहते हुए दूसरा निक़ाह करने को इस्लाम की रौशनी में जायज़ ठहराने वालों के लिए यह एक सबक़ के तौर पर है और उन लोगों के लिए एक सही स्पष्टीकरण भी जो मुसलमानों के ४ शादियाँ करने के हक़ को हमेशा इस तरह से प्रस्तुत करते हैं जैसे सारे मुसलमान ही ४-४ शादियाँ कर चुके हैं. दारुल उलूम से इस तरह के फ़तवे तो निकलते ही रहते हैं पर इनको देश के समाचार जगत में उतनी जगह नहीं मिल पाती है जिसके वे हक़दार हैं पर कोई रुढ़िवादी फ़तवा जारी होते ही उस पर तमाम हल्ला मचाया जाने लगता है ? यह एक ऐसा फ़ैसला है जिसको आम मुसलमानों के साथ सभी लोगों तक पहुंचना ही चाहिए जिससे इस बारे में अभी तक फैली हुई भ्रांतियों को दूर किया जा सके.
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इस्लाम में दूसरा,तीसरा और चौथा निकाह एक आदमी का हक नहीं है। वह एक छूट मात्र है जिस के साथ शर्तें जुड़ी हुई हैं। ये शर्तें ऐसी हैं जिन्हें किसी हालत में पूरा नहीं किया जा सकता। इस तरह यह कहा जा सकता है कि इस्लाम में एक पत्नी के रहते दूसरा निकाह करना मना है। होना तो यह चाहिए कि एक समाजिक संस्था या न्यायिक निकाय बने जिस की इजाजत के बिना एक बीवी के रहते दूसरा निकाह करना अवैध माना जाए। यह संस्था दूसरे निकाह की इजाजत देने के पहले इस बात की जाँच करे कि क्या दूसरा निकाह करने वाला व्यक्ति दूसरे निकाह की शर्तों को पूरा करने में सक्षम है भी या नहीं।
जवाब देंहटाएंयुद्ध के बाद जब बहुत सी औरतें विधवा और उनकी बेटियां बेसहारा हो गईं तो अल्लाह ने यह हुक्म दिया कि उन औरतों से और उनकी बेटियों से निकाह कर लो। ऐसे ही समय के लिए इस्लाम में बहु विवाह का प्रावधान है ताकि कोई औरत बेसहारा न रहे और उसे आर्थिक संबल के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से भी संतुष्टि मिले।
जवाब देंहटाएंसमाज को बुराई और विखंडन से बचाने के लिए इससे अच्छा उपाय कोई और नहीं है।
क़ानून का मिसयूज़ करने वाले हमेशा ही होते हैं।
ऐसे लोगों के लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
http://www.pyarimaan.blogspot.in/2012/04/blog-post_11.html
जब संविधान के जरिये ही छूट दे दी तो क्या कहा जाये. आस्ट्रेलिया से ही सबक ले लें. अब तो कोई युद्ध नहीं है न ही विधवायें बची हैं फिर अल्लाह की दी हुई छूट वापस होनी चाहिये.
जवाब देंहटाएंयह अच्छी और अजब जानकारी है कि दुनिया में अब युद्ध नहीं हो रहे हैं ???
जवाब देंहटाएं...और न ही कहीं विधवाएं बची हैं ???
जवाब देंहटाएंSee
http://hindi.in.com/latest-news/money-and-life/-1136942.html
डा० साहब, लगता है आपको हर बात विस्तार में ही समझनी पड़ेगी. क्या उस समय के युद्ध की विधवाएँ अभी भी बची हैं. और फिर दूसरी-तीसरी शादी क्या सिर्फ विधवाओं से ही की जाती है.
हटाएंअल्लाह ने विधवा और बेसहारा बनने के बाद यह हुक्म दिया? क्या ही अच्छा होता अगर विधवा और बेसहारा बनने के कारण रूप युद्ध न करने का हुक्म फरमा देते, न होता खून खराबा, न होते लोग बेसहारा। और न होती छूट, न होता छूट का दुरपयोग॥
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