मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

सतर्कता आयोग और सिफारिश

        देश में भ्रष्टाचार से लड़ने और उसे रोकने के लिए आज की तारीख़ में काम कर रहे केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास किसी भी मामले में जांच के जो अधिकार संविधान के तहत सरकार ने दिए हैं उनको किस हद तक प्रभावी बनाया जा सकता है अब इस बारे में कोई नीति बनाने का समय आ गया है. इस तरह की कई ख़बरें हम अक्सर ही पढ़ा और देखा करते हैं कि सतर्कता आयुक्त ने कुछ अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही करने की सिफारिश की है पर उन सिफारिशों पर क्या कार्यवाही हुई यह कोई भी नहीं जान पाता है क्योंकि इस कार्यालय द्वारा इस तरह के मामलों में कड़ी छानबीन की जाती है और उसके बाद ही कोई निष्कर्ष निकला जाता है इन निष्कर्षों के आधार पर ही सरकार से इन भ्रष्टाचार में दोषी पाए गए अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने की सिफारिश की जाती है. पर आज इन सिफारिशों का क्या मोल रह गया है वह हम सभी जानते हैं इसलिए आज इस बात की आवश्यकता है कि इस केंद्रीय सतर्कता आयोग को और अधिक अधिकार दिए जाएँ जिससे वह भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में सीधे ही त्वरित कोर्ट में केस डाल सके और उस पर एक समय सीमा में काम भी किया जाये. जब तक इस तरह से भ्रष्टाचार के मामलों तेज़ी से सजा नहीं दी जाएगी तब तक इसे केवल कानून के दम पर रोक पाना असंभव ही है.
              अभी तक इस संगठन के पास शिकायतें तो बहुत आती हैं पर इसके द्वारा की जाने वाली सिफारिशों पर अमल नहीं किया जाता है अगर इसको केवल जांच करने का ही कार्यालय बनाकर रखना है तो इससे देश का भला नहीं हो सकता है क्योंकि जब तक सजा दिलवाने में इसके पास कोई अधिकार नहीं होंगें तो विभिन्न तरह की अनियमितताओं में फंसे लोग अपने संपर्कों के इस्तेमाल से बचे ही रहेंगें तब तक इस कार्यालय के होने न होने का कोई मतलब नहीं रह जायेगा ? इसकी ताज़ा सिफ़ारिशों में जिस तरह से केंद्र सरकार के १४० लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही करने के लिए सरकार से कहा गया है और उसमें भी ७१ लोग बैंकिंग क्षेत्र से हैं उससे यही लगता है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों में भी बहुत कुछ गड़बड़ चल रही है और इस पर समय रहते नियंत्रण किये जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि एक बार केवल कड़ी सिफारिश के चंगुल में फँस कर ये लोग बच जाते हैं तो उससे दूसरों को भी इसी तरह से बचने का रास्ता दिखाई देने लगता है जबकि इनके ख़िलाफ़ सख्त कदम उठाकर इनसे धन की वसूली के साथ इनको जेल भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि एक भी भ्रष्टाचारी अगर बचता है तो दूसरे भी उसी तरह से बचने के बारे में जुगत लगाने लगते हैं.
          देश में पहले से ही भ्रष्टाचार से निपटने के लिए राज्य और केंद्र में ढेरों संगठन बने हुए हैं पर इसके बाद भी कहीं से भी भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है तो आज इसके कारणों पर ईमानदारी से विचार करने की ज़रुरत है पर जब ईमानदारी का पाठ पढ़ने का समय आता है तो दूसरों को कोरे उपदेश दिए जाते हैं और खुद पर पड़ने पर किसी भी तरह से काम निकालने की कोशिशें शुरू कर दी जाती हैं. अब देश को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कई स्तरों पर काम करने की ज़रुरत है क्योंकि कानून तो हैं पर या तो उनकी शक्ति कम है या फिर उनके द्वारा की गयी जांचों पर कार्यवाही करने की सरकारी मंशा में ही कमी है जिससे रोज़ ही नए भ्रष्टाचारी सामने आते रहते हैं. इससे देश को आर्थिक नुक्सान तो होता ही है साथ ही आने वाली पीढ़ी पर भी दबाव बनता है क्योंकि जब ये लोग यह देखते हैं कि किसी भी भ्रष्टाचारी को सज़ा आसानी से नहीं मिल रही है तो वे भी खुद भ्रष्टाचार से कैसे दूर रह पायेंगें ? अब समय है कि पहले की तरह काम करने की संस्कृति बनायीं जाये और सभी तरह के सरकारी काम-काज में पूरी पारदर्शिता को लागू किया जाये. साथ ही हर गाँव, कस्बे और शहर में स्थानीय गैर राजनैतिक लोगों की निगरानी समितियां भी बनायीं जानी चाहिए जो किसी भी तरह के सरकारी काम का स्थलीय निरीक्षण कर सकने के अधिकारों से लैस हों क्योंकि जब तक आम लोग अपने को इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में शामिल नहीं करेंगें तब तक कोई भी कानून या सरकार चंद लोगों से बने संगठन के बूते भ्रष्टाचार से नहीं लड़ पायेगी.    
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